महिलाओं की शादी की उम्र 21 साल करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की, कहा- फैसला संसद को करना है
Avanish Pathak
20 Feb 2023 6:40 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की एक समान उम्र की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पुरुषों (21 वर्ष) और महिलाओं (18 वर्ष) के लिए विवाह की उम्र के बीच का अंतर मनमाना है, और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है।
उपाध्याय ने महिलाओं के लिए विवाह की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष करने की मांग की, जो पुरुषों के बराबर होगी। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत संसद को कानून बनाने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकती है, और कानून में कोई भी बदलाव संसद पर छोड़ देना चाहिए। तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई थी।
शुरुआत में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की-
"आप कह रहे हैं कि महिलाओं की (शादी के लिए उम्र) 18 नहीं होनी चाहिए, यह 21 होनी चाहिए। लेकिन अगर हम 18 साल को हटा दें, तो कोई उम्र नहीं होगी! फिर 5 साल की उम्र भी शादी कर सकती है।"
हालांकि, अश्विनी उपाध्याय ने कहा-
"मैं कह रहा हूं कि यह 18 साल और 21 साल मनमाना है। संसद में पहले से ही एक कानून पर बहस हो रही है।"
जस्टिस पीएस नरसिम्हा पूछा-
"यदि पहले से ही एक कानून पर बहस हो रही है तो आप यहां क्यों हैं?"
2021 में केंद्र ने महिलाओं के लिए शादी की उम्र बढ़ाकर 21 साल करने के लिए संसद में बिल पेश किया था। विधेयक को संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है और यह लंबित है।
इस बिंदु पर उपाध्याय ने अदालत से मामले को स्थगित करने का अनुरोध किया, क्योंकि याचिकाकर्ता पूरी तरह से तैयार नहीं थे। हालांकि, बेंच ने इससे इनकार कर दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश लिखवाते हुए कहा-
"याचिकाकर्ता का आग्रह है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह की उम्र के बीच का अंतर मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता मांग करता है कि पुरुषों के बराबर होने के लिए महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष की जानी चाहिए। प्रावधान को खारिज करते हुए परिणामस्वरूप महिलाओं के लिए शादी की कोई उम्र नहीं होगी। इसलिए याचिकाकर्ता एक विधायी संशोधन की मांग करता है। यह अदालत संसद को कानून बनाने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकती है। हम इस याचिका को अस्वीकार करते हैं, याचिकाकर्ता के लिए उचित दिशा-निर्देश लेने के लिए इसे खुला छोड़ देते हैं।"
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम यूओआई और अन्य टीसी (सी) नंबर 3/2023