'इसमें कोर्ट का कोई दखल नहीं'- सुप्रीम कोर्ट ने दो बच्चों के मानदंड और देश भर में जनसंख्या नियंत्रण नीति को लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

Shahadat

18 Nov 2022 9:23 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश में जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए कड़े और प्रभावी नियम, विनियम और दिशानिर्देश तैयार करने और सरकारी नौकरियों, सहायता, सब्सिडी के लिए दो बच्चों के मानदंड को अनिवार्य मानदंड बनाने की व्यवहार्यता का पता लगाने के निर्देश देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस एस के कौल और जस्टिस ए एस ओका की पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा वापस लिए जाने के कारण आईए को खारिज कर दिया और कहा कि आवेदन में मांगी गई प्रार्थना अदालत के दायरे से बाहर है और सरकार के विचार करने के लिए सबसे अच्छा है।

    जस्टिस एसके कौल ने इससे पहले जिरह के दौरान याचिकाकर्ताओं से पूछा,

    हम कानून बनाने की प्रक्रिया में कैसे उतर सकते हैं?

    पीटिशन-इन-पर्सन अश्विनी उपाध्याय,

    हम विधि आयोग द्वारा इस विषय पर रिपोर्ट की मांग कर रहे हैं।

    जस्टिस एसके कौल ने कहा,

    आप अनिवार्य रूप से दो बच्चों के मानदंड को अनिवार्य करने की मांग कर रहे हैं। विधायिका को करने दीजिए। यह कोर्ट का काम नहीं है

    बेंच ने आगे यह भी टिप्पणी की,

    लॉ कमीशन इस बारे में क्या कर सकता है? यह सामाजिक मुद्दा है। सरकार इस पर संज्ञान ले।

    जस्टिस ए एस ओका ने इस बिंदु पर याचिकाकर्ताओं द्वारा याचिका में की गई प्रार्थनाओं का उल्लेख किया।

    उन्होंने कहा,

    "आपने रविवार को राष्ट्रीय जनसंख्या दिवस घोषित करने जैसी हर तरह की प्रार्थनाएं की हैं... विधि आयोग इन सब में कैसे पड़ सकता है। क्या यह विधि आयोग का काम है?"

    पीटिशन-इन-पर्सन अश्विनी उपाध्याय ने अदालत के समक्ष कहा कि यह मामला गंभीर महत्व का है, क्योंकि यह देश में जनसंख्या वृद्धि की भारी दर और इसके कारण हमारे देश को होने वाले खतरों से संबंधित है। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि से जुड़े कई आंकड़े भी बताए।

    जस्टिस एस के कौल ने इस बिंदु पर कहा,

    "मैंने इस पर पर्याप्त सामग्री पढ़ी है, जो बताती है कि हमारे देश की जनसंख्या कई अन्य देशों के विपरीत घटती प्रवृत्ति पर है, जहां स्थिति खराब हो रही है।"

    जस्टिस कौल ने आगे कहा कि यह मुद्दा अदालत के विचार के लिए नहीं है और यह समझने में कुछ तार्किकता होनी चाहिए कि अदालत का काम क्या है।

    उन्होंने कहा,

    "हम इस मुद्दे को नहीं छुएंगे। यह सरकार का काम है।"

    याचिकाकर्ता द्वारा मामले को और अधिक दबाए जाने पर अदालत निराश दिख रही थी, कोर्ट ने टिप्पणी की,

    "हमें यह मत कहो कि ऐसी याचिकाएं क्यों दायर की जाती हैं। हम कोई आदेश पारित नहीं करने जा रहे हैं। हमें खुद पर संयम रखने की जरूरत है। आप प्रचार चाहते हैं, यह है। हमारा काम आपको पब्लिसिटी देना नहीं है। हम नहीं चाहते कि यह विषय हमारे सामने आए। पीरियड!"

    संघ की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि केंद्र सरकार जनसंख्या में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए अपनी क्षमताओं के भीतर सब कुछ कर रही है।

    यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता द्वारा एसएलपी (सी) नंबर 27597/2019 में अदालत से निम्नलिखित निर्देशों के लिए प्रार्थना करते हुए आईए दायर किया गया:

    ए. केन्द्र और राज्यों को जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए कड़े और प्रभावी नियम विनियम और दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दें ताकि स्वच्छ हवा का अधिकार, स्वच्छ पानी का अधिकार, भोजन का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शांतिपूर्ण नींद का अधिकार, आश्रय का अधिकार, आजीविका का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और सम्मान का अधिकार मौलिक अधिकारों को सुरक्षित किया जा सके।

    बी. केंद्र और राज्यों को सरकारी नौकरियों, सहायता, सब्सिडी के साथ-साथ मतदान के अधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार और मुफ्त आश्रय के अधिकार के लिए अनिवार्य मानदंड के रूप में दो बच्चों के मानदंड बनाने की व्यवहार्यता का पता लगाने का निर्देश दें।

    सी. केन्द्र और राज्यों को जनसंख्या विस्फोट के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए हर महीने के पहले रविवार को 'जनसंख्या नियंत्रण दिवस' (पोलियो दिवस की तरह) घोषित करने और ईडब्ल्यूएस और बीपीएल माता-पिता को कंडोम, टीके, गर्भनिरोधक गोली आदि उपलब्ध कराने का निर्देश दिया दें।

    डी. विकल्प के रूप में भारत के विधि आयोग को विकसित देशों के जनसंख्या नियंत्रण कानूनों और नीतियों की जांच करने और तीन महीने के भीतर व्यापक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दें।

    केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एसएलपी (सी) नंबर 27597/2019

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