सुप्रीम कोर्ट ने NHRC को पूरे कार्यबल के साथ चलाने के लिए हस्तक्षेप की मांग वाली याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

9 Sep 2021 10:55 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ( NHRC) को पूरे कार्यबल से चलाने को सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को निष्फल बताते हुए खारिज कर दिया।

    शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अरुण मिश्रा की NHRC के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति पर ध्यान देते हुए , जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि, "अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति को देखते हुए, यह रिट याचिका निष्फल हो गई है। खारिज की जाती है।"

    व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता के रूप में पेश हुए, अधिवक्ता राधाकांत त्रिपाठी ने सुनवाई के दौरान प्रस्तुत किया था कि हालांकि अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की गई थी, फिर भी 2 पद खाली पड़े थे।

    इस मौके पर पीठासीन न्यायाधीश जस्टिस एलएन राव ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। हम मामले को लंबित क्यों रखें। यह निष्फल हो गया है।"

    यह दावा करते हुए कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना के बाद से इतिहास में पहली बार आयोग अपनी पूरी ताकत के बिना चल रहा है, त्रिपाठी ने अपनी याचिका में कहा था कि आयोग में अध्यक्ष, दो सदस्य और जांच महानिदेशक की रिक्तियां हैं, जैसा कि 2019 में संशोधित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत आवश्यक है।

    याचिका में कहा गया था-" राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सरकार की निष्क्रियता के कारण कमजोर हो गया है। रिक्तियों को भरने में बरती जा रही लापरवाही, विफलता और उत्तरदाता की निष्क्रियता अनुच्छेद 14 और 21 का उल्‍लंघन करती है।"

    त्रिपाठी ने अपनी याचिका में कहा था कि "आयोग अपने अध्यक्ष, सदस्यों और जांच महानिदेशक के बिना काम नहीं कर सकता।"

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि 2019 में संशोधित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 3 में एक अध्यक्ष और पांच अन्य सदस्यों के साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन करने की संस्‍तुति की गई है, और जांच माहानिदेशक की नियुक्ति के लिए अधिनियम की धारा 11 निर्धारित है। अधिनियम की धारा 7 में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यवाहक अध्यक्ष की नियुक्ति का प्रावधान है।

    याचिका में यह भी कहा गया था कि एनएचआरसी में एक अध्यक्ष, दो सदस्यों और जांच महानिदेशक की नियुक्ति न होने से यह कानून की नजर में विकलांग और बेकार हो गया था।

    केस शीर्षक : राधाकांत त्रिपाठी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया


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