सुप्रीम कोर्ट ने नर्सिंग काउंसिल मामले में एमपी के एडवोकेट जनरल द्वारा ली गई फीस की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की

Shahadat

5 Dec 2025 10:52 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने नर्सिंग काउंसिल मामले में एमपी के एडवोकेट जनरल द्वारा ली गई फीस की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश नर्स रजिस्ट्रेशन काउंसिल (MPNRC) से जुड़े एक केस में मध्य प्रदेश के एडवोकेट जनरल और दूसरे राज्य के लॉ ऑफिसर्स द्वारा कथित तौर पर बहुत ज़्यादा फीस लिए जाने की जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच का मामला खारिज करने की इच्छा जताने के बाद पिटीशनर ने पिटीशन वापस लेने का फैसला किया।

    यह पिटीशन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ फाइल की गई, जिसमें यह कहते हुए पिटीशन खारिज कर दी गई कि आरोप बेकार, बेबुनियाद हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि असल में कितनी फीस दी गई थी या किसी नियम का उल्लंघन हुआ था।

    मामले की सुनवाई हुई तो पिटीशनर के एडवोकेट वरुण ठाकुर ने कुछ डॉक्यूमेंट्स पेश करने के लिए समय मांगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिटीशन का विरोध करते हुए कहा कि इसे कॉस्ट के साथ खारिज किया जा सकता है, क्योंकि इसमें "जो दिख रहा है उससे कहीं ज़्यादा" कुछ है।

    ठाकुर ने कहा कि यह मामला सरकारी खजाने से जुड़ा है।

    सीजेआई कांत ने पूछा,

    "तो क्या?"

    SG ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता, हाईकोर्ट में ओरिजिनल पिटीशनर नहीं था। नर्सिंग काउंसिल से जुड़ा एक केस था, जिसमें याचिकाकर्ता ने एक एप्लीकेंट के तौर पर फीस का मुद्दा उठाते हुए दखल दिया था।

    SG ने कहा,

    "कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे जो फीस ले रहे हैं, उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी बात, यह कहते हुए कि यह आपका कोई काम नहीं है।"

    सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा,

    "आपकी चिंता क्या है?"

    ठाकुर ने कहा,

    "हम जनता का पैसा बचाने के लिए हैं। वे बड़े बंगले, सिक्योरिटी का मज़ा ले रहे हैं और बहुत सारा पैसा चार्ज कर रहे हैं।"

    सीजेआई ने कहा,

    "राज्य सरकार के लिए, एडवोकेट जनरल एक सिंबॉलिक फीस लेते हैं..."

    SG ने कहा,

    "किसी के पास आंकड़ा नहीं है।"

    ठाकुर ने कहा कि पिटीशनर एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट है।

    SG ने जवाब दिया,

    "ज़िम्मेदार होने का और भी कारण है।"

    सीजेआई ने पिटीशनर के वकील से कहा,

    "उसे इस तरह की पिटीशन फाइल न करने की सलाह दें।"

    हाईकोर्ट ने कहा कि MPNRC एक ऑटोनॉमस बॉडी है, जो एडवोकेट जनरल समेत अपने वकील रखने और अपने फंड से प्रोफेशनल फीस तय करने के लिए आज़ाद है। राज्य के लॉ ऑफिसर्स के लिए अलग फीस पर रोक लगाने वाले सरकारी सर्कुलर सिर्फ सरकारी डिपार्टमेंट्स पर लागू होते हैं, ऑटोनॉमस बॉडीज़ पर नहीं।

    कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 165 के तहत एडवोकेट जनरल के ऑफिस को ऑटोनॉमस एंटिटीज़ को रिप्रेजेंट करने से रोका नहीं गया।

    पहली नज़र में कोई गैर-कानूनी बात नहीं पाते हुए और PIL का दायरा बढ़ाने से मना करते हुए कोर्ट ने एप्लीकेशन को बेकार बताते हुए खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "हमारी राय है कि इस तरह के आरोपों की जांच करने की ज़रूरत नहीं है और न ही ऐसे आरोपों से इस कोर्ट के मन पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे पहले से शुरू की गई कार्रवाई में कोई डर पैदा हो। एडवोकेट जनरल या दूसरे लॉ ऑफिसर को बहुत ज़्यादा प्रोफेशनल फीस देने के बिना किसी आधार या सबूत के ऐसे आरोपों पर यह कोर्ट गौर नहीं कर सकता। असल में, हम मामले का दायरा बढ़ाना नहीं चाहते हैं और वैसे भी, हमें ऑटोनॉमस बॉडी यानी MPNRC द्वारा वकीलों को हायर करने और उनके नियमों के अनुसार प्रोफेशनल फीस देने के मामले में पहली नज़र में कोई गैर-कानूनी बात नहीं लगती है।"

    Case : KAVITA AHIRWAR Vs THE STATE OF MADHYA PRADESH | D No. 55167/2025

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