सुप्रीम कोर्ट ने BPSC चेयरमैन की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका की खारिज, वकील को लगाई फटकार
Shahadat
18 July 2025 9:39 AM

सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील पर कड़ा रुख अपनाया, जिसने याचिका में सही तथ्यों का उल्लेख किए बिना बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के चेयरमैन की नियुक्ति को चुनौती दी थी।
हालांकि अदालत ने शुरुआत में वकील पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया था, लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया। खंडपीठ ने टिप्पणी की कि जनहित याचिका पर ईमानदारी से काम करना चाहिए और प्रचार के पीछे नहीं भागना चाहिए।
अदालत ने वकील से कहा,
"ईमानदारी से काम करो, ऐसा करने का यह तरीका नहीं है। अगर आप जनहित याचिका लेते हैं तो आपको इसमें पूरी जान लगा देनी चाहिए। आपको हर तथ्य की अच्छी तरह से जांच करनी चाहिए, ज़िम्मेदारी आपकी है। इस प्रचार के चक्कर में मत पड़ो, यह आपको कहीं नहीं ले जाएगा। यह केवल आपकी बदनामी करेगा।"
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुकर की खंडपीठ वकील और व्यक्तिगत याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के चेयरमैन परमार रवि मनुभाई की नियुक्ति को इस आधार पर "पूरी तरह से अवैध" और "मनमाना" घोषित करने का अनुरोध किया गया था, क्योंकि यह नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 316 (सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए की गई।
पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी ने खंडपीठ को सूचित किया कि याचिकाकर्ता ने नियुक्ति को तीन आधारों पर चुनौती दी है, पहला यह कि अनुच्छेद 316 के अनुसार, केवल "बेदाग ईमानदारी" वाले व्यक्ति को ही चेयरमैन नियुक्त किया जाना चाहिए। इसके विपरीत, चेयरमैन पर भ्रष्टाचार और जालसाजी के गंभीर आरोप हैं। इसलिए उनकी "ईमानदारी संदिग्ध है।"
दूसरा, मनुभाई के खिलाफ FIR दर्ज की गई, जो याचिकाकर्ता के अनुसार अभी भी लंबित है। तीसरा, याचिकाकर्ता के अनुसार, मनुभाई एक राज्य सिविल सेवा अधिकारी थे और इस पद पर नियुक्ति के दौरान बिहार कैडर में कार्यरत रहे।
हालांकि, एमिक्स क्यूरी ने स्पष्ट किया कि FIR 2017 में दर्ज की गई थी, जिसे बाद में 2022 में बंद कर दिया गया। मनुभाई की नियुक्ति मार्च 2024 में हुई थी।
इस पहलू पर कि क्या मनुभाई ने चेयरमैन नियुक्त होने से पहले कोई स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले लिया थी, राज्य के वकील ने दलील दी कि यह नियुक्ति बिहार लोक सेवा आयोग सेवा शर्तें विनियम, 1960 के नियम 2(ई) के अंतर्गत आती है।
नियम के अनुसार, सेवा सदस्य का अर्थ है "ऐसा व्यक्ति जो सदस्य के रूप में अपनी नियुक्ति से पहले भारत सरकार या भारत के किसी राज्य की सेवा में था, चाहे वह ऐसी सेवा से रिटायरमेंट से पहले या बाद में सदस्य के रूप में शामिल हुआ हो।"
राज्य के वकील ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि याचिकाकर्ता एक वकील है। उसे इस तथ्य की पूरी जानकारी थी कि मनुभाई के खिलाफ FIR बंद कर दी गई।
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए खंडपीठ ने वकील/याचिकाकर्ता से कहा कि वे जनहित याचिका को गंभीरता से लें और प्रचार के लिए याचिकाएँ दायर न करें।
आगे कहा गया,
"इस तरह की याचिका दायर करने से पहले आपको सावधान रहना चाहिए। हम आप पर जुर्माना लगाएंगे। हमें पता था कि कुछ तो है, हमें पूरा भरोसा नहीं था। इसलिए हमने एमिक्स क्यूरी से मदद मांगी। आप बहुत छोटे हैं और आपने अभी-अभी (2016 में) नामांकन कराया है। ईमानदारी से काम करो, ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर आप जनहित याचिका दायर करते हैं तो आपको इसमें पूरी जान लगा देनी चाहिए। आपको हर तथ्य की पूरी जाँच करनी चाहिए, ज़िम्मेदारी आपकी है। इस प्रचार के चक्कर में मत पड़ो, यह आपको कहीं नहीं ले जाएगा। यह सिर्फ़ आपकी बदनामी करेगा।"
खंडपीठ ने जुर्माना लगाकर याचिका खारिज कर दी।
आदेश का प्रासंगिक अंश इस प्रकार है:
"हमने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत इस याचिका को याचिका में उल्लिखित कुछ तथ्यों के आधार पर स्वीकार किया था। चूंकि हमें विश्वास नहीं था, इसलिए हमने वकील (एमिक्स क्यूरी) से इस मामले में सहायता करने का अनुरोध भी किया था। हमारा मत है कि रिट याचिका में दिए गए तथ्य सटीक नहीं हैं। इस दृष्टि से विशेष अनुमति याचिका को याचिकाकर्ता द्वारा देय 10,000/- रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है।"
याचिकाकर्ता द्वारा क्षमा याचना करने और एमिक्स क्यूरी द्वारा सहायता प्रदान करने पर न्यायालय ने लगाई गई लागत माफ कर दी।
Case Details: BRAJESH SINGH v. THE STATE OF BIHAR AND ORS| W.P.(C) No. 62/2025