सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति के लिए अलग राज्य की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Shahadat

8 Nov 2024 5:24 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति के लिए अलग राज्य की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने इंजीलवादी डॉ. के.ए. पॉल द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज की। उक्त याचिका में तिरुपति लड्डू विवाद की CBI जांच और तिरुपति शहर को अलग राज्य/केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग की गई थी।

    जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने पॉल की सुनवाई के बाद आदेश पारित किया, जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और बहस की।

    यह विवाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू द्वारा सार्वजनिक की गई एक लैब रिपोर्ट से उत्पन्न हुआ, जिसके अनुसार, पिछली YSRCP सरकार के कार्यकाल के दौरान लड्डू तैयार करने के लिए तिरुपति मंदिर को आपूर्ति किए गए घी के नमूनों में विदेशी वसा (जिसमें गोमांस की चर्बी और मछली का तेल शामिल है) पाया गया था।

    इसके बाद आरोपों की न्यायालय की निगरानी में जांच और सरकारी निकायों द्वारा प्रबंधित हिंदू मंदिरों में अधिक जवाबदेही सहित राहत की मांग करते हुए लगभग पांच याचिकाएं दायर की गईं।

    4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने तिरुमाला तिरुपति मंदिर में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू बनाने में मिलावटी घी के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया।

    इसके बाद 24 अक्टूबर को पॉल ने जस्टिस गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस विश्वनाथन की पीठ के समक्ष अपनी जनहित याचिका का उल्लेख किया, जिसने उनकी सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। याचिका आंध्र प्रदेश सरकार, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD), सीबीआई और अन्य के खिलाफ दायर की गई थी।

    वर्तमान सुनवाई में पॉल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के उल्लंघन और इसके परिणामस्वरूप अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन का आरोप लगाने के साथ शुरू हुई।

    हालांकि, जस्टिस गवई ने उनकी बात बीच में ही काटते हुए कहा,

    "हम किसी विशेष [मंदिर] के लिए अलग राज्य बनाने का निर्देश नहीं दे सकते।"

    पॉल ने इस प्रार्थना का बचाव करते हुए तर्क दिया कि यदि 764 लोगों (वेटिकन) के लिए एक देश बनाया जा सकता है - "कुछ कैथोलिकों के समूह के लिए" - तो 34 लाख लोगों (तिरुपति की आबादी) के लिए एक राज्य क्यों नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने आग्रह किया कि उन्होंने देश में आंध्र प्रदेश (जिससे वे संबंधित हैं) की छवि की रक्षा करने और मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा के लिए याचिका दायर की।

    पॉल ने कहा,

    "उन्हें विचार करना चाहिए। उन्होंने इतने सारे क्षेत्र बनाए। 29 राज्य...तो 30 लाख लोगों के लिए एक क्षेत्र क्यों नहीं?"

    उनकी बात सुनकर जस्टिस गवई ने पलटवार किया,

    "फिर हमें जगन्नाथ पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, मदुरै मंदिर, रामेश्वरम मंदिर के लिए अलग राज्य बनाना होगा। महाराष्ट्र में 4-5 बनाने होंगे। फिर अमृतसर गुरुद्वारा।"

    जब पीठ ने संकेत दिया कि वह याचिका खारिज कर रही थी तो पॉल ने दलील दी कि तिरुपति लड्डू विवाद की जांच के लिए SIT गठित करने का आदेश महीने पहले पारित किया गया, बिना कोई समय सीमा तय किए। ऐसे में न्यायालय कम से कम 90 दिन या 6 महीने की समय सीमा तय कर सकता है, क्योंकि जांच अभी शुरू भी नहीं हुई।

    हालांकि, पीठ ने कोई निर्देश पारित करने से परहेज किया।

    केस टाइटल: डॉ. के.ए. पॉल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 657/2024

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