सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा CBI और ED के 'दुरुपयोग' के खिलाफ 14 विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका खारिज की; कहा- सामान्य दिशानिर्देश जारी नहीं कर सकते

Avanish Pathak

5 April 2023 4:49 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा CBI और ED के दुरुपयोग के खिलाफ 14 विपक्षी दलों द्वारा दायर याचिका खारिज की; कहा- सामान्य दिशानिर्देश जारी नहीं कर सकते

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चौदह राजनीतिक दलों की ओर से दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का केंद्र सरकार असहमतियों को दबाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।

    चीफ ज‌स्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने यह कहकर याचिका पर विचार करने से इनकार किया कि वह बिना तथ्यात्मक संदर्भ के सामान्य निर्देश जारी नहीं कर सकता।

    खंडपीठ ने कहा कि वह केवल एक व्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। पीठ ने राजनीतिक नेता सामान्य नागरिकों की तुलना में अधिक प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकते। पीठ की टिप्पणियों के बाद सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिका वापस लेने की मांग की।

    सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने आंकड़ों के जरिए यह स्‍‌थ‌ापित करने का प्रयास किया कि केंद्र नियंत्रित जांच एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक असंतोष को कुचलने और प्रतिनिधि लोकतंत्र की मौलिक स्‍थापनाओं को समाप्त करने की दृष्टि से 'चयनात्मक और लक्षित' तरीके से किया जा रहा है।

    उन्होंने कहा, समस्या का हल के लिए गिरफ्तारी और रिमांड के साथ-साथ जमानत के लिए उचित दिशा-निर्देश ‌‌दिए जा सकते हैं।

    पुलिस या ईडी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तारी और रिमांड के लिए, याचिकाकर्ताओं ने ट्रिपल टेस्ट किए जाने की मांग की, जिसके तहत यह निर्धारित करना होता है कि क्या व्यक्ति फ्लाइट रिस्क पर है, क्या सबूतों के साथ छेड़छाड़ की उचित आशंका है, या गवाहों को प्रभावित किया जा सकता है/डराया जा सकता है। और अदालतें भी समान रूप से गंभीर शारीरिक हिंसा के मामलों को छोड़कर किसी भी संज्ञेय अपराध में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए ट्रिपल टेस्ट का प्रयोग कर सकती है।

    यह तर्क दिया गया कि जहां ये शर्तें संतुष्ट नहीं होती हैं वहां जांच की मांगों को पूरा करने के लिए निश्चित घंटों पर पूछताछ या अधिक से अधिक हाउस अरेस्ट जैसे विकल्पों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

    इसी तरह, जमानत के संबंध में याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि सभी अदालतों को 'जमानत नियम के रूप में, जेल अपवाद के रूप में' के सिद्धांत का पालन करना चाहिए, विशेष रूप से उन मामलों में जहां अहिंसक अपराध का आरोप लगाया गया है, और जमानत से इनकार केवल वहीं किया जाना चाहिए जहां उपरोक्त ट्रिपल-टेस्ट संतुष्ट हो।

    याचिका में प्रकाश डाला गया कि छापे पर कार्रवाई की दर यानी छापे के परिणामस्वरूप दर्ज की गई शिकायतें 2005-2014 में 93 प्रतिशत से घटकर 2014-2022 में 29 प्रतिशत हो गई हैं।

    इसके अलावा, यह दावा किया गया कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत अब तक केवल 23 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया है, यहां तक कि पीएमएलए के तहत ईडी द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है (वित्त वर्ष 2013-14 में 209 से 2020-21 में 981 और 2021-22 में 1,180)।

    अंत में याचिका में कहा गया है कि 2004-14 के बीच, सीबीआई द्वारा जांच किए गए 72 राजनीतिक नेताओं में से 43 (60 प्रतिशत से कम) उस समय के विपक्ष से थे, अब यह आंकड़ा बढ़कर 95 प्रतिशत से अधिक हो गया है।

    ईडी की जांच में भी यही पैटर्न परिलक्षित होता है, जांच किए गए राजनेताओं की कुल संख्या में विपक्षी नेताओं का अनुपात 54 प्रतिशत (2014 से पहले) से बढ़कर 95 प्रतिशत (2014 के बाद) हो गया है।

    उक्त आंकड़ों को पेश करने के बाद सीनियर एडवोकेट ने तर्क दिया, "स्पष्ट रूप से सीबीआई और ईडी क्षेत्राधिकारों का एक परोक्ष आवेदन है। यह एक लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को असमान बनता है। यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है क्योंकि केवल विपक्ष ही इन मामलों को लड़ रहा है। हम किसी लंबित मामले को प्रभावित नहीं करना चाहते हैं या किसी चल रही जांच में हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं, केवल दिशा-निर्देशों की मांग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून के परोक्ष आवेदन का हमारे लोकतंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा,

    "क्या आप कह रहे हैं कि इन आंकड़ों के कारण जांच से छूट मिलनी चाहिए?"

    उन्होंने कहा, नागरिकों के रूप में हम सभी एक ही कानून के अधीन हैं।

    उन्होंने कहा, "इस याचिका के साथ समस्या यह है कि आप दिशानिर्देशों में आंकड़ों को एक्सट्रपलेशन करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां आंकड़े केवल राजनेताओं पर लागू होते हैं। लेकिन, हम राजनेताओं के लिए विशेष रूप से दिशानिर्देश नहीं दे सकते।"

    उन्होंने कहा, "राजनीतिक नेता देश के नागरिकों के समान हैं। वे ऊंची पहचान का दावा नहीं कर सकते हैं। उनके लिए अलग प्रक्रिया कैसे हो सकती है?"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट अमूर्त दिशानिर्देश निर्धारित नहीं कर सकती।

    उन्होंने कहा,

    "एक या अधिक मामलों के साथ वापस आएं, जहां एक विशिष्ट उदाहरण या एजेंसियों का इस्तेमाल चुनिंदा नेताओं को लक्षित करने के लिए किया जा रहा है।"

    उन्होंने कहा, हमने जो कानून निर्धारित किया है, उसके आधार पर हम मामले के तथ्यों के संबंध में सामान्य सिद्धांत विकसित कर सकते हैं।

    ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ऐसे विशिष्ट तथ्यों के अभाव में सामान्य दिशा निर्देश पारित करना खतरनाक होगा।

    याचिकाकर्ताओं में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी, बीआरएस, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी, शिवसेना (UBT), जेएमएम, जेडीयू, सीपीएम, सीपीआई, समाजवादी पार्टी और जेएंडके नेशनल कांफ्रेंस शामिल हैं।

    याचिका के अनुसार, इन पार्टियों को पिछले राज्य/केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा चुनावों में 45.19% और 2019 के आम चुनावों में 42.5% मत प्राप्त हुए थे और 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ये सत्ता पर काबिज हैं।

    याचिका एडवोकेट शादन फरासत ने तैयार की है और दायर की है।

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