सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च को अंतरिम राहत के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट की चुनौती खारिज की
Shahadat
8 Jan 2024 5:00 AM GMT
![सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च को अंतरिम राहत के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट की चुनौती खारिज की सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च को अंतरिम राहत के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट की चुनौती खारिज की](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2023/09/12/750x450_491863-750x450415582-registration-of-fir-mandatory-if-information-discloses-cognizable-offence-supreme-court-reiterates.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम (Income Tax Act) की धारा 12ए के तहत रजिस्ट्रेशन रद्द करने के संबंध में सार्वजनिक नीति थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (संगठन) के पक्ष में दी गई रोक के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट की अपील को खारिज कर दी।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा,
"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दिया गया आदेश अंतरिम प्रकृति का है, हम हाईकोर्ट द्वारा पारित फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।"
संगठन ने राजस्व के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसमें एक्ट की धारा 12ए के तहत इसके रजिस्ट्रेशन को पूर्वव्यापी प्रभाव से रद्द करने की मांग की गई थी, जिससे इसकी कर छूट की स्थिति छीन ली गई। इसका प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट अरविंद पी दातार ने किया। उन्होंने तर्क दिया कि रजिस्ट्रेशन रद्द करने का आदेश केवल पिछले वर्ष के लिए दिया जा सकता है, जिसमें उल्लंघन देखा गया, और यदि उल्लंघन हुआ तो "बाद के पिछले वर्षों" के लिए। यह आग्रह किया गया कि लागू आदेश ने "मुद्दा-वार" कथित उल्लंघनों से निपटने के दौरान कई वित्तीय वर्षों के लिए रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया, जो एक्ट की धारा 12AB(4)(ii) का उल्लंघन करता है।
दातार ने हाईकोर्ट के समक्ष प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने तर्क दिया कि संगठन को उन व्यक्तियों से क्रॉस एक्जामिनेशन करने का अवसर नहीं दिया गया, जिनके बयान राजस्व द्वारा दर्ज किए गए और जिन पर उसके आदेश में भरोसा किया गया। इसके अलावा, इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कारण बताओ नोटिस के संबंध में कोई व्यक्तिगत सुनवाई नहीं की गई।
मामले की खूबियों पर गौर किए बिना हाईकोर्ट ने खुद को इस बात पर विचार करने तक ही सीमित रखा कि क्या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। प्रतिद्वंद्वियों की दलीलें सुनने के बाद प्रथम दृष्टया यह राय थी कि संगठन का रजिस्ट्रेशन 28 मई, 2021 से पहले वर्षों तक रद्द नहीं किया जा सकता।
हालांकि हाईकोर्ट ने राजस्व के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी, लेकिन राहत इस शर्त के अधीन है कि संगठन योगदानकर्ताओं के विवरण सहित प्राप्त योगदान का उचित खाता बनाए रखेगा। यदि कोई उल्लंघन हुआ तो अंतरिम आदेश में बदलाव के लिए राजस्व उसे अदालत के ध्यान में ला सकता है।
अपने फैसले पर पहुंचते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि रजिस्ट्रेशन रद्द करने के बाद संगठन घरेलू योगदानकर्ताओं से कोई योगदान स्वीकार नहीं कर सकता है।
यह मानते हुए कि संगठन के कर्मचारी और कार्य योगदान पर टिके हुए हैं, सुविधा का संतुलन इसके पक्ष में माना गया। इसमें यह भी जोड़ा गया कि संगठन को योगदान से वंचित करने से उसके वे कार्यक्रम पटरी से उतर सकते थे, जो पाइपलाइन में है।
तदनुसार, मामले में नोटिस जारी किया गया और स्टे दे दिया गया।
याचिकाकर्ताओं के वकील: एएसजी एन वेंकटरमन; अरिजीत प्रसाद; एओआर राज बहादुर यादव; वकील एचआर राव, अशोक पाणिग्रही और राजन कुमार चौरसिया।
उत्तरदाताओं के वकील: अरविंद पी दातार; एओआर बी विजयलक्ष्मी मेनन; सचिन जॉली, अनुराधा दत्त, दिशा झाम।
केस टाइटल: प्रधान आयकर आयुक्त (केंद्रीय) दिल्ली एवं अन्य बनाम सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, एसएलपी (सी) डायरी नंबर 44698/2023
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