सुप्रीम कोर्ट ने PM मोदी के वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव को चुनौती देने वाली बीएसएफ के पूर्व जवान की याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
24 Nov 2020 7:55 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने बीएसएफ के पूर्व जवान तेज बहादुर यादव की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव को चुनौती दी गई थी।
18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा था और कहा था कि देश के सबसे महत्वपूर्ण कार्यालय, यानी पीएमओ और इससे संबंधित मुद्दे को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रखा जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने ये तब कहा था जब याचिकाकर्ता के वकील ने सुनवाई के दौरान कई बार स्थगन और पासओवर की मांग की।
सीजेआई एस ए बोबडे ने कहा,
"हम पहले ही इसे कई बार स्थगित कर चुके हैं। यह एक महत्वपूर्ण मामला है, जो प्रधानमंत्री के अनूठे कार्यालय के इर्द-गिर्द घूमता है। हम इसे अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रख सकते।"
अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने अदालत को बताया था कि उनके मुवक्किल, पूर्व बीएसएफ जवान के नामांकन को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया था और उन्हें नोटिस जारी होने के बाद पर्याप्त समय नहीं दिया गया था।
इस बिंदु पर, सीजेआई बोबडे ने उनसे पूछा कि उक्त विवाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में कहां उठाया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पीएम मोदी के लिए उपस्थित हुए थे और उन्होंने अदालत को बताया कि विवाद को उच्च न्यायालय के समक्ष नहीं उठाया गया था और न ही अब इसे उठाया गया है।
गौरतलब है कि 6 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से लोकसभा चुनाव जीतने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था।
पीएम मोदी के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका बीएसएफ से बर्खास्त जवान तथा समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशी तेज बहादुर यादव ने दायर की थी। नामांकन से पहले तेज बहादुर यादव का पर्चा खारिज हो गया था।
हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने 58 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा था कि याचिकाकर्ता को इस चुनाव को चुनौती देने का अधिकार नहीं है क्योंकि वह न तो वाराणसी का मतदाता है और न लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी रहा है। इसलिए उसे पीड़ित पक्ष नहीं कहा जा सकता। तेजबहादुर को 24 घंटे में आपत्ति दाखिल करने का अधिकार था किंतु याचिका में यह आधार लिया गया है कि उसे आपत्ति करने का 24 घंटे का समय नहीं दिया गया।
दरअसल, वाराणसी सीट से नामांकन दाखिल करने वाले बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर यादव ने पीएम मोदी के निर्वाचन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनाव याचिका दाखिल की थी। याचिका में तेज बहादुर ने पीएम मोदी का चुनाव रद्द करने की मांग की थी। तेज बहादुर को समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। तेज बहादुर ने चुनाव अधिकारी पर आरोप लगाया था कि पीएम मोदी के दबाव में गलत तरीके से चुनाव अधिकारी ने उसका नामांकन रद्द किया था, जबकि गलत तथ्य देने व सही तथ्य छिपाने के आधार पर नामांकन निरस्त किया गया था।
याचिका पर 23 अक्तूबर को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था। पीएम मोदी की ओर से ये दलील दी गई थी कि वह वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के वोटर नहीं हैं। साथ ही नामांकन खारिज होने के बाद वह वाराणसी सीट से प्रत्याशी भी नहीं थे। लिहाजा निर्वाचन को वही व्यक्ति चुनौती दे सकता है जो कि वाराणसी लोकसभा क्षेत्र का मतदाता या प्रत्याशी रहा हो।
चुनाव याचिका में तेज बहादुर यादव का आरोप था कि उनका नामांकन सेना से बर्खास्त होने के चलते रद्द किया गया है, जबकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अगर किसी सरकारी कर्मचारी को उसके पद से बर्खास्त किया जाता है तो वह पांच साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकता, जब तक कि चुनाव आयोग उस व्यक्ति को इस बात का सर्टिफिकेट न जारी करे कि देशद्रोह और भ्रष्टाचार के आरोप में उसे बर्खास्त नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में तर्क दिया गया था कि उच्च न्यायालय जिला चुनाव अधिकारी द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 और 33 (3) के तहत प्रावधानों के दुरुपयोग की सराहना करने में विफल रहा है।
अधिवक्ता प्रदीप कुमार द्वारा दायर की गई और अधिवक्ता संजीव मल्होत्रा द्वारा दायर याचिका में आगे कहा गया कि मामले की योग्यता को ध्यान में रखने में नाकाम रहने पर उच्च न्यायालय द्वारा एक गंभीर त्रुटि की गई है और इस तरह, सिविल प्रक्रिया संहिता के VII नियम 11 के आदेश के "महज तकनीकी आधार" पर याचिका को खारिज करने को गलत ठहराया।
पूर्व बीएसएफ जवान ने वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से अपने नामांकन को अस्वीकार करने के रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले को चुनौती देते हुए पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वालीपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया था।