2008 बेंगलुरू सीरियल बम धमाकेः सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल नजीर मदनी की जमानत की शर्त में ढील देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

1 Oct 2021 8:10 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरू में 2008 में हुए सीरियल बम धमाकों के मुख्य आरोपी अब्दुल नजीर मदनी की जमानत की शर्त में ढील देने से इनकार कर दिया है।

    जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने शुक्रवार को मदनी की याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने 11 जुलाई 2014 को उन्हें दी गई जमानत की शर्त में ढील देने की मांग की थी। केरल ‌स्थित संगठन पीडीपी के चेयरमैन मदनी ने अनुरोध किया था कि उन्हें मुकदमे के लंबित रहने तक केरल में अपने गृहनगर की यात्रा की अनुमति दी जाए। जमानत की शर्त में उन्हें बेंगलुरू शहर नहीं छोड़ने के लिए कहा गया है।

    मदनी की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण से पीठ के समक्ष जमानत की शर्तों में ढील देने के लिए तीन आधारों का हवाला दिया था।

    भूषण ने कहा था-

    -मदनी की शारीरिक स्थिति ऐसी हो गई है कि उन्हें अपने गृहनगर में आयुर्वेदिक उपचार कराने की सलाह दी गई है।

    -उन्हें बेंगलुरू में किराए आदि के लिए बेवजह खर्च करना पड़ रहा है।

    -उनके पिता पूरी तरह से लकवाग्रस्त हैं। कैद के दौरान ही उनकी मां की मृत्यु हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट उन्हें मां के अंतिम संस्‍कर में शामिल होने की अनुमति दे चुका है।

    भूषण ने दलील दी कि मदनी के खिलाफ चार्जशीट में दावा किया गया एकमात्र सबूत यह है कि वह किसी बैठक में शामिल हुए थे, जिसमें कुछ साजिश रची जानी थी। वह व्हील चेयर से बंधे हैं। उनकी हालत खराब हो गई है। 2014 में उन्हें सशर्त जमानत दी गई थी और आश्वासन दिया गया था कि चार महीने में ट्रायल पूरा हो जाएगा। 7 साल हो गए हैं, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य पूरे हो गए हैं, सबूतों आदि से छेड़छाड़ का कोई सवाल ही नहीं है।

    कर्नाटक की ओर से पेश एडवोकेट निखिल गोयल ने जमानत की शर्तों में ढील के अनुरोध का विरोध किया। उन्होंने अदालत को बताया कि भूषण ने कहा है कि अभियोजन साक्ष्य समाप्त हो गया है, वह न्यायालय को यह बताने में विफल रहें हैं कि याचिकाकर्ता ने केरल के 44 अभियोजन गवाहों को वापस बुलाने के लिए आवेदन दायर किया है और वह केरल जाना चाहता है।

    गोयल ने कहा,

    "9 मामले हैं और प्रत्येक मामले में 200 गवाहों की जांच की गई है। 9 मामलों में से 7 में 31 आरोपियों के 313 बयान खत्म हो गए हैं। यह एक विशाल कार्य है, जो निचली अदालत ने किया है।"

    उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता शर्त 2 (उसे बेंगलुरू शहर तक सीमित रखा जाए) में छूट की मांग कर रहा है, जिससे शर्त 4 में छूट मिल जाएगी (सुनिश्चित करें कि वह किसी गवाह से संवाद न करे)।

    उन्होंने कहा, "इन शर्तों को विशिष्ट कारणों से लागू किया गया था। वह बाबरी मस्जिद से ही शामिल रहा है। कोयंबटूर विस्फोट में भी एक आरोपी था। उसके खिलाफ केरल में 24 मामले दर्ज हैं! यही कारण है कि उसे बेंगलुरू में रहने के लिए कहा गया है। उसका पैर 1992 में बाबरी मस्जिद के दर‌मियान कटा था, अभी नहीं। मामले में ऐसे गवाह हैं, जिन्होंने आगे आकर कहा है कि उन्हें प्रभावित करने की कोशिश हो रही हैं।"

    जस्टिस नजीर ने कहा, "श्री भूषण हमें खेद है कि हम छूट नहीं दे सकते।"

    भूषण ने अपनी दलीलों में आगे कहा कि याचिकाकर्ता को कभी भी किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है। 1992 में उन पर हमला हुआ था, उनका बाबरी मस्जिद से कोई लेना-देना नहीं था। राज्य ने 2014 में कहा था कि 4 महीने ट्रायल पूरा कर लिया जाएगा।

    "लेकिन श्री भूषण, आपने गवाहों को वापस बुलाने के लिए आवेदन दिया है।" बेंच ने भूषण से पूछा।

    प्रशांत भूषण ने अदालत ने बताया कि केवल कुछ मामलों में, जहां अभियोजन साक्ष्य को बदल दिया गया था, उन्हें वापस बुलाने के लिए आवेदन दायर किए गए थे। उनकी केरल में वैसे ही निगरानी हो सकती है, जैसे बेंगलुरू में हो रही है।

    भूषण ने कहा, "एक आदमी जिसे कभी दोषी नहीं ठहराया गया है, वह जेल में है या सशर्त जमानत पर। मुकदमा सात साल में खत्म नहीं हुआ है। उसे अपने पिता को देखने की जरूरत है। यह एक ऐसा मामला है, जहां इन परिस्थितियों में नियमित जमानत दी जाती है। मैं उसके लिए पूछ भी नहीं रहा हूं। उसे समान परिस्थितियों में रहने दें, लेकिन केरल में अपने गृहनगर में रहने दें। उसे कोयंबटूर विस्फोट मामले में बरी कर दिया गया था। उसे कभी भी दोषी नहीं ठहराया गया है।"

    पीठ ने कहा, "क्षमा करें, हम इसे खारिज कर रहे हैं।"

    जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने इससे पहले मौजूदा मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। पूर्व सीजेआई एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने मामले को एक अलग पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।

    मदनी ने मौजूदा अर्जी में इस आधार पर जमानत शर्त में ढील की मांग की थी कि जिस अंडरटेकिंग के आधार पर जमानत की शर्तें जीवित रहतीं, वह खत्म हो चुकी है। मुकदमा 6 साल बाद खत्म नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में मदनी को मुकदमे की सुनवाई लंबित रहने तक जमानत दी थी। फैसले का आधार था कि मदनी एक विचाराधीन कैदी है। वह चार साल से न्यायिक हिरासत में है और मधुमेह, हृदय रोग आदि जैसी बीमारियों से पीड़ित है।

    लश्कर-ए-तैयबा संदिग्ध टी नजीर के इकबालिया बयान में मदनी को बेंगलुरू विस्फोटों से जोड़ा गया था। आरोपपत्र में मदनी को 31 वें आरोपी के रूप में नामित किया गया है।

    केस शीर्षक : अब्दुल नजीर मदनी बनाम केरल राज्य|MA 448-456/2021 in SLP(Crl) No.8084-8092/2013

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