सुप्रीम कोर्ट ने जजों के मामले से अलग होने के लिए दिशा-निर्देश मांगने वाली रिट याचिका की खारिज, कहा- यह जजों के विवेक का मामला
Shahadat
17 May 2025 9:56 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (16 मई) को जजों के मामले से अलग होने के लिए दिशा-निर्देश मांगने वाली रिट याचिका खारिज कर दिया।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा,
"जजों के मामले से अलग होना जज के विवेक का मामला है। जजों के मामले से अलग होने के लिए दिशा-निर्देश तय करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए रिट याचिका खारिज की जाती है।"
पिछले साल कोर्ट ने उसी याचिकाकर्ता की इसी तरह की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट जज के खिलाफ जातिगत आक्षेपों पर आपत्ति जताई गई थी, जिन्होंने आदेश सुरक्षित रखने के बाद याचिकाकर्ता की याचिका से खुद को अलग कर लिया था। उस याचिका में जज के मामले से अलग होने की जांच की मांग की गई थी।
जजों के मामले से अलग होने के लिए दिशा-निर्देश मांगने तक सीमित नई याचिका दायर करने की न्यायालय द्वारा पहले दी गई स्वतंत्रता के अनुसरण में याचिकाकर्ता ने वर्तमान याचिका में फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुनवाई के दौरान जस्टिस ओक ने पूछा,
“हम इस तरह के दिशा-निर्देश कैसे बना सकते हैं? यह जज का अपना विवेक है।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट निशा तिवारी ने जवाब दिया कि उन्होंने कारण बताए हैं और अन्य देशों में अपनाई जाने वाली प्रथाओं का हवाला दिया है, जहां जजों को किसी भी हित संघर्ष के बारे में पक्षों को पहले से सूचित करना अनिवार्य है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाए गए सिद्धांतों का भी हवाला दिया कि “अनावश्यक रूप से सुनवाई से अलग नहीं होना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा,
“मेरे मामले में जज ने खुद को अलग कर लिया, कोई पीठ नियुक्त नहीं की गई, सिर्फ इसलिए कि ऐसे दिशा-निर्देश नहीं हैं। निर्णय सुरक्षित रखा गया, चार अलग-अलग मौकों पर घोषणा के लिए रखा गया और 5वें अवसर पर उन्होंने खुद को अलग कर लिया।”
जस्टिस ओक ने दोहराया,
“हम इस तरह के दिशा-निर्देश नहीं बना सकते।”
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की शिकायत भी दर्ज की कि कर्नाटक हाईकोर्ट की एक पीठ ने उनके मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और कोई नई पीठ नियुक्त नहीं की गई।
न्यायालय ने कहा,
“हम याचिकाकर्ताओं को प्रशासनिक पक्ष से हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास जाने की अनुमति देते हैं। हमें यकीन है कि अगर ऐसा कोई आवेदन किया जाता है तो चीफ जस्टिस एक पीठ नियुक्त करेंगे।”
जब तिवारी ने न्यायालय को बताया कि आवेदन पहले ही दायर किया जा चुका है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई तो जस्टिस ओक ने कहा,
"अब हमने एक आदेश पारित किया है कि आप प्रशासनिक पक्ष से आवेदन करें और चीफ जस्टिस इसे सौंपेंगे।"
केस टाइटल - चंद्रप्रभा बनाम भारत संघ

