सुप्रीम कोर्ट ने सजावट के लिए नियुक्त कर्मचारियों की बिजली के झटके से हुई मौत के मामले में नियोक्ताओं को दोषमुक्त किया

Shahadat

10 March 2025 4:51 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने सजावट के लिए नियुक्त कर्मचारियों की बिजली के झटके से हुई मौत के मामले में नियोक्ताओं को दोषमुक्त किया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो व्यक्तियों को दोषमुक्त किया, जिन पर अपने कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण (जैसे, हेलमेट, सुरक्षा बेल्ट, रबर के जूते) उपलब्ध नहीं कराने का आरोप था, जिसके कारण लोहे की सीढ़ी का उपयोग करके साइनबोर्ड पर काम करते समय बिजली के झटके से उनकी मृत्यु हो गई।

    अपीलकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 और 304ए के तहत FIR दर्ज की गई थी।

    ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं (नियोक्ताओं) के आरोपमुक्त करने का आवेदन खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि धारा 304 भाग II IPC के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सामग्री थी।

    विवादित निर्णयों को चुनौती देते हुए अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग II के तहत कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि अपराध के आवश्यक तत्वों का अभाव था, यानी अपीलकर्ताओं के पास मृत्यु का कारण बनने के लिए अपेक्षित ज्ञान या इरादा नहीं था और न ही उनके द्वारा धारा 304 भाग II के तहत दंडात्मक प्रावधान को आकर्षित करने के लिए उनके उतावले या लापरवाह व्यवहार को निर्दिष्ट करने वाला कोई सबूत पेश किया गया।

    विवादित निर्णयों को रद्द करते हुए जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालतों के लिए यह आवश्यक है कि वे डिस्चार्ज के लिए आवेदन पर निर्णय लेते समय प्रथम दृष्टया यह देखें कि आवेदक के खिलाफ आरोपित अपराध बनता है या नहीं। न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ताओं के पास मृत्यु का कारण बनने के लिए अपेक्षित ज्ञान या इरादा नहीं था।

    जस्टिस भुयान द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,

    “अपीलकर्ता नंबर 1 के दो मृतक कर्मचारी दुकान के सामने के हिस्से की सजावट का काम कर रहे थे। उक्त कार्य के तहत वे साइन बोर्ड पर काम कर रहे थे, जो जमीन से लगभग 12 फीट की ऊंचाई पर था। इस उद्देश्य के लिए उन्हें लोहे की सीढ़ी दी गई। साइन बोर्ड पर काम करते समय उन्हें बिजली का झटका लगा, जिसके परिणामस्वरूप वे करंट की चपेट में आ गए और गिर गए, जिससे उन्हें कई चोटें आईं और उनकी मौत हो गई। यह पूरी तरह से दुर्घटना थी। इन बुनियादी तथ्यों के आधार पर IPC की धारा 304ए के तहत अपराध करने के लिए अपीलकर्ताओं के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, IPC की धारा 304 भाग II की तो बात ही छोड़िए। किसी भी मामले में ट्रायल कोर्ट ने केवल IPC की धारा 304 भाग II के तहत अपीलकर्ताओं की दोषीता पर विचार किया, क्योंकि प्रतिबद्ध मजिस्ट्रेट ने अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों को IPC की धारा 304 भाग II तक सीमित करते हुए मामले को सेशन कोर्ट को सौंप दिया न कि IPC की धारा 304 ए आईपीसी तक।”

    उपरोक्त के अनुसार, न्यायालय ने अपील स्वीकार की तथा अपीलकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग II के अंतर्गत अपराध से मुक्त कर दिया।

    केस टाइटल: युवराज लक्ष्मीलाल कांथेर एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

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