सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम ज़मानत आवेदनों पर सीधे विचार करने को अस्वीकार किया, जारी किया नोटिस
Shahadat
10 Sept 2025 11:56 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट की अवहेलना करते हुए हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम ज़मानत आवेदनों पर सीधे विचार करने की प्रथा पर असहमति व्यक्त की।
न्यायालय ने इस प्रथा की उपयुक्तता पर विचार करने का निर्णय लिया और केरल हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया। केरल हाईकोर्ट ने चुनौती दिए गए आदेश को पारित किया था। न्यायालय ने एडवोकेट जी. अरुधरा राव की सहायता से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा को इस मामले में एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने स्वीकार किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों को अग्रिम ज़मानत आवेदनों पर विचार करने के लिए समवर्ती क्षेत्राधिकार प्रदान किया। हालांकि, खंडपीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ऐसे मामलों पर केवल असाधारण मामलों में ही सीधे विचार कर सकता है, वह भी विशेष कारणों से, जिन्हें दर्ज किया जाना है।
खंडपीठ ने कहा,
"हमारा मानना है कि यद्यपि सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) (पूर्व में CrPC की धारा 438) की धारा 482 के तहत गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत के लिए आवेदन पर विचार करने का समवर्ती क्षेत्राधिकार प्राप्त है। फिर भी न्यायालयों के पदानुक्रम की मांग है कि ऐसे उपाय चाहने वाले किसी भी व्यक्ति को संबंधित सेशन कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को दरकिनार करके BNSS (पूर्व में CrPC की धारा 438) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सीधे हाईकोर्ट जाने के लिए प्रोत्साहित या अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"
खंडपीठ एक ऐसे मामले पर विचार कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने सेशन कोर्ट का रुख किए बिना सीधे केरल हाईकोर्ट का रुख किया था।
खंडपीठ का विचार था कि यदि गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत के लिए आवेदन सीधे हाईकोर्ट में दायर करने की अनुमति दी जाती है तो न्यायालय ऐसे आवेदनों से "अटपटे" हो जाएंगे, जिससे "अराजक स्थिति" पैदा हो जाएगी। इसके विपरीत यदि पक्षकार पहले सेशन कोर्ट का रुख करते हैं तो एक प्रकार की "फ़िल्टरेशन" हो सकती है, क्योंकि कई आवेदनों को सेशन कोर्ट स्तर पर ही अनुमति दी जा सकती है।
अदालत ने कहा,
"यदि हाईकोर्ट में सीधे गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत के आवेदनों पर विचार करने की प्रथा को प्रोत्साहित किया जाता है और संबंधित पक्षों को पहले संबंधित सेशन कोर्ट का रुख करने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है तो हाईकोर्ट में गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत के आवेदनों की बाढ़ आ जाएगी, जिससे अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि सेशन जज किसी मामले के तथ्यों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं, क्योंकि उन्हें लोक अभियोजकों की प्रत्यक्ष सहायता और केस डायरी तक तत्काल पहुंच प्राप्त होती है।
सेशन जज, किसी विशेष जिले के पुलिस थानों में पंजीकृत सभी मामलों के संबंध में CrPC की धारा 438 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हैं। कार्य इस क्षेत्रवार वितरण को और अधिक सुविधाजनक बनाएगा और शीघ्र निपटान में सहायक होगा, यदि गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत के लिए आवेदन पहले सत्र न्यायालय में दायर किया जाए, जहां उस विशेष जिले के लिए नियुक्त संबंधित लोक अभियोजक की प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष सहायता उपलब्ध होगी। सेशन कोर्ट को केस डायरी तक भी तत्काल पहुंच प्राप्त होगी, जिससे मामले के तथ्यों को बेहतर ढंग से समझने में सुविधा होगी।
यह भी देखा गया कि कई हाईकोर्ट में अग्रिम ज़मानत के लिए वादी को पहले सेशन कोर्ट जाने की प्रथा प्रचलित है। हालांकि, विशेष परिस्थितियों में हाईकोर्ट कारणों को दर्ज करके किसी को सीधे सेशन कोर्ट से राहत प्राप्त करने की अनुमति दे सकता है।
आगे कहा गया,
"केवल (सेशन कोर्ट द्वारा) ऐसी राहत से इनकार किए जाने की स्थिति में ही वादी को ऐसी राहत प्राप्त करने के लिए हाईकोर्ट जाने की अनुमति दी जाएगी। यह निश्चित रूप से न्यायोचित अपवादों के अधीन है और हाईकोर्ट दर्ज किए जाने वाले कारणों से विशेष/असाधारण परिस्थितियों में सीधे अग्रिम ज़मानत के आवेदन पर विचार कर सकता है।"
गौरतलब है कि पिछले महीने जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने अन्य मामले में कहा था कि किसी अभियुक्त के लिए अग्रिम ज़मानत के लिए पहले सेशन कोर्ट जाना आवश्यक नहीं है। उक्त खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें इस आधार पर ज़मानत आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था कि सेशन कोर्ट से पहले संपर्क नहीं किया गया।
Case Title: MOHAMMED RASAL.C & ANR. VERSUS STATE OF KERALA & ANR., SLP (Crl.) No. 6588/2025

