गलत लिंक पर क्लिक करने के कारण एडमिशन से वंंचित रहे छात्र को सुप्रीम कोर्ट से राहत, आईआईटी बाॅम्बे को छात्र को अंतरिम प्रवेश देने के निर्देश

LiveLaw News Network

10 Dec 2020 4:00 AM GMT

  • गलत लिंक पर क्लिक करने के कारण एडमिशन से वंंचित रहे छात्र को सुप्रीम कोर्ट से राहत, आईआईटी बाॅम्बे को छात्र को अंतरिम प्रवेश देने के निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक 18 वर्षीय छात्र को राहत दे दी, जिसने आईआईटी-बॉम्बे में अपने प्रवेश का मौका खो दिया था क्योंकि उसने अनजाने में ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया के दौरान गलत लिंक पर क्लिक कर दिया था।

    जस्टिस एस के कौल,जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने एक अंतरिम आदेश देते हुए आईआईटी बॉम्बे को निर्देश दिया है कि वह आगरा के रहने वाले छात्र सिद्धांत बत्रा को प्रोविजनल एडमिशन दे दे। इस छात्र का JEE में ऑल इंडिया रैंक 270 आया है।

    पीठ ने संस्थान को नोटिस भी जारी किया है। अब इस याचिका पर शीतकालीन अवकाश के बाद सुनवाई की जाएगी।

    पीठ ने आदेश दिया कि, '

    'इस बीच, अंतरिम आदेश के तहत हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को प्रतिवादी-संस्थान में ज्वाइन करने और अन्य सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए अपने पाठ्यक्रम विषय का अनुसरण करने की अनुमति दी जानी चाहिए।''

    सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी एडवोकेट प्रीति शर्मा द्वारा दायर की गई थी और बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता बसवा प्रभु एस पाटिल ने मामले में बहस की।

    बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई है, जिसमें उनके प्रवेश को सुरक्षित करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। इस मामले में आईआईटी ने कहा था कि इस स्तर पर हस्तक्षेप करना संभव नहीं है क्योंकि पाठ्यक्रम के लिए सभी सीटें भर चुकी है,जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस छात्र की तरफ से दायर याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने संस्थान से कहा था कि वह सिद्धांत की याचिका पर एक प्रतिनिधित्व के रूप में विचार करे, जिसे अंततः अस्वीकार कर दिया गया था।

    एसएलपी में कहा गया कि, ''21 नवम्बर 2020 के प्रतिनिधित्व को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादियों ने ऊपर बताई गई घोषणा की अपनी व्याख्या के आधार पर ही इसे खारिज कर दिया है और आगे की सीट आवंटन प्रक्रिया में याचिकाकर्ता के वापिस लेने से रोक दिया...''

    अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद अपने दादा-दादी के साथ रहने वाले सिद्धांत ने कहा था कि उसने IIT JEE की परीक्षा को पास करने के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ कड़ी मेहनत की है।

    याचिका में यह भी कहा गया कि प्रवेश प्रक्रिया को ऑनलाइन भरने के दौरान, उसके सामने एक पेज आया,जिसमें 'फ्रीज' का विकल्प था। उसने सोचा कि इसका मतलब सीट की पुष्टि करने और अपनी प्रवेश प्रक्रिया को पूरा करना है।

    याचिकाकर्ता ने बताया कि उसने सोचा कि उसे पहले से ही अपनी पसंद की सीट आवंटित की जा चुकी है, इसलिए उसे सीट आवंटन प्रक्रिया के आगे के किसी राउंड में भाग नहीं लेने की जरूरत नहीं है,जो उन उम्मीदवारों के लिए थे जिन्हें राउंड 1 में सीट आवंटित नहीं की गई थी।

    याचिका में कहा गया है कि,''31 अक्टूबर, 2020 को जब वह आईआईटी पोर्टल को आगे के अपडेट की जांच के लिए चेक कर रहा था तो उसने एक लिंक देखा,जिसमें एक घोषणा की गई थी कि ''मैं JoSAA (संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण) की सीट आवंटन प्रक्रिया से विद्ड्रॉ करना चाहता हूं।''

    इसके बाद, नवंबर में जब अंतिम सूची तैयार की गई और प्रकाशित की गई तो तो याचिकाकर्ता काफी अचंभित हो गया क्योंकि उसका नाम इस सूची में शामिल नहीं था।

    यह भी कहा गया कि वर्तमान मामले में, संस्थान के पास आईआईटी एक्ट, 1961 की धारा 13 के अनुसार याचिकाकर्ता को एक अधीक्षण सीट देने का अधिकार व पाॅवर थी, लेकिन उन्होंने फिर भी याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व को अस्वीकार कर दिया।

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