सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से डिस्चार्ज करने के लिए कहकर याचिकाओं को खारिज करने की प्रथा की निंदा की
Shahadat
14 Nov 2024 8:33 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस प्रथा की निंदा की, जिसमें याचिकाकर्ताओं को आरोप मुक्त करने के लिए ट्रायल कोर्ट में आवेदन करने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें जालसाजी का मामला खारिज करने का आवेदन खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी, 2024 को तय की और तब तक के लिए सुनवाई पर रोक लगा दी।
जस्टिस ओक ने कहा,
“इस मामले को वापस जाना चाहिए, गुण-दोष पर कोई विचार नहीं किया जाना चाहिए। यह इस कोर्ट में एक पैटर्न बन गया है। विवाद का संदर्भ लें और कहें कि आपका उपाय डिस्चार्ज करने के लिए आवेदन करना है। हाईकोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए था। यह आसान फॉर्मूला है, जिसे हम दिन-प्रतिदिन अपनाते हैं। हम इस दृष्टिकोण की निंदा करते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपनाया गया यह सबसे आसान तरीका है। हम जानते हैं कि उन पर बहुत अधिक बोझ है। हर मामले में याचिका खारिज करते हुए वे कहते हैं कि आपके पास उपाय है, डिस्चार्ज के लिए आवेदन करें। डिस्चार्ज और निरस्तीकरण पूरी तरह से अलग-अलग हैं।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश अजय अग्रवाल द्वारा CrPC की धारा 482 के तहत दायर आवेदन से उत्पन्न हुआ, जिसमें एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, कोर्ट नंबर 2, बरेली द्वारा जारी 30 अक्टूबर, 2023 के समन आदेश को चुनौती दी गई। समन आदेश आईपीसी की धारा 430, 467, 468, 471, 352, 504 और 506 के तहत एक मामले से संबंधित है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष शिकायतकर्ता ने यह कहते हुए प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि चूंकि आवेदक की अग्रिम जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है और गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया, इसलिए गिरफ्तारी का कोई तत्काल खतरा नहीं है। यह तर्क दिया गया कि धारा 482 CrPC के तहत आवेदन गलत था। आवेदक का उचित उपाय धारा 239 CrPC के तहत ट्रायल कोर्ट के समक्ष डिस्चार्ज की मांग करना था।
हाईकोर्ट ने नोट किया कि आवेदक ने प्रथम सूचनाकर्ता द्वारा उठाई गई आपत्ति को दूर नहीं किया। धारा 482 CrPC के तहत हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया। हालांकि, इसने आवेदक को धारा 239 CrPC के तहत डिस्चार्ज आवेदन को दो सप्ताह के भीतर पेश करने का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया कि यदि ऐसा आवेदन दायर किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट दो महीने के भीतर तर्कसंगत निर्णय जारी करेगा। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि डिस्चार्ज आवेदन पर निर्णय होने तक आवेदक के खिलाफ कोई और कार्रवाई नहीं की जाएगी।
केस टाइटल- अजय अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य