कोविड के दौर में भी पराली जल रही थी, फिर भी आसमान नीला था; दिल्ली प्रदूषण के लिए सिर्फ किसानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
Praveen Mishra
1 Dec 2025 6:43 PM IST

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में लगातार बनी रहने वाली वायु प्रदूषण की समस्या के लिए किसानों को अलग से दोषी ठहराने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया। अदालत ने कहा कि स्टबल बर्निंग (पराली जलाना) कोविड लॉकडाउन के दौरान भी हो रही थी, जब दिल्ली की हवा अप्रत्याशित रूप से साफ थी और लोग नीला आसमान देख पा रहे थे।
चीफ जस्टिस सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ एम.सी. मेहता मामले की सुनवाई कर रही थी, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता से संबंधित है। अदालत ने कहा कि पराली जलाने के मुद्दे को “राजनीतिक रंग या अहंकार का विषय” नहीं बनाना चाहिए क्योंकि दिल्ली की जहरीली हवा के कई कारण हैं।
CJI सुर्यकांत ने कहा:
“वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार, सबसे अधिक योगदान किसका है? हम पराली जलाने पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, उन लोगों पर बोझ डालना गलत है जिनकी अदालत में बहुत कम प्रतिनिधित्व है। कोविड के समय भी पराली जलाई जा रही थी, लेकिन तब लोग साफ नीला आसमान क्यों देख पा रहे थे? यह मुद्दा राजनीति या अहंकार का विषय नहीं बनना चाहिए। किसान अगर पराली जला रहा है तो उसके पीछे भी आर्थिक कारण हैं।”
अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि उसकी एक्शन प्लान से धरातल पर क्या ठोस प्रभाव पड़ा है। CJI ने कहा:
“अगर आपने एक्शन प्लान तैयार कर लिया है तो उसे फिर से क्यों नहीं देखते? क्या इससे कोई सकारात्मक प्रभाव हुआ है? हमें हर कदम और उससे अपेक्षित परिणामों का विवरण चाहिए।”
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि पंजाब, हरियाणा और CPCB समेत सभी प्राधिकरण अपनी-अपनी कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करेंगे। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का लक्ष्य “ज़ीरो बर्निंग” है, जो अभी तक हासिल नहीं हुआ, लेकिन पराली जलाना केवल एक मौसमी कारण है।
जस्टिस बागची ने निर्माण गतिविधियों को बड़ा प्रदूषण स्रोत बताते हुए पूछा कि निर्माण प्रतिबंध को ज़मीनी स्तर पर कितनी प्रभावी तरह लागू किया गया।
ASG ने बताया कि सरकार के हलफनामे में वाहनों, निर्माण कार्य, धूल और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का श्रेणीवार डेटा है। उन्होंने IIT के 2016 और 2023 के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक धूल बड़े प्रदूषक हैं। “PM2.5 कण औद्योगिक क्षेत्रों में जहरीले रसायनों से लेपित हो जाते हैं और फेफड़ों में पहुंच जाते हैं,” उन्होंने कहा।
खंडपीठ ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के सदस्यों की विशेषज्ञता और पृष्ठभूमि का विवरण भी मांगा।
सुनवाई के दौरान एक वकील ने दिल्ली में अनियंत्रित सड़क किनारे पार्किंग और अत्यधिक वाहन घनत्व की समस्या उठाई। CJI ने कहा कि मेट्रो विस्तार दीर्घकालिक समाधान हो सकता है, लेकिन तुरंत प्रभाव वाले कदम जरूरी हैं।
एक अन्य वकील ने याद दिलाया कि 1990 के दशक में जस्टिस कुलदीप सिंह द्वारा CNG बसों के उपयोग संबंधी आदेश ने प्रदूषण नियंत्रण में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि आज भी ऐसे कठोर कदमों की आवश्यकता है।
मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।

