सुप्रीम कोर्ट ने दो नाबालिग बच्चों की निर्मम हत्या के दोषी को प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद की पुष्टि की

LiveLaw News Network

17 Feb 2021 4:42 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दो नाबालिग बच्चों की निर्मम हत्या के दोषी को प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद की पुष्टि की

    सुप्रीम कोर्ट ने सल्फास खिलाकर दो बच्चों की हत्या के दोषी व्यक्ति को शेष प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद की सजा की पुष्टि की है।

    गौरी शंकर को चार वर्ष और दो वर्ष की उम्र के दो नाबालिग बच्चों को सल्फास खिलाकर निर्मम हत्या करने का दोषी पाया गया था। ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था और 01 जुलाई 2013 को एक आदेश जारी करते हुए उसे प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद की सजा सुनायी थी और पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। हाईकोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी थी।

    शीर्ष अदालत के समक्ष अभियुक्त की दलील थी कि उसे शेष जीवन के अंतिम क्षण तक के लिए उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है, जो ट्रायल कोर्ट के न्यायिक अधिकार क्षेत्र के बाहर है और इसका निर्धारण केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है। उसने 'भारत सरकार बनाम वी. श्रीहरण उर्फ मुरुगन एवं अन्य 2016 (7) एससीसी 1' मामले में दिये गये निर्णय पर भरोसा जताया था।

    'वी श्रीहरण' मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि मृत्युदंड के विकल्प के तौर पर किसी भी विशिष्ट अवधि के लिए अथवा दोषी के जीवन के अंतिम क्षण तक के लिए संशोधित सजा प्रदान करने की शक्ति का इस्तेमाल केवल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है, किसी अन्य निचली अदालत द्वारा नहीं।

    उसकी अपील खारिज करते हुए न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा :

    5. कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप, अपीलकर्ता के वकील सही प्रतीत होते हैं, लेकिन हमने अभियोजन पक्ष के मामले को समग्रता में देखा है और अपराध के उद्देश्य की भी पड़ताल की है कि वह (अपीलकर्ता) शिकायतकर्ता अंजू के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहता था, जिसकी पूर्व की शादी से दो बच्चे थे, तथा जीवन के शुरुआती काल में ही सल्फास की गोली खिलाकर दोनों निर्दोष नाबालिग बच्चों की निर्मम हत्या करने का अपराध साबित भी हो चुका है। यह सही है कि प्राकृतिक जीवन के अंतिम क्षण तक के लिए उम्रकैद की सजा ट्रायल जज द्वारा नहीं दी जानी चाहिए थी, लेकिन सम्पूर्ण पहलुओं की पड़ताल करने के बाद हम इस मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उम्रकैद की सजा को प्राकृतिक जीवन की अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद के रूप में पुष्टि करना उचित मानते हैं।

    केस का नाम : गौरी शंकर बनाम पंजाब सरकार [ क्रिमिनल अपील नं. 135 / 2021 ]

    कोरम : न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 88

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