सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अल्पसंख्यक स्कूलों को RTE Act के अंतर्गत लाने की याचिका चीफ जस्टिस को भेजी

Shahadat

15 Oct 2025 6:08 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अल्पसंख्यक स्कूलों को RTE Act के अंतर्गत लाने की याचिका चीफ जस्टिस को भेजी

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्देश दिया कि बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) की धारा 1(4) और 1(5) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका उचित आदेश के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष प्रस्तुत की जाए। कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि अल्पसंख्यक संस्थानों पर RTE Act की प्रयोज्यता से संबंधित एक समान मुद्दा पहले से ही लंबित है।

    चूंकि यह मुद्दा चीफ जस्टिस के समक्ष पहले से ही लंबित है, इसलिए यह तय किया जा रहा है कि क्या एक बड़ी पीठ के समक्ष संदर्भ की आवश्यकता है। इसलिए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने निर्देश दिया कि वर्तमान याचिका भी चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

    संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका में अधिनियम की धारा 1(4) और 1(5) को चुनौती दी गई। धारा 1(4) के अनुसार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम अनुच्छेद 29 और 30 के अधीन लागू होता है। धारा 1(5) वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले अन्य विद्यालयों को अधिनियम के मूल दायित्वों से छूट प्रदान करती है।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि इन प्रावधानों के कारण अल्पसंख्यक विद्यालयों के स्टूडेंट्स के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने की आवश्यकता लागू नहीं होती है।

    याचिका में कहा गया,

    "6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को होने वाली क्षति बहुत बड़ी है, क्योंकि अनुच्छेद 21-ए के तहत गारंटीकृत शिक्षा का अधिकार, अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 38, 39, 46 के साथ पढ़ा जाए, 'समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा' का अर्थ रखता है। इसलिए कुछ विद्यालयों को टीईटी से बाहर करना अनुच्छेद 14, 19, 21, 21-ए, 30 और संविधान के स्वर्णिम लक्ष्यों के विरुद्ध है।"

    यह याचिका अंजुमन इशात-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में 1 सितंबर को दिए गए फैसले के आलोक में दायर की गई, जिसके तहत न्यायालय ने गैर-अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षकों के लिए टीईटी योग्यता अनिवार्य कर दी थी।

    याचिका में तर्क दिया गया कि अल्पसंख्यक संस्थानों को दी गई छूट अनुच्छेद 21ए के उद्देश्य को विफल करती है, जो छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।

    यह तर्क दिया गया है कि संस्थान की प्रकृति के आधार पर छूट प्रदान करके, धारा 1(4) और 1(5) संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती हैं। याचिका में आगे तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 21ए के तहत राज्य को एक समान पाठ्यक्रम और न्यूनतम शिक्षक-योग्यता मानकों के माध्यम से समान शैक्षिक अवसर सुनिश्चित करना आवश्यक है।

    यह भी तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 30, जो अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अधिकारों की रक्षा करता है, अनुच्छेद 21ए या समान शिक्षा प्रदान करने के राज्य के कर्तव्य का उल्लंघन नहीं करता है।

    इससे पहले, 1 सितंबर को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने पांच जजों वाली संविधान पीठ द्वारा दिए गए 2014 के प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट मामले के फैसले की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया, जिसमें कहा गया कि RTE Act अल्पसंख्यक विद्यालयों पर लागू नहीं होता।

    उस पीठ ने इस मुद्दे को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पास भेज दिया ताकि यह विचार किया जा सके कि क्या व्यापक पीठ के पास संदर्भ की आवश्यकता है। पीठ ने टिप्पणी की थी कि प्रमति मामले में अल्पसंख्यक संस्थानों को व्यापक छूट देने में गलती हुई और RTE Act लागू करने से अनुच्छेद 30(1) के तहत उनका अल्पसंख्यक स्वरूप नष्ट नहीं होता।

    Case Title – Nitin Upadhyay v. Union of India

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