सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिपूरक भूमि उपलब्ध न कराने तक केंद्र और राज्यों को वन भूमि में कमी करने पर रोक लगाई

Shahadat

4 Feb 2025 10:36 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिपूरक भूमि उपलब्ध न कराने तक केंद्र और राज्यों को वन भूमि में कमी करने पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को ऐसा कोई भी कदम उठाने से रोक दिया, जिससे देश भर में "वन भूमि" में कमी आए, जब तक कि उनके द्वारा प्रतिपूरक भूमि के लिए प्रावधान न किया जाए।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने निम्नलिखित प्रभाव से आदेश पारित किया:

    "अगले आदेशों तक केंद्र या किसी भी राज्य द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, जिससे वन भूमि में कमी आए, जब तक कि वनरोपण के प्रयोजनों के लिए राज्य या संघ द्वारा प्रतिपूरक भूमि उपलब्ध न कराई जाए।"

    संक्षेप में मामला

    न्यायालय वन संरक्षण अधिनियम (FCA) में 2023 संशोधनों को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के समूह से निपट रहा था। फरवरी, 2024 में इस मामले में अंतरिम आदेश पारित किया गया, जिसमें निर्देश दिया गया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को टीएन गोदावर्मन थिरुमलपाद बनाम भारत संघ के 1996 के फैसले में निर्धारित "वन" की परिभाषा के अनुसार कार्य करना चाहिए, जबकि सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया FCA में 2023 के संशोधन के अनुसार चल रही है।

    पिछले साल फरवरी में पारित आदेश के अनुसार, न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि भारत संघ 2 सप्ताह की अवधि के भीतर सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से टीएन गोदावर्मन निर्णय के अनुसार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा गठित विशेषज्ञ समितियों द्वारा "वन" के रूप में पहचानी गई भूमि का व्यापक रिकॉर्ड उपलब्ध कराने की मांग करेगा। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2024 तक विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्ट भेजकर निर्देशों का पालन करना था। यह भी निर्देश दिया गया कि रिकॉर्ड को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा बनाए रखा जाएगा, डिजिटल किया जाएगा और 15 अप्रैल, 2024 तक आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा।

    सुनवाई के दौरान, सीनियर एडवोकेट पीसी सेन (रिटायर आईएफएस अधिकारियों की ओर से पेश) ने आग्रह किया कि जब तक मामला लंबित है, तब तक वन भूमि का उपयोग अधिकारियों द्वारा प्रतिपूरक वनरोपण के लिए किया जा रहा है, जिससे वन भूमि क्षेत्र कम हो रहा है।

    उनके साथ सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन (आवेदक की ओर से) भी शामिल हुए, जिन्होंने प्रस्तुत किया कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने कुछ नियम (फिर नियमों के तहत दिशानिर्देश) जारी किए, जिन्हें आवेदन के माध्यम से चुनौती दी गई। सीनियर वकील ने आगे तर्क दिया कि न्यायालय के अंतरिम निर्देशों के अनुसार, कुछ राज्यों ने "वनों" की पहचान की है, जबकि कुछ ने नहीं की और जब तक यह अभ्यास पूरा नहीं हो जाता, तब तक नियमों को लागू नहीं होने दिया जा सकता है।

    उन्होंने कहा,

    "जबकि राज्यों ने अभी तक 'वनों' की पहचान नहीं की, नियमों को पूर्वव्यापी अनुमोदन की अनुमति देने के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    नियमों का हवाला देते हुए गोपाल एस ने तीन मुद्दे उठाए:

    (i) प्रतिपूरक वनरोपण के लिए भूमि देने के लिए वन भूमि पर पेड़ों को साफ किया जा रहा है।

    (ii) पूर्वव्यापी अनुमोदन की अनुमति नहीं है।

    (iii) रैखिक परियोजनाओं को एफसीए के तहत पूरी छूट दी गई, जो कि अनुमेय नहीं है।

    जवाब में जस्टिस गवई ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (संघ की ओर से) से पूछा,

    "क्या आप प्रतिपूरक वनरोपण के लिए वन भूमि का उपयोग कर रहे हैं?"

    केंद्र को विचाराधीन आवेदन की तामील न होने के कारण एएसजी ने याचिकाओं के समूह में न्यायालय के अंतरिम निर्देशों तक ही अपनी दलीलें सीमित रखीं। उन्होंने माना कि कुछ राज्यों ने न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन किया है और कुछ ने नहीं किया। उन्होंने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के साथ-साथ विचाराधीन आवेदन पर प्रतिक्रिया देने के लिए समय मांगा।

    इस बिंदु पर गोपाल एस ने प्रस्तुत किया कि जब तक वनों की पहचान नहीं हो जाती, तब तक कुछ सुरक्षा होनी चाहिए। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि वनों की पहचान करने के लिए अधिकारियों को 2 वर्ष का समय दिया गया, लेकिन पिछले 29 वर्षों में कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष अधिकारियों को सभी वनों की सूची अपलोड करने का निर्देश दिया गया, लेकिन यह अभी भी किया जाना बाकी है।

    अंततः पीठ ने गोपाल एस द्वारा दलील दी गई अंतरिम अर्जी पर नोटिस जारी किया।

    जस्टिस गवई ने एएसजी से मौखिक रूप से कहा,

    "आप ऐसी किसी भी चीज की अनुमति नहीं देंगे, जिससे वन क्षेत्र में कमी आए। यदि आप किसी वन क्षेत्र का उपयोग किसी रैखिक परियोजना के लिए कर रहे हैं तो आपको प्रतिपूरक वनीकरण के लिए उतनी भूमि उपलब्ध करानी होगी।"

    केस टाइटल: अशोक कुमार शर्मा, भारतीय वन सेवा (रिटायर) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1164/2023

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