सुप्रीम कोर्ट ने जेंडर पहचान के आधार पर बर्खास्त ट्रांस महिला शिक्षिका को मुआवज़ा दिया, ट्रांसजेंडर अधिकारों पर समिति का गठन

Shahadat

17 Oct 2025 12:10 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने जेंडर पहचान के आधार पर बर्खास्त ट्रांस महिला शिक्षिका को मुआवज़ा दिया, ट्रांसजेंडर अधिकारों पर समिति का गठन

    सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर अधिकारों पर महत्वपूर्ण फैसले में ट्रांस महिला शिक्षिका को मुआवज़ा देने का आदेश दिया, जिसकी शिक्षिका के रूप में सेवा एक साल के भीतर दो निजी स्कूलों, एक उत्तर प्रदेश और दूसरा गुजरात में, उन्होंने उसकी लैंगिक पहचान के आधार पर समाप्त कर दी थी।

    कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समान अवसर नीति तैयार करने हेतु दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर जज जस्टिस आशा मेनन की अध्यक्षता में समिति का भी गठन किया।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने जेन कौशिक द्वारा दायर रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया, जिन्हें उनकी ट्रांसजेंडर पहचान के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

    जस्टिस पारदीवाला ने कहा,

    "हमने सरकार द्वारा नीति दस्तावेज जारी किए जाने तक दिशानिर्देश तैयार किए। यदि किसी प्रतिष्ठान के पास दिशानिर्देश नहीं हैं तो हमने निर्धारित किया है कि आप केंद्र द्वारा नीति जारी किए जाने तक इन दिशानिर्देशों का पालन करेंगे।"

    जस्टिस पारदीवाला ने आगे कहा,

    "जिस तरह से उनके साथ व्यवहार किया गया और उनकी सेवाएं समाप्त की गईं, उसके लिए हमने उन्हें मुआवज़ा भी दिया है। हमने इस पर गंभीरता से संज्ञान लिया।"

    समिति के अन्य सदस्य कर्नाटक स्थित ट्रांसजेंडर राइट्स एक्टिविस्ट अकाई पद्मशाली, दलित अधिकार और ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता ग्रेस बानू, तेलंगाना स्थित ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता वैजयंती वसंत मोगली, जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर गौरव मंडल, बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी में वरिष्ठ एसोसिएट नित्या राजशेखर और एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया के रिटायर मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. संजय शर्मा होंगे।

    पदेन सदस्य सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव और शिक्षा मंत्रालय के सचिव होंगे।

    समिति का कार्यक्षेत्र-

    1. समान अवसर नीति का निर्माण।

    2. ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और 2020 के नियमों का अध्ययन।

    3. उचित समायोजन।

    4. शिकायत निवारण तंत्र।

    5. जेंडर और नाम परिवर्तन।

    6. ट्रांसजेंडर और लिंग-विविध व्यक्तियों के लिए समावेशी चिकित्सा देखभाल।

    7. जेंडर-विविध व्यक्तियों के लिए सुरक्षा।

    निर्णय सुनाए जाने के बाद जस्टिस पारदीवाला ने आशा व्यक्त की कि ये दिशानिर्देश भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

    Case Details: JANE KAUSHIK v UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(C) No. 1405/2023

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