सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने को कहा

Shahadat

9 Sept 2025 10:49 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने को कहा

    नौकरशाहों को भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा तय करने की अनुमति देने वाले प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के कुछ प्रावधानों पर "पुनर्विचार" करने को कहा।

    अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि 1956 का अधिनियम मुआवजे का निर्णय कार्यपालिका पर छोड़ देता है, जबकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम जैसे अन्य कानूनों के तहत अधिग्रहण के लिए न्यायिक निगरानी की आवश्यकता होती है। निष्पक्षता के महत्व पर ज़ोर देते हुए यह सुझाव दिया गया कि NHAI अधिग्रहण के मामले में मुआवजे का निर्धारण स्वतंत्र न्यायिक जांच से गुजरना चाहिए।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस पहलू पर केंद्र सरकार से निर्देश प्राप्त करने को कहा। यह निर्देश पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें NHA Act की धारा 3जे और 3जी को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक करार दिया गया था।

    संदर्भ के लिए, धारा 3जी मुआवजे के रूप में देय राशि के निर्धारण से संबंधित है। धारा 3जे में कहा गया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की कोई भी बात राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत अधिग्रहण पर लागू नहीं होगी।

    हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दा 1956 के अधिनियम के तहत "भेदभावपूर्ण" मुआवज़ा व्यवस्था की तुलना 1894 के अधिनियम और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 से करने के इर्द-गिर्द घूमता था। याचिकाकर्ताओं ने 1894 के अधिनियम की धारा 23(2) और धारा 28 के तहत प्रदान किए गए क्षतिपूर्ति (30% का अतिरिक्त मुआवज़ा) और ब्याज की मांग की थी।

    पक्षकारों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने पाया कि इन प्रावधानों ने 1894 और 2013 के अधिनियमों के तहत भूमि मालिकों को मिलने वाले लाभों से अनुचित रूप से वंचित किया।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि 1956 के अधिनियम की धारा 3जी और 3जे ने भूमि मालिकों को मुआवज़ा देने के लिए एक अनुचित और भेदभावपूर्ण व्यवस्था बनाई। जहां 1894 और 2013 के अधिनियमों के तहत भूमि मालिकों को अतिरिक्त वैधानिक लाभों के साथ अधिक मुआवज़ा मिलता है। वहीं 1956 के अधिनियम के तहत भूमि मालिकों को इससे वंचित रखा गया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

    भारत संघ बनाम तरसेम सिंह मामले में न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के तहत अधिग्रहण पर भी क्षतिपूर्ति और ब्याज लागू होना चाहिए। न्यायालय ने इस बात की पुनः पुष्टि की कि सभी भूमि अधिग्रहणों में समान मुआवज़ा मानक का पालन किया जाना चाहिए।

    Case Title: M/S RIAR BUILDERS PVT LTD AND ANR. Versus UNION OF INDIA AND ORS., Diary No. 26933-2025 (and connected cases)

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