सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को जमानत, पैरोल नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों का डेटा जमा करने को कहा

Brij Nandan

23 Sep 2022 6:24 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से कहा कि वे अदालत को उन व्यक्तियों की संख्या के बारे में सूचित करें जिन्होंने जमानत या पैरोल नियमों का उल्लंघन किया हैं और क्या उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई है।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि 17 फरवरी, 2020 के आदेश की एक प्रति सभी राज्य सरकारों को भेजी जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में जमानत और पैरोल नियमों का उल्लंघन करने वाले ऐसे लोगों के संबंध में एक राष्ट्रीय पोर्टल बनाने का प्रस्ताव रखा।

    अदालत ने सुझाव दिया कि डेटाबेस ऐसे सभी आरोपी व्यक्तियों का विवरण दिखा सकता है और इसे आम जनता द्वारा एक्सेस किया जा सकता है। इस उद्देश्य के लिए, न्यायालय ने भारत सरकार को भी नोटिस जारी किया।

    यह निर्देश 2011 में हत्या के दोषियों द्वारा दायर पांच अपीलों के मामले में पारित किया गया था, जो पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास को चुनौती दे रहे थे। पांच में से एक भगोड़ा अपराधी है और जमानत मिलने के बाद से कुछ समय से फरार है। इसने अदालत को राज्य की ट्रैकिंग प्रणाली से बचने वाले लोगों की संख्या से संबंधित बड़े मुद्दे को देखने के लिए प्रेरित किया, जब उन्हें जमानत दी गई या पैरोल पर रिहा कर दिया गया।

    अपील एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड उमंग शंकर के माध्यम से दायर की गई थी।

    सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि अवार्डों की घोषणा की जानी चाहिए ताकि आम जनता को राज्य की व्यवस्था से दूर भाग रहे लोगों को सामने लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

    बेंच ने कहा,

    "हमें सभी राज्यों से डेटा चाहिए।"

    अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि जिन लोगों का डेटा राष्ट्रीय पोर्टल में दर्ज किया जाएगा, उन्हें देखते हुए लोगों की पहचान करना मुश्किल काम होगा।

    आगे कहा,

    "मैं चर्चा कर रहा था, इतने सारे लोग होंगे। यह पता लगाना मुश्किल होगा। उस वेबसाइट पर लगभग 50,000 लोग होंगे। आप इसे कैसे देखते हैं, भले ही आप तस्वीरें डाल दें? यह एक मुश्किल काम है। लेकिन इसे शुरू करना होगा। शायद तारीख-वार, राज्य-वार।"

    जस्टिस ओका ने कहा,

    "आम तौर पर पैरोल में स्थानीय पुलिस थाने में रिपोर्ट करने की शर्त होती है। ऐसे व्यक्ति जो जमानत से बाहर हैं, उन्हें वास्तव में ट्रैक किया जा सकता है।"

    राजू ने कहा,

    "लेकिन वह रिपोर्टिंग (थाने में) दैनिक आधार पर नहीं है। सप्ताह में सिर्फ एक बार।"

    जस्टिस कौल ने तब याद किया कि आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए लंबित अपीलों से निपटने के दौरान वह क्या करते थे।

    आगे कहा,

    "इसलिए, जहां भी मैंने लंबित अपीलों में जमानत दी है, किसी भी अन्य शर्त के अलावा हर महीने के पहले सोमवार को रिपोर्ट करने के लिए। ताकि अगर कोई एक या दो बार रिपोर्ट नहीं करता है, तो आप जान सकते हैं कि वह गायब है। नहीं तो मामला आगे बढ़ सकता है, दस साल बाद पता चलता है कि वह व्यक्ति लापता है। कम से कम आपको चेतावनी तो दी जाएगी कि ऐसा व्यक्ति आपके रडार से गायब हो गया है।"

    एएसजी ने कहा,

    "कुछ करना होगा।"

    मामले की अगली सुनवाई नवंबर में होगी।

    2020 में एक सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि हरियाणा में जमानत से छूटने वाले घोषित अपराधियों की संख्या 6,428 है, और पैरोल से भागने वालों की संख्या 27,087 है।

    कोर्ट ने कहा कि स्थिति चिंताजनक है!

    केस टाइटल: कुलदीप @ मोनू बनाम हरियाणा राज्य एंड अन्य | सीआरएल.ए. संख्या 1000/2011 द्वितीय-बी

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