सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से मकान मालिक-किराएदार विवादों के लंबित मामलों पर गौर करने को कहा

Shahadat

5 Jun 2025 10:34 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से मकान मालिक-किराएदार विवादों के लंबित मामलों पर गौर करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा कि वह विभिन्न अदालतों में मकान मालिक-किराएदार विवादों के लंबित मामलों पर गौर करें और यदि बहुत से मामले अत्यधिक विलंबित पाए जाते हैं तो समय पर निपटान के लिए उचित कार्रवाई करें।

    जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने हाल ही में आदेश दिया,

    "हम बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करते हैं कि वह इस मुद्दे को उठाएं और मकान मालिक-किराएदार विवादों के लंबित रहने की अवधि के बारे में संबंधित अदालतों से रिपोर्ट मांगें। यदि यह पाया जाता है कि वर्तमान मामले जैसे कई मामले हैं तो इन मामलों के शीघ्र निपटान के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए या निर्देश जारी किए जाने चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक-किराएदार विवादों में मौद्रिक पहलू शामिल है और अदालतों का यह कर्तव्य है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी पक्ष को नुकसान न हो।

    अदालत ने कहा,

    "जब मकान मालिक-किराएदार विवादों की बात आती है तो संपत्ति के आनंद से वंचित होने और ऐसी संपत्ति के स्वामित्व से मिलने वाले मौद्रिक लाभों से वंचित होने का एक पहलू भी होता है। न्यायालय, कानून और न्याय के न्यायालय होने के नाते यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि उनके कारण किसी भी पक्ष को नुकसान न हो। इस तरह के विवादों में देरी से निर्णय का मतलब है कि दोनों पक्षों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।"

    दिसंबर, 2024 के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद न्यायालय के समक्ष दायर दो क्रॉस-अपीलों में यह आदेश पारित किया गया।

    यह विवाद 'प्रति वर्ग फुट दर' से संबंधित था, जिस पर हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स लिमिटेड (HOCL) के मुंबई स्थित 'हरचंद्राय हाउस' के 'किराएदार' के रूप में कब्जे के संबंध में मध्य लाभ की गणना की जानी थी। मामले के तथ्यों में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों में हस्तक्षेप नहीं किया, सिवाय इसके कि ब्याज दर को 8% से घटाकर 6% कर दिया गया। यह निर्देश दिया गया कि किरायेदार 3 महीने के भीतर मकान मालिक को देय राशि का भुगतान करेगा।

    हालांकि, न्यायालय ने मामले में हुई देरी पर "गहरी चिंता" व्यक्त की।

    आदेश में कहा गया,

    "यह विवाद ढाई दशक से अधिक समय से न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में है। मकान मालिक ने 2000 में सदी के अंत में किरायेदारी समाप्त करने के लिए कदम उठाए आज सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत जाने के बाद अब जाकर उन्हें अपनी संपत्ति का मौद्रिक लाभ मिलेगा।"

    इसके अलावा यह भी टिप्पणी की गई कि जहां कुछ मामलों में देरी के लिए मुकदमा करने वाले पक्ष खुद ही दोषी हैं, वहीं अन्य मामलों में न्यायिक मंचों को भी विवादों को सुलझाने में समय लेते देखा जा सकता है।

    अंततः, न्यायालय ने इस पहलू पर विचार करने और इस तरह के कई मामले पाए जाने पर शीघ्र निपटान के लिए उचित कार्रवाई करने का काम बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ दिया।

    Case Title: MOHIT SURESH HARCHANDRAI v. HINDUSTAN ORGANIC CHEMICALS LIMITED, C.A. No. 007188/2025

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