क्या गरीब लॉ ग्रेजुएट्स के लिए AIBE रजिस्ट्रेशन फीस में छूट दी जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने BCI से पूछा

Shahadat

18 July 2025 1:36 PM

  • क्या गरीब लॉ ग्रेजुएट्स के लिए AIBE रजिस्ट्रेशन फीस में छूट दी जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने BCI से पूछा

    सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से उन उम्मीदवारों के लिए फीस माफी की नीति बनाने पर विचार करने को कहा, जो अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) की फीस नहीं दे सकते।

    जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूकर की खंडपीठ AIBE के लिए ली जाने वाली 3500 रुपये की अत्यधिक फीस को लेकर दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो न्यायालय के 30 जुलाई, 2024 के पूर्व निर्णय के विपरीत है।

    30 जुलाई, 2024 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि राज्य बार इनरॉलमेंट फीस सामान्य वर्ग के वकीलों के लिए 750 रुपये और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के वकीलों के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता।

    BCI का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने ज़ोर देकर कहा कि 30 जुलाई के निर्णय के कारण BCI के लिए अन्य कार्यों को करने हेतु राजस्व के स्रोत सीमित हो गए।

    जस्टिस नरसिम्हा ने BCI के वकील से AIBE फीस पॉलिसी के पुनर्मूल्यांकन की संभावना पर विचार करने को कहा।

    उन्होंने कहा,

    "मूल्यांकन करके जांच कीजिए, हम नियामक नहीं बनना चाहते - BCI एक संस्था है, जिसका हम सम्मान करते हैं, यह बार के सदस्यों के प्रति अपने कई दायित्वों का ध्यान रखती है।"

    BCI के वकील ने कहा कि AIBE के लिए 3,500 रुपये की फीस अन्य मुख्यधारा की परीक्षाओं की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने आगे कहा कि जहां अधिकांश युवा पेशेवर उद्योग में दाखिल होने से पहले यह परीक्षा देते हैं, वहीं बहुत कम ऐसे होते हैं, जो इस पेशे में प्रवेश के 2 साल के भीतर यह परीक्षा देते हैं।

    इस अवसर पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा,

    "NLU और अन्य लॉ स्कूलों की फीस भी बहुत ज़्यादा हो गई... कर्ज लेना पड़ता है, काम करना पड़ता है और फिर यहां (इस पेशे में) आना पड़ता है, लेकिन आम तौर पर देश भर के अन्य संस्थानों के अलावा - सभी के लिए प्रैक्टिस करने के लिए 3500 रुपये देना ज़्यादा है - इस पर एक बार फिर विचार करना होगा और फिर हमें बताना होगा।"

    उन्होंने आगे कहा कि कानूनी उद्योग में आर्थिक विविधता को ध्यान में रखते हुए फीस निर्धारित किए जाने चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    "हम इस बारे में कोई सामान्य दृष्टिकोण नहीं बना सकते कि इसका क्या प्रभाव पड़ेगा - क्योंकि आबादी के विभिन्न वर्ग हैं। ज़िला अदालत में प्रैक्टिस करने वाला व्यक्ति बहुत बड़ी रकम वाला होता है। दिल्ली में अगर आप दोपहर या रात के खाने के लिए बाहर जाते हैं तो 3500 रुपये तो यूं ही उड़ जाते हैं!"

    खंडपीठ को बताया गया कि पिछले 3 वर्षों में AIBE में शामिल होने वाले लोगों की संख्या के आंकड़े इस प्रकार हैं - (1) AIBE 19 (दिसंबर 2024) - 2.29 लाख; (2) AIBE 18 (दिसंबर 2023) - 1.44 लाख; (3) AIBE 17 (फ़रवरी 2022) - 1.71 लाख।

    इसके बाद खंडपीठ ने उन लोगों के लिए एक कोष बनाने की संभावना पर विचार किया, जो 3500 रुपये की फीस वहन नहीं कर सकते।

    जस्टिस नरसिम्हा ने मौखिक रूप से टिप्पणी की:

    "क्या इस योजना में उन लोगों के लिए भी कुछ है, जो खर्च वहन नहीं कर सकते...क्या आपने इसके बारे में सोचा है? कुछ फंड आप बनाते हैं और अलग रख देते हैं...कोई आवेदन करता है कि कृपया छूट दें - क्या आपके पास ऐसी कोई योजना है? आपके पास ज़रूर होगी।"

    वकील इस पहलू पर विचार करने के लिए सहमत हुए और कहा कि एक संतुलित योजना की आवश्यकता होगी, अन्यथा यह ऐसे शुल्क छूट आवेदनों के लिए 'बाढ़ के द्वार' खोल सकता है।

    अब इस मामले की सुनवाई दो हफ़्ते बाद होगी।

    Case Details: KULDEEP MISHRA vs. BAR COUNCIL OF INDIA| W.P.(C) No. 000767 / 2024

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