'ट्रांजिट कैंप में 270 लोग बंद क्यों?': सुप्रीम कोर्ट ने असम के मुख्य सचिव को पेश होने को कहा, निर्वासन के लिए उठाए गए कदमों की जांच की

Shahadat

22 Jan 2025 12:47 PM

  • ट्रांजिट कैंप में 270 लोग बंद क्यों?: सुप्रीम कोर्ट ने असम के मुख्य सचिव को पेश होने को कहा, निर्वासन के लिए उठाए गए कदमों की जांच की

    ट्रांजिट कैंप में विदेशी नागरिकों को हिरासत में रखने से संबंधित मामले में असम सरकार के हलफनामे से निराश सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को अगली तारीख पर (वर्चुअल मोड के माध्यम से) उसके समक्ष पेश होने और जानकारी मांगने वाले अदालत के पहले के आदेश का पालन न करने के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने असम में हिरासत केंद्र/ट्रांजिट कैंप में लगभग 270 लोगों को निर्वासित करने के मुद्दे पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया, जिनमें 66 बांग्लादेश से हैं। इससे पहले इसने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) और असम सरकार से यह बताने को कहा था कि वे उक्त विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने की योजना कैसे बना रहे हैं।

    आदेश इस प्रकार लिखा गया:

    "राज्य को अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया गया। हमें उम्मीद है कि राज्य ट्रांजिट कैंप में 270 विदेशी नागरिकों को हिरासत में रखने के कारणों और हिरासत शिविर में बंद लोगों को निर्वासित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण रिकॉर्ड पर रखेगा। हलफनामे के अनुलग्नक से हमें पता चला कि कुछ विदेशी लगभग 10 साल या उससे अधिक समय से शिविरों में सड़ रहे हैं। हलफनामे में 270 लोगों को हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं दिया गया। इसके अलावा उन्हें निर्वासित करने के लिए उठाए गए कदमों का भी उल्लेख नहीं किया गया। यह इस न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन है। हम असम राज्य के मुख्य सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहने और गैर-अनुपालन के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश देते हैं।"

    मामले को 5 फरवरी को सूचीबद्ध करते हुए न्यायालय ने राज्य को 9 दिसंबर, 2024 को जारी निर्देश के पहले भाग का अनुपालन करने का निर्देश दिया, जिसके अनुसार राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव को हिरासत शिविर का दौरा करना था और एक रिपोर्ट दाखिल करनी थी।

    उल्लेखनीय है कि आदेश दिए जाने के बाद असम राज्य के वकील ने यह रुख अपनाया कि दायर हलफनामे को सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए, क्योंकि इसकी विषय-वस्तु संवेदनशील थी। आश्चर्यचकित होकर जस्टिस ओक ने उनसे यह स्पष्ट करने को कहा कि विषय-वस्तु "संवेदनशील" कैसे थी। जब वकील ने दावा किया कि हलफनामे में विदेशी नागरिकों के पते हैं। इसे प्रकट किया जा सकता है, क्योंकि वर्तमान मामला एक जनहित याचिका है तो आदेश में यह जोड़ा गया कि मुख्य सचिव "गोपनीयता" पर अपनाए गए रुख को स्पष्ट करें।

    "असम राज्य की ओर से उपस्थित होने वाले एडवोकेट ने कहा कि दायर हलफनामों को सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए, क्योंकि उनकी विषय-वस्तु गोपनीय है। यद्यपि हम निर्देश दे रहे हैं कि हलफनामों को सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए, लेकिन प्रथम दृष्टया हम एडवोकेट से असहमत हैं कि हलफनामे की विषय-वस्तु के बारे में कुछ गोपनीय है। हम राज्य के मुख्य सचिव को अगली तिथि से पहले गोपनीयता के बारे में अपनाए गए रुख को उचित ठहराते हुए हलफनामा दायर करने का निर्देश देते हैं।"

    उपरोक्त आदेश देने के बाद जस्टिस ओक ने टिप्पणी की कि गोपनीयता के बारे में अपनाए गए रुख से संकेत मिलता है कि राज्य स्पष्ट नहीं होना चाहता।

    सुनवाई की शुरुआत जस्टिस ओक ने असम के हलफनामे पर असंतोष जताते हुए की। उन्होंने कहा कि यह "पूरी तरह से दोषपूर्ण" है, क्योंकि राज्य से यह पूछा गया कि इतने सारे लोगों को शिविर में क्यों हिरासत में रखा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

    जज ने पूछा,

    "हमने अपने आदेश में जो कहा था। हम यह औचित्य चाहते हैं कि इन लोगों को निर्वासन की प्रक्रिया शुरू किए बिना ही हिरासत केंद्रों में क्यों रखा जा रहा है? हम आपके हलफनामे में कोई स्पष्टीकरण नहीं समझ पा रहे हैं। 270 विदेशी हैं... राज्य की कीमत पर इन लोगों को क्यों हिरासत में रखा जाना चाहिए?"

    इसके अलावा, उन्होंने पूछा कि राज्य कब विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की योजना बना रहा है।

    असम के वकील ने जब कहा कि लोगों को तभी हिरासत में लिया गया, जब उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा "विदेशी" घोषित किया गया तो जज ने पूछा कि अगर लोगों को ट्रिब्यूनल द्वारा ऐसा घोषित किया गया तो निर्वासन प्रक्रिया क्यों शुरू नहीं हुई?

    इस बिंदु पर असम के वकील ने समझाया कि अवैध प्रवासियों की निर्वासन प्रक्रिया केंद्र सरकार के माध्यम से होती है। एक अन्य मामले में भारत संघ के हलफनामे का हवाला देते हुए उन्होंने आग्रह किया कि (घोषित) अवैध प्रवासियों का पूरा विवरण, जिसमें संपर्क पता भी शामिल है, राज्य सरकार द्वारा विदेश मंत्रालय को उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जो फिर राजनयिक चैनलों के माध्यम से प्रवासियों की पहचान सत्यापित करता है।

    जस्टिस ओक ने जवाब में पूछा,

    "लेकिन इस प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है?"

    इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि व्यक्तियों को राज्य के खर्च पर हिरासत में लिया जा रहा है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके पास अधिकार हैं।

    जज ने आगे रेखांकित किया कि राज्य को इस बारे में डेटा देना चाहिए कि क्या प्रवासियों के खिलाफ कोई लंबित मामले हैं, या मामलों में दोषसिद्धि/बरी हुई है। यदि ऐसा है तो क्या संबंधित आदेश अंतिम हो गए हैं। यह देखते हुए कि कुछ लोग 2012 से हिरासत में हैं, जस्टिस ओक ने यह भी टिप्पणी की कि यह "दुखद स्थिति" है कि राज्य के वकील संबंधित व्यक्तियों को निर्वासित करने के लिए उठाए गए कदमों की व्याख्या करने में सक्षम नहीं थे।

    इसके बाद असम के वकील ने उल्लेख किया कि 203 अवैध प्रवासियों की राष्ट्रीयता सत्यापन केंद्र सरकार के समक्ष लंबित है। हालांकि, जस्टिस ओक ने बताया कि हलफनामे में यह उल्लेख नहीं किया गया कि पहचान सत्यापन प्रक्रिया कब शुरू की गई, यह क्यों लंबित है और राज्य द्वारा क्या अनुवर्ती कदम उठाए गए हैं।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "[आप] एक फॉर्म भेजेंगे और उस पर सो जाएंगे? वे आपके राज्य में हिरासत में हैं! आपके कंधों पर कोई जिम्मेदारी नहीं है? आप बस उन्हें सालों तक हिरासत में रखने की अनुमति देते हैं"।

    जज ने वकील से राज्य द्वारा दायर चार्ट के पहले पृष्ठ पर उल्लिखित 62 व्यक्तियों को निर्वासित करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी पूछा। जब उन्हें बताया गया कि उक्त अवैध प्रवासियों के विदेशी पते ज्ञात नहीं हैं तो जज ने रेखांकित किया कि कम से कम उनकी राष्ट्रीयता तो ज्ञात है।

    हालांकि असम के वकील ने जोर देकर कहा कि राज्य ने संबंधित प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन पीठ हलफनामे में अधिकांश पहलुओं पर चुप्पी के कारण प्रतिक्रिया से असंतुष्ट थी। अंततः, राज्य की ओर से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा गया।

    मामले में पहले की कार्यवाही

    मई में न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि असम के ट्रांजिट कैंप में हिरासत में लिए गए 17 घोषित विदेशियों को निर्वासित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं, क्योंकि उनके खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है।

    जुलाई में न्यायालय ने असम विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट के बाद "दुखद स्थिति" को चिह्नित किया, जिसमें हिरासत केंद्रों में अपर्याप्त जल आपूर्ति, खराब स्वच्छता और अपर्याप्त शौचालय सुविधाओं जैसे मुद्दों को उजागर किया गया। उस समय न्यायालय ने घोषित विदेशियों को जिन घटिया स्थितियों में रखा जा रहा था, उस पर चिंता व्यक्त की थी।

    अक्टूबर में न्यायालय ने असम एलएसए को सुविधा की स्वच्छता, भोजन की गुणवत्ता और समग्र जीवन स्थितियों का आकलन करने के लिए मटिया ट्रांजिट कैंप में अघोषित निरीक्षण करने का निर्देश दिया। यह निरीक्षण राज्य सरकार द्वारा अनुपालन हलफनामे में किए गए दावों को सत्यापित करने के लिए था कि उसने शिविर में स्थितियों में सुधार किया।

    दिसंबर में न्यायालय ने असम सरकार को निम्नलिखित पहलुओं/दस्तावेजों पर एक व्यापक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया: (i) हिरासत शिविर में हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के नाम; (ii) शिविर में उनकी हिरासत को उचित ठहराने वाले दस्तावेज; और (iii) शिविर में बंदियों को निर्वासित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम।

    केस टाइटल: राजुबाला दास बनाम भारत संघ और अन्य, रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 234/2020

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