सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट घोटाले में धोखाधड़ी के शिकार निर्दोष घर खरीदारों को फ्लैट वापस दिलाने के ED के प्रयासों की सराहना की
Shahadat
15 Oct 2025 9:55 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ज़ब्त की गई संपत्तियों को वापस दिलाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ED) के प्रयासों की सराहना की ताकि रियल एस्टेट धोखाधड़ी के शिकार निर्दोष घर खरीदारों की रक्षा की जा सके।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की खंडपीठ ने कहा कि एजेंसी की पहल से निर्दोष निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
कोर्ट ने कहा,
"हम ज़ब्त की गई संपत्तियों को वापस दिलाने के लिए ED द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं ताकि वास्तविक और निर्दोष घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।"
यह मामला राजस्थान के उदयपुर में रॉयल राजविलास हाउसिंग प्रोजेक्ट से संबंधित है, जो कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के तहत है। धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत भी एक मामला शुरू किया गया। ED द्वारा कई फ्लैटों को अस्थायी रूप से ज़ब्त किया गया।
हालांकि, निर्दोष घर खरीदारों को राहत देने के लिए ED ने सफल समाधान आवेदक मेसर्स उदयपुर एंटरटेनमेंट वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड को संपत्तियां वापस करने पर सहमति व्यक्त की।
इसके मद्देनजर, कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत ED द्वारा जारी अनंतिम कुर्की आदेश (PAO) संख्या 05/2019 को आंशिक रूप से रद्द किया और निर्देश दिया कि कुर्क की गई संपत्तियां उदयपुर एंटरटेनमेंट वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड को सौंप दी जाएं, जिसने घर खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए कॉर्पोरेट देनदार की भूमिका निभाई। ED के अनुसार, कुर्क की गई संपत्तियों का वर्तमान बाजार मूल्य लगभग 175 करोड़ रुपये है।
PMLA की धारा 8(8) के दूसरे प्रावधान के तहत पारित आदेश स्पष्ट करता है कि पक्षकारों के तर्कों के गुण-दोष पर निर्णय लिए बिना ही प्रतिपूर्ति की जा रही थी। हालांकि, रॉयल राजविलास परियोजना की 11 विशिष्ट इकाइयों के संबंध में कुर्की जारी रहेगी, जिनकी पहचान ED के 7 अक्टूबर, 2025 के अतिरिक्त हलफनामे में की गई। लगभग ₹8.65 करोड़ मूल्य की ये इकाइयां कथित तौर पर अपराध की आय से खरीदी गईं।
इसके अलावा, दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की धारा 32ए का प्रयोग करते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि फरवरी, 2025 में ED द्वारा दायर तीसरी पूरक अभियोजन शिकायत में अभियुक्तों की सूची से कॉर्पोरेट देनदार का नाम हटा दिया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपराध में शामिल पूर्व निदेशकों, षड्यंत्रकारियों और उकसाने वालों के विरुद्ध अभियोजन और जब्ती की कार्यवाही जारी रहेगी।
साथ ही खंडपीठ ने ED के पास यह अधिकार खुला रखा कि यदि सिंडिकेट बैंक धोखाधड़ी की चल रही जांच के दौरान, घर खरीदारों द्वारा बुक की गई कोई अन्य इकाई दागी धन से जुड़ी पाई जाती है तो वह कार्रवाई कर सकता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि IBC की धारा 32ए का लाभ तभी मिलेगा, जब समाधान आवेदक का कथित अपराध की आय के पूर्व प्रवर्तकों या लाभार्थियों से कोई संबंध न हो। यदि जांच के दौरान ऐसा कोई संबंध सामने आता है तो ED समाधान योजना को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र होगा।
इस आदेश के साथ राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT), मुंबई द्वारा समाधान योजना को मंजूरी दिए जाने को ED की चुनौती औपचारिक रूप से समाप्त हो गई। एजेंसी को PMLA अपीलीय न्यायाधिकरण (FPA-PMLA-3275/जेपी/2019) के समक्ष लंबित अपनी अपील वापस लेने और पुनर्स्थापित संपत्तियों के सेल डीड के रजिस्ट्रेशन की सुविधा के लिए अधिकारियों को तुरंत सूचित करने का भी निर्देश दिया गया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश वर्तमान मामले के तथ्यों तक ही सीमित हैं और मिसाल के तौर पर काम नहीं करेंगे। उसने राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर पीठ के समक्ष लंबित संबंधित रिट याचिका का निपटारा किया।
कार्यवाही का समापन करते हुए खंडपीठ ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
“हम वास्तविक और निर्दोष घर खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए कुर्क की गई संपत्तियों को वापस दिलाने में पक्षकारों के वकीलों और ED द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं।”
Case : Udaipur Entertainment World Private Ltd v. Union of India and others | SLP(C) No. 10734/2025

