सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‌जिन माता-पिता के पास मुलाकात का हक, लॉकडाउन की अवधि में प्रत्यक्ष मुलाकात के बजाय वीडियो कॉल से करें बच्‍चों से मुलाकात

LiveLaw News Network

30 April 2020 1:06 PM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण तलाक के मामलों में माता या पिता की मुलाकात अपने बच्चों से नहीं हो पा रही है, जिसे ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साधनों का सहारा लिया जा सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुलाक़ात का अधिकार पा चुके सभी माता-पिता लॉकडाउन की अवधि में प्रत्यक्ष मुलाकातों के बजाय वीडियो कॉल आदि का प्रयोग अप्रत्यक्ष मुलाकातों का लाभ उठा सकते हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ तनुज धवन की जनहित याचिका पर दिया, जिन्होंने उन बच्चों की मानसिक हालत पर चिंता व्यक्त की थी, जिनकी मुलाकात के हक के बावजूद अपने माता या पिता से मुलाकात नहीं हो पा रही है।

    डॉ धवन ने कहा, "कई जोड़े जो या तो अलग हो चुके हैं या तलाकशुदा हैं, उन्हें कोर्ट से अपने बच्चों से मुलाकात का हम प्राप्त हो चुका है, लेकिन लॉकडाउन की पाबंदियों के कारण वे मुलाकात नहीं कर पा रहे हैं।"

    उन्होंने कहा,

    "लॉकडाउन की अभूतपूर्व अवध‌ि में मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं में से है। इसी के कारण कई गैर सरकारी संगठन और मानसिक स्वास्थ्य संस्थान चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं, कहने की जरूरत नहीं है, महामारी के इस दौर में और बाद में लोगों में मनोवैज्ञानिक परिवर्तन देखे जाएंगे क्योंकि इस परिदृश्य ने समाज में और विशेष कर, बच्चों में ‌चिंता और अवसाद पैदा किया है।"

    उनकी दलीलों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने लॉक डाउन की अवधि के लिए प्रत्यक्ष मुलाकातों को इलेक्ट्रॉनिक मुलाक़ातों में परिवर्तित करने पर सहमति व्यक्त की।

    जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि लॉकडाउन के कारण, बच्चे अपने माता-पिता के साथ मुलाकात करने में असमर्थ हैं, भले ही उनके पास मुलाक़ात अधिकार हो। यदि उनके पास मुलाक़ात अधिकार हैं, तो हम सुझाव देते हैं कि वे प्रत्यक्ष मुलाकातों के बजाय इलेक्ट्रॉनिक संपर्क स्‍थापित कर सकते सभी पक्ष इस संबंध में पारस्परिक रूप से स्वीकार्य व्यवस्था कर सकते हैं। अगर किसी पक्ष को पीड़ा है तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।"

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: तनुज धवन बनाम कोर्ट

    केस नं: WP (C) डायरी नंबर 11058/2020

    कोरम: जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस बीआर गवई

    प्रतिनिधित्व: स्वयं याचिकाकर्ता; एसजी तुषार मेहता और एओआर बीवी बालाराम दास (सरकार के लिए)

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