सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति को भारतीय मूल के विदेशी नागरिक 3-वर्षीय चचेरे भाई को लीवर डोनेट करने की अनुमति दी; कहा- आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा

Shahadat

10 Nov 2023 12:01 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति को भारतीय मूल के विदेशी नागरिक 3-वर्षीय चचेरे भाई को लीवर डोनेट करने की अनुमति दी; कहा- आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को लीवर की पुरानी बीमारी से पीड़ित अपने 3-वर्षीय चचेरे भाई को लीवर डोनेट करने की अनुमति दे दी। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान आदेश किसी अन्य मामले के लिए मिसाल के रूप में काम नहीं करेगा।

    मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत प्राधिकरण समिति द्वारा धारा 9 में प्रदान की गई रोक का हवाला देते हुए लीवर डोनेट के लिए मंजूरी देने से इनकार करने के बाद अदालत का हस्तक्षेप आया।

    अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, प्राप्तकर्ता का केवल "निकट रिश्तेदार" ही अंग दान कर सकता है। अधिनियम "निकट रिश्तेदार" को "पति/पत्नी, पुत्र, पुत्री, पिता, माता, भाई, बहन, दादा, दादी, पोता या पोती" के रूप में परिभाषित करता है। प्रासंगिक रूप से "चचेरे भाई" को "निकट रिश्तेदार" की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है।

    समस्या इसलिए उत्पन्न हुई, क्योंकि रोगी और उसके माता-पिता भारतीय मूल के विदेशी नागरिक हैं और अधिनियम की धारा 9 की उप-धारा 1ए के लिए प्राधिकरण समिति की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है, जहां दाता या प्राप्तकर्ता विदेशी नागरिक है।

    इन तथ्यों और परिस्थितियों के तहत वर्तमान रिट याचिका दायर की गई, जिसमें बच्चे (पहले याचिकाकर्ता) के जीवन को बचाने और अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए दाता, दूसरे याचिकाकर्ता द्वारा लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति देने के निर्देश देने की मांग की गई।

    इससे पहले 01 नवंबर को कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को प्राधिकरण समिति के पास आवश्यक आवेदन दाखिल करने की अनुमति दी थी और समिति से उसी दिन एकत्रित होकर इस पर विचार करने का अनुरोध किया था।

    इसके बाद अगले ही दिन अस्पताल के वकील ने बेंच को सूचित किया कि डोनर की अभी तक काउंसलिंग नहीं की गई है। इस प्रकार, मामला स्थगित कर दिया गया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने प्राधिकरण समिति की रिपोर्ट की जांच के बाद कहा कि दो पहलुओं को लेकर विस्तृत कवायद की गई है। पहला, याचिकाकर्ता नंबर 1 और याचिकाकर्ता नंबर 2 के बीच संबंध और दूसरा, दाता बनने के लिए सहमत होने का इरादा।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस संबंध में डीएनए परीक्षण से यह स्थापित हो गया कि याचिकाकर्ता नंबर 2 याचिकाकर्ता नंबर 1 से संबंधित है।"

    गौरतलब है कि याचिका में यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ताओं के माता-पिता दान देने के लिए अयोग्य हैं। जहां मां का प्रेग्नेंसी का इलाज चल रहा है, वहीं उनके पिता का ब्लड ग्रुप उनसे मेल नहीं खाता है।

    उसी को संबोधित करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि, रिपोर्ट में विशिष्ट कारणों का खुलासा नहीं किया गया कि माता-पिता ने लिवर दान क्यों नहीं किया। हालांकि, अदालत ने माता-पिता को छूट दे दी है, यह देखते हुए कि एक उपयुक्त दाता है।

    अदालत ने कहा,

    “हालांकि विशिष्ट कारणों का खुलासा नहीं किया गया, याचिकाकर्ता नंबर 1 की मां की भावना पर ध्यान देना उचित होगा और उस संबंध में किसी भी स्थिति में माता-पिता को छूट दी जाएगी, क्योंकि वर्तमान मामले में एक उपयुक्त दाता है, जो रिश्तेदार है। चूंकि यह न्यायालय भी इस मामले में प्रामाणिकता के संबंध में संतुष्ट है और उस विशिष्ट परिस्थिति में जहां इस न्यायालय के लिए विकल्प तीन साल के बच्चे यानी याचिकाकर्ता नंबर 1 के जीवन को बचाने या निरपेक्ष रूप से कानूनी आवश्यकता का पालन करने के बीच है।”

    तदनुसार, न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए ऑपरेशन चलाने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: राजवीर सिंह बनाम भारत संघ, डायरी क्रमांक-45541-2023

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