अजमेर शरीफ दरगाह पर प्रधानमंत्री द्वारा 'चादर' चढ़ाने की परंपरा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
Praveen Mishra
23 Dec 2025 7:19 AM IST

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें इस्लामी विद्वान और सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और/या अजमेर शरीफ दरगाह को केंद्र सरकार व उसकी संस्थाओं द्वारा दिए जा रहे राज्य-प्रायोजित औपचारिक सम्मान और प्रतीकात्मक मान्यता को चुनौती दी गई है।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने की परंपरा पर रोक लगाई जाए। यह मामला आज चीफ़ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया, लेकिन अदालत ने तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं को रजिस्ट्री से संपर्क करने को कहा।
याचिकाकर्ता जितेंद्र सिंह (विश्व वैदिक सनातन संघ के अध्यक्ष) और विष्णु गुप्ता (हिंदू सेना के अध्यक्ष) हैं। उनका कहना है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को दिया जा रहा यह सरकारी संरक्षण और सम्मान असंवैधानिक, मनमाना, ऐतिहासिक रूप से आधारहीन और भारत गणराज्य की संवैधानिक भावना व संप्रभुता के विपरीत है।
प्रधानमंत्री द्वारा चादर चढ़ाने के संदर्भ में याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह परंपरा 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू की गई थी और तब से बिना किसी वैधानिक या संवैधानिक आधार के चली आ रही है। उन्होंने Dargah Committee, Ajmer v. Syed Hussain Ali मामले का हवाला देते हुए कहा कि अजमेर दरगाह अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक संप्रदाय नहीं है।
याचिका में यह भी दावा किया गया है कि सरकार के प्रमुख द्वारा दरगाह पर चादर चढ़ाना जन-इच्छा के विरुद्ध है। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं में से एक ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को प्रतिनिधित्व भी दिया है, जिसमें उनसे अजमेर शरीफ में चादर न चढ़ाने का अनुरोध किया गया है।

