सुप्रीम कोर्ट गौरक्षकों द्वारा मुसलमानों की मॉब लिंचिंग पर चिंता जताने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत, केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया
Avanish Pathak
28 July 2023 1:51 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया, जिसमें अदालत के तहसीन पूनावाला के फैसले के बावजूद मुसलमानों के खिलाफ विशेष रूप से 'गौरक्षकों' द्वारा लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों में वृद्धि पर चिंता जताई गई थी। 2018 के इस फैसले में शीर्ष अदालत ने लिंचिंग और भीड़ हिंसा की रोकथाम के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को व्यापक दिशानिर्देश जारी किए थे।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आज केंद्रीय गृह मंत्रालय और महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा राज्यों के पुलिस प्रमुखों से जवाब मांगा। मामले में एनएफआईडब्ल्यू की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए, जिन्होंने जोर देकर कहा कि सभी हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करना व्यर्थ होगा।
उन्होंने कहा,
“यदि माननीय न्यायालय मुझे हाईकोर्ट जाने के लिए कहें, तो कुछ नहीं होगा। मुझे इन सभी हाईकोर्टों में जाना होगा। और (मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को) क्या मिलेगा? दस साल बाद दो लाख का मुआवजा। यह [तहसीन पूनावाला] फैसले के बावजूद है। हम कहां जाएं? यह बहुत गंभीर मामला है।”
जस्टिस गवई ने नोटिस जारी करने के लिए कहते हुए सिब्बल से कहा तो आपने हमारे प्रश्न को पहले ही भांप लिया। सीनियर एडवोकेट ने उत्तर दिया, "पिछली बार जब आपने मुझसे हाईकोर्ट जाने के लिए कहा था, तो मुझे पता था कि यह होने वाला है।"
पृष्ठभूमि
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) ने शीर्ष अदालत से बढ़ती समस्या के समाधान के लिए "तहसीन पूनावाला मामले में निष्कर्षों और निर्देशों के संदर्भ में" तत्काल कार्रवाई करने के लिए संबंधित अधिकारियों को एक परमादेश जारी करने का आग्रह किया है।
इस संबंध में, याचिका में बिहार के सारण और महाराष्ट्र के नासिक में गोमांस की तस्करी के संदेह में भीड़ द्वारा मुसलमानों की पीट-पीटकर हत्या की दो हालिया घटनाओं का हवाला दिया गया है। एनएफआईडब्ल्यू ने प्रस्तुत किया है, "पिछले दो महीनों में हुई लिंचिंग और भीड़ हिंसा की ये घटनाएं कुछ उदाहरण हैं।"
संगठन ने आगे आरोप लगाया है कि राज्य मशीनरी लिंचिंग और भीड़ हिंसा के खतरे को रोकने के लिए पर्याप्त निवारक और परिणामी कार्रवाई करने में लगातार विफल रही है। यह सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बावजूद है कि राज्य का अपने नागरिकों को 'अनियंत्रित तत्वों' और 'सुनियोजित लिंचिंग और विजिलांट अपराधियों' से बचाना 'पवित्र कर्तव्य' है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि मॉब लिंचिंग और गौरक्षकों की घटनाओं को अल्पसंख्यकों के खिलाफ झूठे प्रचार के परिणामस्वरूप देखा जाना चाहिए जो सार्वजनिक कार्यक्रमों के साथ-साथ सोशल मीडिया चैनलों, समाचार चैनलों और फिल्मों के माध्यम से फैलाया जाता है।
तहसीन पूनावाला दिशानिर्देशों को लागू करने की मांग करने वाले परमादेश के लिए प्रार्थना करने के अलावा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन ने भी लिंचिंग पीड़ितों के लिए तत्काल राहत की मांग करते हुए मुआवजे की कुल राशि का एक हिस्सा पीड़ितों या उनके परिवार को दिए जाने की मांग की है।
यह याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन की ओर से एडवोकेट रश्मि सिंह ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सुमिता हजारिका के माध्यम से दायर की है।
केस डिटेलः नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य। | रिट याचिका (सिविल) संख्या 719/2023