'क्या हमने आपको पहले जाने देकर गलती की?': सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के सीएम को अनर्गल टिप्पणियों के लिए फिर से फटकार लगाई
Shahadat
3 April 2025 9:34 AM

सुप्रीम कोर्ट ने सदन में दिए गए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के कुछ बयानों को लेकर फिर से उन्हें आड़े हाथों लिया और आश्चर्य जताया कि क्या कोर्ट ने उन्हें पहले अवमानना नोटिस जारी न करके गलती की, जब उन्होंने भारत राष्ट्र समिति (BRS) नेता के कविता को कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने पर टिप्पणी की थी।
बता दें कि कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा स्पीकर की मौजूदगी में सीएम के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी कि अगर BRS विधायक कांग्रेस पार्टी में चले भी जाते हैं तो भी उपचुनाव नहीं होंगे। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि सीएम की टिप्पणी संविधान की "दसवीं अनुसूची का मजाक" है।
यह वार्तालाप तब हुआ, जब कोर्ट तेलंगाना में BRS पार्टी से सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में कुछ विधायकों के दलबदल के संबंध में दायर अयोग्यता याचिकाओं पर तेलंगाना विधानसभा स्पीकर से समय पर निर्णय लेने की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार कर रहा था।
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ को सीनियर एडवोकेट आर्यमा सुंदरम (याचिकाकर्ताओं की ओर से) ने बताया कि सदन की कार्यवाही के दौरान BRS विधायक ने मुख्यमंत्री से कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही पर चर्चा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन मुख्यमंत्री का मानना है कि "हमें जो कहना है, कहने का अधिकार है"।
सुंदरम ने मुख्यमंत्री का बयान इस प्रकार पढ़ा:
"स्पीकर महोदय, मैं आपकी ओर से विधानसभा में उपस्थित सभी लोगों से कह रहा हूं कि उन्हें भविष्य में किसी भी उपचुनाव के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। कोई उपचुनाव नहीं होगा। यदि विपक्षी विधायक उपचुनाव चाहते हैं तो भी कोई उपचुनाव नहीं होगा। ऐसा नहीं होगा। वे यहां आएं या वहां रहें, कोई उपचुनाव नहीं होगा।"
सीनियर एडवोकेट के अनुसार, जब BRS विधायक ने दावा किया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसलिए इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए तो सीएम ने जवाब दिया,
"हरीश राव [...] ने हमें याद दिलाया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अगर मैं सदन के अंदर बोलता हूं तो कुछ सुरक्षा मिलती है। लेकिन जो बाहर बोलते हैं, उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती। यह सदन कुछ कानूनों से मुक्त है। हम सदन में कुछ बातें बता सकते हैं। आपके नेतृत्व में सुरक्षा मिलती है। एक कहावत है कि अगले हफ्ते या उस हफ्ते उपचुनाव होंगे। यह सब बकवास है, स्पीकर महोदय। कुछ नहीं होने वाला है। कुछ भी बदलने वाला नहीं है। और किसी को भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। उपचुनावों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।"
सुंदरम ने इस तथ्य पर हमला किया कि स्पीकर चुप रहे, जबकि सीएम ने उनकी ओर से बोलने का दावा किया।
उन्होंने सवाल किया,
"मैं उनसे इस मामले को खत्म करने की उम्मीद कैसे कर सकता हूं? स्पीकर को कहना चाहिए था कि कृपया मेरी ओर से न बोलें, मैं इससे सहमत नहीं हूं। लेकिन वे चुप रहे। मैं स्पीकर से उचित समय में निर्णय लेने की उम्मीद कैसे कर सकता हूं?"
मुख्यमंत्री के बयानों को अस्वीकार करते हुए जस्टिस गवई ने सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी (तेलंगाना विधानसभा स्पीकर/सचिव की ओर से पेश) से पूछा,
"पहले के अवसरों के अनुभव के आधार पर क्या मुख्यमंत्री से कम से कम कुछ हद तक संयम बरतने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए थी? क्या हमने उस समय आपको जाने देकर और अवमानना के लिए कार्रवाई न करके कोई गलती की? अगर यह तरीका है...शक्तियों का पृथक्करण...हमें इस बात की परवाह नहीं है कि राजनेता क्या कहते हैं, लेकिन जब व्यक्ति पहले से ही इसी तरह की परिस्थिति का सामना कर रहा है...तो एक साल भी नहीं बीता है"।
जज ने कहा कि जहां सुप्रीम कोर्ट आत्म-संयम बरतता है, वहीं लोकतंत्र के अन्य दो अंगों से भी यही अपेक्षा की जाती है। सिंघवी, हालांकि मुख्यमंत्री की ओर से पेश नहीं हुए, उन्होंने दावा किया कि प्रतिलेख को चुनिंदा तरीके से पढ़ा जा रहा है और सदन में दूसरे पक्ष की ओर से उकसावे की बातें की गईं।
उन्होंने प्रतिलेख प्राप्त करने के लिए समय मांगा तो जस्टिस गवई ने बताया कि याचिकाकर्ता न्यायालय के समक्ष केवल पूर्ण प्रतिलेख ही पेश कर रहे थे। अंततः मामले को पटरी से उतरने नहीं देते हुए खंडपीठ ने सिंघवी से कानून पर अपनी दलीलें जारी रखने को कहा। पक्षों की सुनवाई के बाद मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया गया।
केस टाइटल: पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 2353-2354/2025 (और संबंधित मामले)