'क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करें': सुप्रीम कोर्ट ने COVID वैक्सीन के कारण दिव्यांग हुए व्यक्ति को दी सलाह

Shahadat

21 April 2025 10:21 AM

  • क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करें: सुप्रीम कोर्ट ने COVID वैक्सीन के कारण दिव्यांग हुए व्यक्ति को दी सलाह

    कोविशील्ड वैक्सीन के प्रशासन के बाद कथित रूप से विकसित हुई शारीरिक दिव्यांगता के लिए केंद्र सरकार और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से मेडिकल कवर की मांग कर रहे एक व्यक्ति से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करना उसके लिए बेहतर विकल्प होगा।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय के समक्ष रिट याचिका में वर्षों लग सकते हैं। इस दौरान, जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता के वकील को सुझाव दिया कि क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करने से जल्दी राहत मिल सकती है।

    सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस गवई ने टिप्पणी की,

    "इसके लिए रिट याचिका कैसे दायर की जा सकती है? क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करें।"

    इस बिंदु पर याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि न्यायालय के समक्ष पहले से ही दो समान याचिकाएं लंबित हैं, जहां समन्वय पीठों द्वारा नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने आगे बताया कि याचिकाकर्ता 100% निचले अंग दिव्यांता से पीड़ित है।

    इससे न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि न्यायालय याचिकाकर्ता की याचिका को लंबित मामलों के साथ जोड़ सकता है। हालांकि, रिट याचिका के मुकाबले क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर करना याचिकाकर्ता के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे उसे जल्दी राहत मिल सकती है।

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "यदि आप याचिका को यहां लंबित रखते हैं तो 10 साल तक यहां कुछ नहीं होगा। आपको केवल यही उम्मीद रहेगी कि मामला यहां लंबित है। कम से कम यदि आप मुकदमा दायर करते हैं तो आपको कुछ त्वरित राहत मिलेगी। 10 साल तक, यह (रिट याचिका) दिन की रोशनी नहीं देख पाएगी। कम से कम यदि मुकदमा दायर किया जाता है तो 1 साल, 2 साल, 3 साल में, आपको कुछ (राशि/राहत) मिलेगी...",

    अंततः, याचिकाकर्ता के वकील ने निर्देशों के साथ वापस आने के लिए समय मांगा और मामले को स्थगित कर दिया गया।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता ने AoR पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी के माध्यम से वर्तमान याचिका दायर की, जिसमें भारत सरकार (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय) और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (कोविशील्ड वैक्सीन के निर्माता) को निर्देश देने की मांग की गई:

    - यह सुनिश्चित करें कि वैक्सीन की पहली खुराक दिए जाने के बाद वह शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति के रूप में सम्मान के साथ रह सके।

    - उसके द्वारा किए गए मेडिकल खर्च की प्रतिपूर्ति करें और उसके भविष्य के उपचार व्यय की जिम्मेदारी लें।

    - यदि उसकी शारीरिक दिव्यांता का इलाज संभव नहीं पाया जाता है तो उसे मुआवजा प्रदान करें।

    उपरोक्त के अलावा, वह भारत में किए गए COVID टीकाकरण के विशेष संदर्भ में टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभावों (AEFI) के प्रभावी समाधान के लिए उचित दिशा-निर्देश चाहता है, जिसमें टीकाकरण और टीकाकरण-पूर्व चरणों के लिए मानक प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था।

    प्रार्थनाओं के समर्थन में याचिकाकर्ता ने पैरेंस पैट्रिया, पूर्ण दायित्व और रिस्टीट्यूटियो इन इंटीग्रम के सिद्धांतों और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों पर भरोसा किया है।

    केस टाइटल: प्रवीण कुमार बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 263/2025

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