सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए और समय मांगने के बाद उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित की

Shahadat

12 July 2023 6:28 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए और समय मांगने के बाद उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित की

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूर्व जेएनयू स्कॉलर और एक्टिविस्ट उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी, जिन्हें फरवरी, 2020 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के आसपास की बड़ी साजिश में कथित संलिप्तता के लिए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया। खालिद ट्रायल के इंतज़ार में सितंबर 2020 से सलाखों के पीछे है।

    जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ खालिद की याचिका पर विचार कर रही है, जिसमें पिछले साल जमानत देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई।

    संक्षिप्त सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस के वकील ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा।

    खालिद की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा,

    "दायर करने के लिए क्या जवाब है? यह जमानत याचिका है। वह आदमी दो साल और ग्यारह महीने से हिरासत में है।"

    प्रारंभ में खंडपीठ ने स्थगन के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और मामले को इस शुक्रवार को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। हालांकि, पुलिस के वकील ने और समय देने की प्रार्थना की।

    जस्टिस बोपन्ना ने अतिरिक्त समय के अनुरोध पर असहमति व्यक्त करते हुए वकील से कहा,

    "आपको आज तैयार रहना चाहिए था।"

    वकील ने अपना बचाव करते हुए कहा,

    "चार्जशीट बड़ी है, हजारों पन्नों में है। मुझे दो दिन पहले कागजात दिए गए।"

    अंततः खंडपीठ जमानत की सुनवाई सोमवार, 24 जुलाई तक स्थगित करने पर सहमत हो गई।

    पुलिस के वकील की इस चिंता के जवाब में कि सोमवार को बोर्ड बहुत 'भारी' हो सकता है, जस्टिस बोपन्ना ने दृढ़ता से कहा,

    "चाहे, सोमवार को बोर्ड भारी है, हमें निर्णय लेना होगा।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व रिसर्च स्कॉलर खालिद 2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगा मामले से संबंधित बड़ी साजिश के आरोपियों में से एक हैं। उन पर 59 अन्य लोगों के साथ आरोप लगाया गया, जिनमें पिंजरा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा शामिल हैं।

    मामले में जिन अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, उनमें पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन, कार्यकर्ता खालिद सैफी, शादाब अहमद, तसलीम अहमद, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं।

    खालिद और जेएनयू छात्र शरजील इमाम इस मामले में आरोपपत्र दायर करने वाले आखिरी व्यक्ति हैं। जरगर, कलिता, नरवाल, तन्हा और जहान को पहले ही जमानत मिल चुकी है। कलिता, नरवाल और तन्हा को पिछले साल जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने जमानत दे दी।

    खालिद पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13, 16, 17 और 18, शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    पिछले साल, अक्टूबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने खालिद को जमानत देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के मार्च 2022 के आदेश को बरकरार रखा।

    जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने पाया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक आयोजित विभिन्न 'षड्यंत्रकारी बैठकों' के माध्यम से 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की ओर केंद्रित थे, जिनमें से कुछ जिसमें खालिद भी शामिल थे।

    आदेश में हाईकोर्ट ने फरवरी 2020 में अमरावती में दिए गए भाषण में खालिद द्वारा 'इंकलाबली सलाम' (क्रांतिकारी सलाम) और 'क्रांतिकारी इस्तिकबाल' (क्रांतिकारी स्वागत) शब्दों का उपयोग करने पर भी गंभीरता से विचार किया और इसे भड़काने वाला कदम माना।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा,

    “क्रांति अपने आप में हमेशा रक्तहीन नहीं होती है, यही कारण है कि इसे विरोधाभासी रूप से उपसर्ग के साथ प्रयोग किया जाता है - 'रक्तहीन' क्रांति। इसलिए जब हम 'क्रांति' अभिव्यक्ति का उपयोग करते हैं तो यह जरूरी नहीं कि रक्तहीन हो।''

    मामले के दौरान पीठ ने यूएपीए के आरोपियों पर प्रधानमंत्री के खिलाफ 'जुमला' शब्द का इस्तेमाल करने पर भी सवाल उठाए और टिप्पणी की कि आलोचना के लिए 'लक्ष्मण रेखा' होनी चाहिए।

    खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और इस साल मई में जस्टिस बोपन्ना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने उनकी याचिका पर नोटिस जारी किया और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। उस महीने की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने सह-आरोपियों आसिफ इकबाल तन्हा, नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- उमर खालिद बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य | डायरी नंबर 14476/2023

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