"बिना पूर्वनियोजित अचानक उकसावा": सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी किसान को रिहा करने का निर्देश दिया, जिसने 18 साल जेल में बिताए

LiveLaw News Network

10 Feb 2021 5:32 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हत्या के आरोपी एक किसान को रिहा करने का निर्देश दिया, जिसने 18 साल जेल में बिताए थे।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग I के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, न कि आईपीसी की धारा 302 के तहत।

    परदेशीराम पर 30.5.2002 को घटी एक घटना में कार्तिक राम की हत्या का आरोप था। दीवार के निर्माण को लेकर उनके बीच विवाद के कारण, परदेशीराम ने कथित तौर पर मृतक पर फावड़े से हमला किया और फिर उसके सिर पर पत्थर से वार किया और परिणामस्वरूप, मृतक की मृत्यु हो गई। ट्रायल कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी।

    अपील में, यह तर्क दिया गया था कि अचानक झगड़ा होने से जुनून में बिना किसी पूर्व रणनीति के अपराध किया गया था और इस प्रकार, ये धारा 300 आईपीसी के अपवाद 4 के भीतर आता है। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि आरोपी और मृतक परिवार के सदस्य हैं और यह विवाद दीवार को बढ़ाने के सवाल पर हुआ।

    इसमें दलील दी गई थी,

    "अपीलकर्ता का आरोप है कि मृतक को फावड़े से मारा गया था, जो एक सामान्य कृषि उपकरण है, और बाद में मृतक को मारने के लिए एक पत्थर उठाया गया था। इस तरह की चोट लगने जोश के कारण लगी थी, जिससे मौत होने की संभावना रहती है। ये धारा 304 आईपीसी के पहले भाग के तहत गैर इरादतन हत्या के अपराध की श्रेणी में आएगा।"

    इन पहलुओं पर ध्यान देते हुए, बेंच ने कहा :

    "अभियुक्त एक कृषक है, और फावड़ा कृषि उपकरण का एक हिस्सा है जो कृषकों के पास होता है। आरोपी पर फावड़े के साथ पहला वार किया गया था, जिसके बाद मृतक के सिर पर एक पत्थर से प्रहार किया गया था जिसे सड़क से उठाया गया था। आरोपी और मृतक एक ही परिवार से थे। उकसावे का कारण बिना किसी पूर्वाभास के अचानक हुआ था। हम पाते हैं कि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, यह धारा 300 आईपीसी के अपवाद 4 के तहत आने वाला मामला है। अचानक झगड़े में जुनून की गर्मी में बिना किसी पूर्वसंचालन के चोटों को मारा गया और अपराधी को बिना फायदा पहुंचाए ये किया गया जोकि वो क्रूरतापूर्वक या असामान्य रूप से कृत्य कर सके। मामले के इस दृष्टिकोण में, हम पाते हैं कि अपीलार्थी धारा 304 भाग I के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी है। "

    इसलिए अदालत ने उसे पहले से ही हिरासत में काटी गई अवधि ( 18वर्ष) की सजा सुनाई; आरोपी और मृतक के बीच संबंध और पृष्ठभूमि जिसमें चोटें लगी थीं, पर भी ध्यान दिया था।

    मामला: परदेशी राम बनाम एमपी राज्य। (अब छत्तीसगढ़) [क्रिमिनल अपील नंबर 1730/ 2015]

    पीठ : जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट

    वकील : वरिष्ठ वकील संजय आर हेगड़े

    उद्धरण: LL 2021 SC 73

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