सुदर्शन टीवी का कार्यक्रम हिंदू-मुस्लिम संबंधों को तोड़ने का प्रयास, एडवोकेट शादान फरासत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

LiveLaw News Network

21 Sep 2020 4:14 PM GMT

  • सुदर्शन टीवी का कार्यक्रम हिंदू-मुस्लिम संबंधों को तोड़ने का प्रयास, एडवोकेट शादान फरासत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    सुदर्शन टीवी का शो 'बोल बिंदास' शो मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच की एकता को तोड़ने का एक प्रयास था, सोमवार को एडवोकेट शादान फरासत ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील पेश की। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा ​​और केएम जोसेफ की बेंच के समक्ष जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 3 छात्रों की ओर से वह पेश हुए थे।

    फरासत ने कहा, "यह सुनिश्चित करना राज्य की सकारात्मक ज़िम्मेदारी है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से निकले अधिकारों का एक नागरिक के ‌लिए उल्लंघन न हो। अगर उनका उल्लंघन किया जाता है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट चुपचाप देखता रहेगा?"

    उन्होंने तर्क दिया कि "हेट स्पीच" कानूनों को मौजूदा मामले में लागू होता है, शो की भाषा और भंगिमा के कारण शेष कड़ियों की टेलीकास्टिंग पर रोक लगाने के लिए ठोस मामला बनाता है।"

    उन्होंने शो की स्क्र‌िप्ट को पढ़ा और कहा कि वे "यहूदी-विरोधी" विषयों जैसे हैं, जो "हेट स्पीच" का क्लासिक उदाहरण हैं और सभी न्यायालयों में निषिद्ध है। उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का प्रत्यक्ष उल्‍लंघन था।

    इसके अलावा, उन्होंने कहा कि सुदर्शन टीवी ने कार्यक्रम की सामग्री को बदलने से पहले ही इनकार किया है। पिछली सुनवाई के दिन अदालत द्वारा उठाई गई चिंताओं की उसके हलफनामे में चर्चा नहीं की गई थी। कार्यक्रम में एक-दो तथ्य रखे गए हैं, लेकिन पूरी भाषा और प्रारूप साम्प्रदायिक घृणा में भरा है।

    उन्होंने कहा कि यही कारण है कि सुदर्शन टीवी ने अदालत के संकेत के बावजूद, शो के किसी भी हिस्से को हटाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

    फरासत ने कहा, "मेरे ओबीसी भाइयों की श्रेणी में घुसपैठ" जैसे बयान, उर्दू भाषा पर एंकर (सुरेश चव्हाणके) द्वारा प्रतिबंध लगाने की मांग और "साजिश" के बहाने मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लोगों को लगातार उकसाने जैसे बयान, शो में दिए गए हैं।"

    उन्होंने कहा कि यह दिखाता है कि चव्हाणके ने कैसे एक समुदाय के खिलाफ हेट स्पीच दी है। इसके बाद, फरासत ने तर्क दिया कि कैसे शो ने संवैधानिक सिद्धांतों पर हमला किया। इस संबंध में उन्होंने निम्न तर्क रखे,

    (1) रोजगार की समानता के अध‌िकार को पूरी तरह नीचा दिखाना, यह प्रत्यक्ष हमला है जो शो में किया गया है;

    2) कार्यक्रम का उद्देश्य नागरिकों के एक समूह की ऐसी छवि बनाना है जो वे देश में सार्वजनिक जीवन के योग्य नहीं हैं और यह गरिमा पर प्रहार हैं;

    3) हर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा राज्य पर सकारात्मक जिम्मेदारी है।"

    उन्होंने 'हाउ डेमोक्रेसी डाइज़' (डैनियल जिबलैट और स्टीवन लेवित्‍स्की द्वारा लिखित) किताब का उल्लेख करते हुए कहा कि खत्म होते लोकतांत्रिक देशों में, संस्थाएं वैचार‌िक रूप से मौजूद हैं, लेकिन अंदर से खोखली हो चुकी हैं।

    उन्होंने कहा‌ कि इसी प्रकार, अभद्र भाषा का निरंतर उपयोग लक्षित व्यक्ति को अमानवीय बनाता है। उन्होंने कहा, "तो, स्वाभाविक रूप से मैं एक नागरिक हूं लेकिन संविधान का अनुच्छेद 14 (जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है) मेरे लिए एक खोखला वादा है।"

    अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार पर अभद्र भाषा के प्रभाव को समझाते हुए उन्होंने कहा कि अभद्र भाषा एक ऐसा माहौल बना सकती है जहां लक्षित समुदाय के ख‌िलाफ हिंसा हो सकती है।

    रवांडन नरसंहार में रेडियो रवांडा के प्रोपगंडा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी प्रकार म्यांमार में रोहिंग्याओं के खिलाफ हिंसा को निरंतर अभियान के जरिए फैलाया गया था कि वे बहुमत के लिए खतरा हैं।

    उन्होंने इन बिंदुओं पर पहले विस्तार से कहा कि घृणा फैलाने वाला भाषण बहुसंख्यक समुदाय में भय पैदा करके पनपता है कि अल्पसंख्यक उनके लिए खतरा हैं।

    सुनवाई के दरम्यान, जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​ने टिप्पणी की कि चव्हणाके द्वारा नौकरशाही पर कब्जा करने का बयान अकबरुद्दीन ओवैसी, अब्दुल रऊफ और इमरान प्रतापगढ़ी के बयानों के संदर्भ में दिया गया। उन्होंने कहा "वे समान रूप से गंभीर हैं।"

    फरासत ने बताया कि अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान समस्याग्रस्त नहीं था। उन्होंने कहा कि प्रतापगढ़ी ने "कब्जा" शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा कि यह 18 सितंबर को जस्टिस जोसेफ ने आशय में प्रयोग किया था कि कई समुदाय 'सत्ता' में अपना हिस्सा लेने के लिए उत्सुक हैं।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने फरासत की सराहना की। उन्होंने कहा, "श्री फरासत ने बहुत बढ़िया तर्क दिया। मैं आपसे बड़ा हूं, मैं ऐसा कह सकता हूं!"

    वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी भी नेशनल ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन की ओर से पेश हुए और हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ज़कात फाउंडेशन इंडिया के लिए पेश हुए और बाद में अपना पक्ष रखने की मांग की।

    वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप चौधरी, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता गौतम भाटिया और शाहरुख आलम भी इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए उपस्थित हुए। अब इस मामले को 23 सितंबर को दोपहर 2 बजे उठाया जाएगा।

    जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा ​​और केएम जोसेफ की एक पीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके द्वारा होस्ट किया गया शो 'बिंदास बोल' मुस्लिम सेवाओं में मुसलमानों के प्रवेश को सांप्रदायिक रूप दे रहा था। ।

    15 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रथम दृष्टया अवलोकन करने के बाद शो के प्रसारण पर रोक लगा दी थी कि 'शो का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को खलनायक बनाना है।"

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