'स्टूडेंट्स को परेशानी नहीं होनी चाहिए': सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार और राज्यपाल से यूनिवर्सिटी में नियमित कुलपतियों की नियुक्तियों का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने का आग्रह किया
Shahadat
30 July 2025 12:48 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 जुलाई) को केरल के राज्यपाल और राज्य सरकार से आग्रह किया कि वे बिना किसी राजनीति में पड़े और स्टूडेंट्स के हितों को ध्यान में रखते हुए दो यूनिवर्सिटी [एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और केरल डिजिटल विज्ञान, नवाचार एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय] में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए सौहार्दपूर्ण ढंग से काम करें।
कोर्ट ने कहा कि वह कुलाधिपति से भी सहयोग की अपेक्षा करता है और राज्य सरकार की सिफारिशों पर विचार करेगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक नियमित कुलपतियों की नियुक्तियां पूरी नहीं हो जातीं, तब तक केरल के राज्यपाल (पदेन कुलाधिपति) वर्तमान अस्थायी कुलपतियों को उनके पदों पर बनाए रखने के लिए अधिसूचना जारी कर सकते हैं, या किसी नए व्यक्ति को अस्थायी आधार पर नियुक्त कर सकते हैं।
न्यायालय ने कहा,
"हमने अटॉर्नी जनरल से आग्रह किया कि अब पहला कदम दोनों विश्वविद्यालयों में नियमित कुलपतियों की नियुक्ति के लिए कदम उठाना होना चाहिए। इसमें कुछ समय लग सकता है। हालाँकि, इस बीच कुलाधिपति किसी व्यक्ति की नियुक्ति या पहले से नियुक्त व्यक्ति को कुलपति के पद पर नियुक्त करने हेतु अधिसूचना जारी कर सकते हैं। हमें सूचित किया गया कि नियमित कुलपति की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। हालांकि, खोज समिति के गठन को चुनौती दी गई... हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम आदेश पारित किया जा चुका है... आज हम केवल यही अनुरोध कर सकते हैं कि राज्य दोनों विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए कुलाधिपति के साथ मिलकर कोई व्यवस्था बनाए।"
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ केरल के राज्यपाल द्वारा एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें राज्य सरकार की सिफारिश के बिना विश्वविद्यालय के अस्थायी कुलपति की कुलाधिपति द्वारा की गई नियुक्ति को रद्द कर दिया गया था।
दोनों पक्षकारों का पक्ष सुनने के बाद न्यायालय ने राज्य सरकार और राज्यपाल से एक-दूसरे के साथ सहयोग करने का आह्वान किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि यह सवाल नहीं है कि शक्तियों का प्रयोग कौन करेगा।
न्यायालय ने कहा,
"हम उम्मीद करते हैं कि कुलाधिपति भी सहयोग करेंगे और राज्य सरकार के अधीन आने वाले सभी मामलों पर विचार करेंगे। अंततः, यह कोई मुद्दा नहीं है कि शक्तियों का प्रयोग कौन करेगा। यह स्टूडेंट की शिक्षा से जुड़ा है। इस तरह के मुकदमों में स्टूडेंट को क्यों परेशानी उठानी पड़े? मामले को लंबित रखते हुए हम राज्य की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट से अनुरोध करते हैं कि वे जल्द से जल्द एक नियमित कुलपति की नियुक्ति के लिए आवश्यक व्यवस्था तैयार करें। कुलाधिपति दोनों विश्वविद्यालयों में नियमित कुलपति की नियुक्ति होने तक दोनों अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार वर्तमान कुलपतियों को जारी रखने के लिए नई अधिसूचना जारी कर सकते हैं। यह प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू होनी चाहिए।"
जहां तक एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 13(7) और डिजिटल विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 11(10) की व्याख्या का प्रश्न है, न्यायालय ने कहा कि ये प्रावधान समान हैं और अधिकतम 6 महीने की अवधि निर्धारित की गई है। अतः, "इस पर और बहस की कोई आवश्यकता नहीं है"।
कुलाधिपति की ओर से उपस्थित भारत के महान्यायवादी आर. वेंकटरमणी ने कहा कि अस्थायी कुलपतियों का प्रश्न और क्या सरकार उनकी नियुक्तियों में कोई हस्तक्षेप कर सकती है, एक "बार-बार आने वाली समस्या" है।
इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने बताया कि अस्थायी कुलपति का कार्यकाल किसी भी स्थिति में छह महीने से अधिक नहीं हो सकता (जो वर्तमान मामले में समाप्त हो चुका बताया गया है)।
खंडपीठ के प्रश्न का उत्तर देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अस्थायी कुलपति की नियुक्ति 27 नवंबर, 2024 को हुई थी और उनका कार्यकाल 27 मई, 2025 को समाप्त हो रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका मुद्दा कार्यकाल का नहीं, बल्कि इस मुद्दे का है कि क्या नियुक्ति प्रक्रिया के लिए राज्य की अनुमति आवश्यक है।
राज्यपाल के अनुसार, यूजीसी विनियमों के तहत उन्हें राज्य सरकार की अनुमति के बिना अस्थायी कुलपति नियुक्त करने का अधिकार है। उनका तर्क है कि राज्य विश्वविद्यालय कानूनों के प्रावधान, जो सरकार की सिफारिश की आवश्यकता निर्धारित करते हैं, यूजीसी विनियमों द्वारा अधिरोहित हैं।
इस पृष्ठभूमि में अटॉर्नी जनरल ने दलील दी कि राज्यपाल और राज्य के बीच मतभेदों के कारण पूर्णकालिक कुलपति की नियुक्ति रुकी हुई है। इसके लिए अस्थायी कुलपति की नियुक्ति आवश्यक है। अदालत के एक विशिष्ट प्रश्न पर यह भी उल्लेख किया गया कि नियमित कुलपतियों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी गई, लेकिन राज्य सरकार ने खोज समिति के गठन को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने उसके पक्ष में एक अंतरिम आदेश पारित किया। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जब तक अंतरिम आदेश रद्द नहीं किया जाता, प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
राज्य सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने पीठ को सूचित किया कि एकल पीठ ने स्थायी कुलपति की नियुक्ति के भी निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि पूर्व में अस्थायी कुलपति की नियुक्ति को भी हाईकोर्ट ने इसी आधार पर रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम आदेश पारित किए जाने पर उन्होंने कहा कि उनके पास कोई निर्देश नहीं हैं।
इस मोड़ पर, जस्टिस पारदीवाला ने अटॉर्नी जनरल से कहा,
"कोई गतिरोध नहीं हो सकता। कुलाधिपति और राज्य सरकार के बीच सामान्य स्थिति होनी चाहिए। अन्यथा, स्टूडेंट को नुकसान होगा। पहला सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार के परामर्श से स्थायी कुलपति की नियुक्ति के लिए कोई कदम उठाया गया। आज, कुलपति के रूप में कोई भी नहीं है। अगर एक नियमित कुलपति नियुक्त हो जाता है तो मामला यहीं खत्म हो जाएगा।"
अटॉर्नी जनरल ने कहा,
"देखिए, हमारी समस्याएं क्या हैं..."
जस्टिस पारदीवाला ने जवाब दिया,
"हम समस्या जानते हैं। हर कोई समस्या जानता है।"
जज ने अंततः गुप्ता को बताया,
"सबसे पहले, उन्हें यूजीसी नियमों के अनुसार नियमित कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।"
मामले को समाप्त करने से पहले जस्टिस पारदीवाला ने दोनों पक्षों से स्टूडेंट्स के हित में इस मुद्दे को सुलझाने पर जोर दिया।
जज ने कहा,
"सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सही व्यक्ति की नियुक्ति की जाए। मिस्टर गुप्ता, आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है। मिस्टर अटॉर्नी और आप ही इसे सुलझा सकते हैं। हमें केवल स्टूडेंट्स की चिंता है।"
संक्षेप में मामला
हाईकोर्ट ने अपने विवादित आदेश में कहा था कि राज्यपाल (कुलाधिपति) केवल राज्य सरकार की सिफारिश पर ही छह महीने से अधिक की अवधि के लिए एक अस्थायी कुलपति नियुक्त कर सकते हैं।
नवंबर, 2024 में कुलाधिपति ने डॉ. के. शिवप्रसाद और डॉ. सीज़ा थॉमस को क्रमशः एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (केटीयू) और केरल डिजिटल विज्ञान नवाचार एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का अस्थायी कुलपति नियुक्त किया। 19 मई को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। 14 जुलाई को हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल पीठ का फैसला बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने कहा कि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 13(7) के अनुसार, जहां खंड (i) से (v) में उल्लिखित किसी भी परिस्थिति में कुलपति का पद रिक्त होता है, वहां कुलाधिपति किसी अन्य विश्वविद्यालय के कुलपति या प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति या सरकार द्वारा अनुशंसित उच्च शिक्षा विभाग के सचिव को कुल मिलाकर छह महीने से अधिक की अवधि के लिए कुलपति नियुक्त कर सकते हैं।
Case Title : The Chancellor, APJ Abdul Kalam Technological University v. State of Kerala & Ors., Diary No. 40761/2025

