विशिष्ट राहत अधिनियम | जब शर्तों के अनुसार विशिष्ट अदायगी नहीं की गई तो पक्षकार समय को अनुबंध का सार होने का दावा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
21 April 2023 10:45 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब अनुबंध की शर्तों के अनुसार विशिष्ट अदायगी नहीं की गई तो समय के अनुबंध का सार होने का सवाल ही नहीं उठता है।
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने गद्दीपति दिविजा और अन्य बनाम पाथुरी साम्राज्यम और अन्य में दायर अपील का फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुबंध में समय सार नहीं होगा, जिसमें पक्षकार के दायित्व दूसरे पक्ष के दायित्वों की पूर्ति पर निर्भर हैं।
पृष्ठभूमि तथ्य
14.08.2002 को जी. वेणुगोपाल राव (श्री राव) ने अपनी अचल संपत्ति के संबंध में पाथुरी साम्राज्यम (प्रतिवादी नंबर 1) के साथ बिक्री का समझौता किया। प्रतिवादी नंबर 1 ने श्री राव को आंशिक अग्रिम प्रतिफल राशि का भुगतान किया। समझौते में दर्ज है कि श्री राव संपत्ति का सीमांकन करने और शेष बिक्री प्रतिफल प्राप्त करने के बाद तीन महीने के भीतर प्रतिवादी नंबर 1 के पक्ष में सेल्स डीड निष्पादित करेंगे।
इसके बाद प्रतिवादी नंबर 1 को इस तथ्य की जानकारी हुई कि श्री राव के खिलाफ वसूली की कार्यवाही में सिविल कोर्ट द्वारा संपत्ति कुर्क की गई। इसलिए प्रतिवादी नंबर 1 ने श्री राव से कहा कि वह संपत्ति का माप करवाएं और उसकी कुर्की को हटा दें; जिसके बाद प्रतिवादी नंबर 1 शेष बिक्री मूल्य का भुगतान करेगी और संपत्ति को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवा लेगी। इस बीच श्री राव की 2003 में मृत्यु हो गई और उनके दो नाबालिग बच्चे और पत्नी (अपीलार्थी) बच गए।
29.03.2004 को प्रतिवादी नंबर 1 ने श्री राव के कानूनी उत्तराधिकारियों को कानूनी नोटिस भेजा और शेष बिक्री प्रतिफल का भुगतान करके अनुबंध का हिस्सा निभाने की इच्छा व्यक्त की।
तत्पश्चात, प्रतिवादी नंबर 1 ने प्रतिवादी नंबर 1 के पक्ष में सेल्स डीड निष्पादित करने के लिए कानूनी उत्तराधिकारियों को निर्देश देकर 14.08.2002 के बिक्री समझौते के विशिष्ट अदायगी की मांग करते हुए सिविल कोर्ट के समक्ष मुकदमा दायर किया।
22.08.2007 को ट्रायल कोर्ट ने देखा कि प्रतिवादी नंबर 1 यह साबित करने में विफल रही कि वह अनुबंध के विशिष्ट अदायगी के हकदार है और उसे अग्रिम प्रतिफल राशि की वापसी का निर्देश दिया।
अपील में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि केवल समय निर्धारित करने से समय अनुबंध का सार नहीं बन जाएगा और अचल संपत्ति की बिक्री के मामले में आमतौर पर समय अनुबंध का सार नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिवादी नंबर 1 ने विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (2018 के संशोधन से पहले) की धारा 16 (सी) में निर्धारित शर्तों को पूरा किया। इस प्रकार विशिष्ट राहत पाने का हकदार है।
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को श्री राव के ऋण का निर्वहन करने, संपत्ति को कुर्की से मुक्त करने और उसके बाद संपत्ति का सीमांकन करने के बाद प्रतिवादी नंबर 1 के पक्ष में सेल्स डीड निष्पादित करने का निर्देश दिया।
अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 16 के तहत आवश्यकताएं
विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (एसआरए एक्ट) की धारा 16 में वादी को दलीलों में शामिल होने की आवश्यकता होती है और यह भी साबित करना होता है कि उसने अनुबंध के तहत अपने दायित्वों को निभाने के लिए अदायगी की है या हमेशा अनुबंध के अनुसार, विशिष्ट अदायगी के लिए तैयार रहा है। इसके अलावा, एक्ट की धारा 16(सी) के स्पष्टीकरण में कहा गया कि पैसे के भुगतान से जुड़े अनुबंध में वादी को वास्तव में प्रतिवादी को पैसा जमा करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसने अनुबंध किया, या इसके वास्तविक निर्माण के अनुसार, अनुबंध को पूरा करने के लिए तैयार है।
हालांकि, 2018 में एसआरए एक्ट की धारा 16 में संशोधन के बाद प्रदर्शन करने की अपनी इच्छा को पूरा करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया। चूंकि मामला 2002 का है, इसलिए तब एसआरए एक्ट की संशोधित धारा 16 लागू नहीं।
जब अनुबंध की शर्तों का विशिष्ट निष्पादन नहीं किया गया हतो समय सार होने का प्रश्न ही नहीं उठता
बिक्री के संबंधित समझौते में समय सार का है या नहीं, यह तय करते हुए खंडपीठ ने कट्टा सुजाता रेड्डी बनाम सिद्दामसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड और 2022 लाइवलॉ (एससी) 712 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह दोहराया गया कि अचल संपत्ति की बिक्री में ऐसा कोई अनुमान नहीं है कि समय अनुबंध का सार है। हालांकि, न्यायालय उचित समय में अदायगी का अनुमान लगा सकता है यदि अनुबंध की स्पष्ट शर्तों से, संपत्ति की प्रकृति से और आसपास की परिस्थितियों से शर्तें स्पष्ट हैं।
खंडपीठ ने पाया कि शेष राशि का भुगतान करने के लिए क्रेता का दायित्व विक्रेता के दायित्व की पूर्ति पर निर्भर है कि वह तीन महीने के भीतर जमीन की माप और सीमांकन करवा ले। इस प्रकार, मामले के तथ्य कट्टा सुजाता रेड्डी बनाम सिद्दामसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड और अन्य के मामले से अलग हैं।
तदनुसार, यह निम्नानुसार देखा गया,
"इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जब तक विक्रेता को तीन महीने के भीतर विषयगत भूमि को मापा और सीमांकित नहीं किया जाता है, तब तक क्रेता (प्रतिवादी नंबर 1 यहां/वादी) के लिए सेल्स डीड निष्पादित करना असंभव होगा। इस तरह, शेष बिक्री प्रतिफल के भुगतान का प्रश्न ही नहीं उठता। पीडब्ल्यू1 और पीडब्ल्चू2 के साक्ष्य के साथ बिक्री समझौते में वर्णन पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट द्वारा भी यह देखा गया। इसके अलावा, जैसा कि ऊपर कहा गया कि यह स्पष्ट है कि विक्रेता (मृतक जी. वेणुगोपाल राव) विषयगत भूमि की माप और सीमांकन करवाकर अपने दायित्वों के हिस्से को पूरा करने में विफल रहे, जबकि क्रेता (यहां प्रतिवादी नंबर 1/वादी) शेष राशि का भुगतान करने के लिए हमेशा तैयार था। इस प्रकार, जब अनुबंध की शर्तों का विशिष्ट निष्पादन नहीं किया गया तो समय सार होने का प्रश्न ही नहीं उठता। इस तरह वर्तमान मामले के तथ्य सिद्दामसेट्टी (उपरोक्त) से अलग हैं और यहां अपीलकर्ता यह दावा नहीं कर सकते कि समय अनुबंध का सार था।"
खंडपीठ ने कहा कि राव के कानूनी उत्तराधिकारी संपत्ति का सीमांकन करने के अपने दायित्व को निभाने में विफल रहे, जबकि प्रतिवादी नंबर 1 ने शेष बिक्री प्रतिफल का भुगतान करके अपने दायित्व को निभाने की अपनी इच्छा को स्थापित किया, जो एसआरए एक्ट की धारा 16 (सी) के अनुसार प्राथमिक आवश्यकता है।
हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया और अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: गद्दीपति दिविजा और अन्य बनाम पाथुरी साम्राज्यम और अन्य।
साइटेशन: लाइवलॉ (एससी) 327/2023
अपीलकर्ता के वकील: ए. सिराजुद्दीन और प्रतिवादी के वकील: श्री सी. मोहन राव
विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 - अचल संपत्ति की बिक्री में कोई अनुमान नहीं है कि समय अनुबंध का सार है। हालांकि, अनुबंध की स्पष्ट शर्तों से प्रकृति से स्पष्ट होने पर अदालत उचित समय में संपत्ति और आसपास की परिस्थितियों से उसकी अदायगी का अनुमान लगा सकती है- कट्टा सुजाता रेड्डी बनाम सिद्दामसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड और या 2022 लाइवलॉ (एससी) 712- पैरा 32 को संदर्भित
विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 - जब अनुबंध की शर्तों का विशिष्ट अदायगी नहीं की गई तो समय का सार होने का सवाल ही नहीं उठता है। अनुबंध में समय का सार नहीं होगा, जिसमें एक पक्ष के दायित्व दूसरे पक्ष के दायित्वों की पूर्ति पर निर्भर हैं ।
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