विशेष विवाह अधिनियम: सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम सूचना और व्यक्तिगत विवरण के प्रकाशन के प्रावधानों के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

Avanish Pathak

29 Aug 2022 12:00 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के कुछ प्रावधानों खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। उक्‍त प्रावधानों के तहत विवाह के लिए इच्छित पक्षकारों को विवाह से 30 दिनों पहले अपने निजी विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य है, ताकि तथ्यों की सार्वजनिक रूप से जांच हो सके।

    याचिका में विशेष रूप से धारा 6(2), 6(3) [दोनों प्रावधान इच्छित विवाह की सूचना के संबंध में हैं], 7 [विवाह पर आपत्ति], 8 [आपत्ति प्राप्त होने की प्रक्रिया], 9 [एसएमए की धारा 8 के तहत जांच से जिस सीमा तक यह संबंधित है], 10 [विदेश में विवाह अधिकारी द्वारा आपत्ति प्राप्त होने पर प्रक्रिया] को चुनौती दी गई थी।

    सुनवाई के दरमियान जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने पूछा,

    "इस याचिका में संवैधानिक वैधता को चुनौती देना अमूर्त है। देखिए, आप एक पीड़ित व्यक्ति नहीं हैं। हम समझने की कोशिश कर रहे हैं, अगर हम आपके कहने पर संवैधानिक वैधता का यह प्रश्न उठाते और इस पर यह कहते हैं कि यह आपके खिलाफ वैध है, तो क्या यह सभी के लिए बाध्य होगा? असली वादी कहां है, जिसे इन प्रावधानों के खिलाफ शिकायत है?"

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ एडवोकेट रविशंकर जंध्याला ने कहा कि याचिकाकर्ता ने एसएमए के तहत दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी की थी।

    "तब यह एक जनहित याचिका रह नहीं जाती है।" पीठ ने कहा।

    "यदि यह आपका व्यक्तिगत कारण है, तो यह एक जनहित याचिका नहीं है।"

    पीठ ने पिछले सवाल को दोहराते हुए आगे कहा, "हमें उम्मीद है कि हमारा सवाल स्पष्ट है, यदि हम आपके कहने पर इन प्रावधानों को दी गई चुनौती को सुनते हैं और आपके खिलाफ फैसला देते हैं तो क्या यह एक व्यक्ति सहित सभी पर बाध्य होगा, जिसे वास्तव में शिकायत हो सकती है?"

    इसे देखते हुए पीठ ने याचिका खारिज कर दी।

    याचिका ने एसएमए के उक्त प्रावधानों को चुनौती दी। याचिका में कहा गया था कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया था कि उक्त प्रावधान अन्य व्यक्तियों को विवाह पर आपत्ति करने की अनुमति देते हैं और विवाह अधिकारी को इस पर विचार करने का अधिकार देते हैं।

    विवाह से पहले नोटिस की यह आवश्यकता हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और इस्लाम के प्रथागत कानूनों में मौजूद नहीं है, याचिका में कहा गया है कि एसएमए प्रावधान भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

    इसके अलावा, याचिका में तर्क दिया गया था कि उक्त प्रावधान शादी करने के इच्छुक जोड़ों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार से वंचित करते हैं। याचिका में विवाह कानूनों की सराहना करने की मांग की गई है जो दो व्यक्तियों की न्यायसंगत स्वायत्तता के अनुरूप है और उनकी शादी की सामाजिक स्वीकृति से कम है।

    याचिका एडवोकेट अनुपमा सुब्रमण्यम की सहायता से एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड श्रीराम परक्कट ने दायर की थी।

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