"कुछ चाहते हैं कि अदालतें खुलें, जबकि कुछ नहीं": सुप्रीम कोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग पर कहा

LiveLaw News Network

24 Aug 2021 10:25 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने आज कहा कि बार मामलों की वर्चुअल सुनवाई के मुद्दे पर एकमत नहीं है, वकीलों ने भौतिक सुनवाई पर वापस लौटने के अदालतों के फैसलों पर विभिन्न विचार व्यक्त किए हैं।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना और जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ ने यह टिप्‍पणी उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा वर्चुअल अदालतों के कामकाज को पूरी तरह समाप्त करने के फैसले के ख‌िलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए की।

    याचिका ऑल इंडिया ज्यूरिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा दायर की गई है। इस संगठन में देश भर के 5,000 से अधिक वकील शामिल हैं। लाइव लॉ से जुड़े कानूनी पत्रकार स्पर्श उपाध्याय भी इसके सदस्य हैं।।

    पीठ ने टिप्पणी की , "हम इस पर गौर करेंगे। कुछ चाहते हैं कि अदालतें खुली रहें, जबकि अन्य ऐसा नहीं चाहते।"

    इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ आर गुप्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने आधिकारिक आदेश के माध्यम से आभासी सुनवाई को पूरी तरह से रोकने का फैसला किया है और जो अब वादियों और वकीलों के लिए असुविधा का कारण बन रहा है।

    अधिवक्ता गुप्ता ने यह भी तर्क दिया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति के अध्यक्ष, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने देश भर के सभी उच्च न्यायालयों से मामलों की सुनवाई के हाइब्रिड मोड को जारी रखने का अनुरोध किया था।

    गुप्ता ने यह भी बताया कि पहले उत्तराखंड उच्च न्यायालय, फिर गुजरात उच्च न्यायालय, धीरे-धीरे सभी उच्च न्यायालयों ने वर्चुअल अदालतों को बंद कर दिया।

    पृष्ठभूमि

    उल्लेखनीय है कि 16 अगस्त 2021 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से एक प्रशासनिक आदेश पारित किया था जो इस प्रकार है-

    " माननीय न्यायालय को यह निर्देश देते हुए प्रसन्नता हो रही है कि माननीय न्यायालय 24.08.2021 से केवल भौतिक मोड के माध्यम से सामान्य न्यायिक कार्य फिर से शुरू करेगा, और उच्च न्यायालय द्वारा वर्चुअल सुनवाई के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा।"

    इस संबंध में एसोसिएशन और पत्रकार द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय का निर्णय भारत में वर्चुअल अदालतों के लिए मौत की घंटी है।

    याचिका में यह भी दलील दी गई है कि COVID-19 महामारी के बाद संवैधानिक न्यायालयों (देश के उच्च न्यायालयों में) में संपूर्ण वर्चुअल अदालत के बुनियादी ढांचे की स्थापना के बाद वर्चुअल मोड के माध्यम से मामलों के संचालन की सुविधा तक पहुंच से इनकार करना भारत के संविधान के 21 के साथ पठित अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों से इनकार है।

    याचिका को वकील श्री सिद्धार्थ आर गुप्ता द्वारा तैयार और और इसे एओआर श्रीराम परक्कट के माध्यम से दायर किया गया है ।

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