मीडिया के कुछ हिस्सों में और कुछ लोग हमें ऐसे प्रोजेक्ट करते हैं जैसे हम खलनायक हैं, स्कूल बंद करने की कोशिश कर रहे हैं: दिल्ली प्रदूषण मामले में सीजेआई रमाना ने कहा
LiveLaw News Network
3 Dec 2021 5:02 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अदालती कार्यवाही की गलत रिपोर्टिंग पर चिंता व्यक्त की। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमाना ने मौखिक रूप से कहा कि मीडिया के कुछ वर्गों ने दिल्ली प्रदूषण मामले में जजों को "खलनायक" के रूप में पेश करने के लिए उनकी टिप्पणियों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।
उल्लेखनीय है कि सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ राष्ट्रीय राजधानी में हवा की बिगड़ती गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए आपात उपाय की मांग संबंधी एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। पीठ ने उक्त याचिका की सुनवाई के दरमियान यह टिप्पणी की।
दिल्ली प्रदूषण संकट के बीच स्कूल खोलने के मुद्दे पर जजों द्वारा दिए गए बयान को जिस तरीके से रिपोर्ट किया गया, उस पर खंडपीठ ने विशेष रूप से आपत्ति जताई।
सीजेआई रमाना ने कहा,
"एक चीज जो हमने देखी है, पता नहीं यह जानबूझकर है या नहीं, ऐसा लगता है कि मीडिया के कुछ वर्ग और कुछ लोग ऐसे प्रोजेक्ट करने की कोशिश करते हैं जैसे कि हम खलनायक हैं, जो स्कूलों को बंद करने की कोशिश कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।"
सीजेआई ने स्पष्ट किया कि कोर्ट ने कभी भी दिल्ली सरकार को स्कूल बंद करने का निर्देश नहीं दिया और फैसला सरकार ने ही लिया है।
"हमने कभी सुझाव नहीं दिया, आपने एक निर्णय लिया और हमसे वादा किया कि आप ऐसा करेंगे। आपने कहा था कि आप स्कूल और कार्यालय आदि बंद कर रहे हैं। और आज के समाचार पत्र देखें!"
सीजेआई रमाना ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी को बताया।
सीनियर एडवोकेट सिंघवी ने भी अपनी पीड़ा व्यक्त की और बताया कि एक अखबार ने लिख है कि सुप्रीम कोर्ट का इरादा दिल्ली सरकार से प्रशासन को संभालने का है।
सिंघवी ने कहा,
"यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लॉर्डशिप को दोष वहां देना चाहिए, जहां यह है। सुनवाई रचनात्मक तरीके से हुई, और एक अखबार ने बताया कि कल की सुनवाई आक्रामक लड़ाई थी जैसे कि लॉर्डशिप प्रशासन को संभालने का इरादा रखता है।"
सीजेआई ने जवाब दिया,
"प्रेस की स्वतंत्रता, हम छीन नहीं सकते, हम कुछ नहीं कह सकते। वे ट्विस्ट कर सकते हैं, कुछ भी लिख सकते हैं, वे कुछ भी उठा सकते हैं। आप एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं और कुछ कह सकते हैं, हम नहीं कर सकते। कुछ वर्गों ने इस तरह पेश किया गया जैसे कि हम छात्रों और शिक्षा के लिए कल्याणकारी उपाय करने में रुचि नहीं रखते हैं।"
सीजेआई ने सिंघवी से कहा,
"आपको अपनी बात कहने और जो कुछ भी आप चाहते हैं उसकी निंदा करने की स्वतंत्रता है। हम ऐसा नहीं कर सकते ना? हमने कहां कहा कि हम प्रशासन को संभालने में रुचि रखते हैं।"
अखबार के लेख का जिक्र करते हुए, सिंघवी ने आगे कहा कि यह अनुमान लगाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पूरी तरह से फटकार लगाई और प्रशासन को संभालने की धमकी दी।
सिंघवी ने कहा कि जब न्यायालय ने प्रेस रिपोर्टिंग की अनुमति दी है तो कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए।
एक अन्य उदाहरण साझा करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायिक बुनियादी ढांचे से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने केंद्र को एक राष्ट्रीय निकाय बनाने पर विचार करने का सुझाव दिया था ताकि हाईकोर्ट को राज्य सरकारों पर निर्भर न रहना पड़े। हालांकि उसपर की गई रिपोर्टिंग की एक हेडलाइन थी कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट को राज्य सरकारों के पास भीख का कटोरा लेकर जाना पड़ता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,
"हमने देखा है कि कैसे हाईकोर्ट काम करते हैं। हमें कुछ रचनात्मक करना है लेकिन देखिए अदालत में कही चीजों को कैसे वहां ट्विस्ट किया जा रहा है।"
सिंघवी ने कहा कि कोर्ट की रिपोर्टिंग जमीन पर राजनीतिक रिपोर्टिंग से अलग है और निष्पक्ष रिपोर्टिंग जिम्मेदारी का हिस्सा है।
सीजेआई ने कहा,
"समस्या आभासी सुनवाई के बाद है, कोई नियंत्रण नहीं है। कौन रिपोर्टिंग कर रहा है कोई नहीं जानता।"
जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि इसे अनदेखा करना चाहिए, जिस पर सिंघवी ने कहा कि अनदेखा करने से कभी-कभी उत्साह बढ़ जाता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा,
"बिना किसी दुर्भावना मैं मार्क ट्वेन की एक सुक्ति पेश कर रहा हूं। यदि आप समाचार पत्र नहीं पढ़ते हैं तो आपको जानकारियां नहीं मिल पातीं। और यदि आप समाचार पत्र पढ़ते हैं तो आपको गलत जानकारियां मिलती हैं।"
पीठ एक रिट याचिका (आदित्य दुबे (नाबालिग) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए निर्देश की मांग की गई है।
मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।
केस शीर्षक: आदित्य दुबे (नाबालिग) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य