"त्वचा से त्वचा" फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के पोक्सो फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

10 Feb 2021 8:17 AM GMT

  • त्वचा से त्वचा फैसला : सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के पोक्सो फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय महिला आयोग की याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट (नागपुर पीठ) के विवादास्पद फैसले को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन टटोलने से पोक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में "यौन उत्पीड़न" नहीं होता है।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर एक अन्य याचिका पर भी नोटिस जारी किया।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि वह भारतीय स्त्री शक्ति और यूथ बार एसोसिएशन जैसे संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगा क्योंकि राज्य पहले ही फैसले को चुनौती दे चुके हैं। पीठ ने कहा कि ऐसे एनजीओ का आपराधिक मामले में कोई लोकस नहीं है।

    फिर भी, पीठ ने अपनी बात रखने के लिए संगठनों को भारत के अटॉर्नी जनरल से संपर्क करने के लिए स्वतंत्रता प्रदान की है - जिन्होंने पहले ही फैसले के खिलाफ याचिका दायर की है। एजी ऐसे संगठनों को सुनने के लिए सहमत हो गए।

    सबसे पहले, बेंच एनसीडब्ल्यू द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करने के लिए इच्छुक नहीं थी, और सुझाव दिया कि वे एजी द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

    जवाब में, एनसीडब्ल्यू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने प्रस्तुत किया कि इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग का एक सांविधिक कर्तव्य है।

    लूथरा ने एनसीडब्ल्यू अधिनियम की धारा 10 (1) की उप-धाराओं (डी) और (ई) का उल्लेख करते हुए कहा कि वैधानिक निकाय का अधिकार है कि वह महिलाओं के संरक्षण से संबंधित कानून के उल्लंघन के मामलों में कानून की खामियों और अपर्याप्तता की समीक्षा करें। वरिष्ठ वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय का निर्णय एक खतरनाक मिसाल था।

    गौरतलब है कि 27 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन टटोलने से पोक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में "यौन उत्पीड़न" नहीं होता है।

    इस दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि निर्णय 'अभूतपूर्व' है और 'एक खतरनाक मिसाल कायम करने की संभावना है।'

    सीजेआई बोबडे ने एजी को निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया था। अदालत ने आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी और 2 सप्ताह के भीतर उसे जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया।

    गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के कृत्य से आईपीसी की धारा 354 के तहत 'छेड़छाड़' होगी और ये पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत यौन शोषण नहीं होगा।

    न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को संशोधित करते हुए यह अवलोकन किया, जिसमें एक 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था।

    इसके अलावा, पैरा संख्या 26 में, एकल न्यायाधीश ने कहा है कि " प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क-यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से -त्वचा संपर्क यौन उत्पीड़न नहीं है।"

    Next Story