'साबित करें कि कोई खतरा नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर के पीथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी स्थल से रासायनिक अपशिष्ट के निपटान पर मध्य प्रदेश के अधिकारियों से कहा
Shahadat
25 Feb 2025 9:13 AM

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के अधिकारियों से कहा कि वे सामग्री के आधार पर यह दिखाएं कि क्या पीथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी स्थल से रासायनिक अपशिष्ट के निपटान के संबंध में वादी द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं में कोई तथ्य है। क्या अधिकारियों ने आसपास के नागरिकों के लिए खतरे की आशंकाओं को दूर करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए।
कोर्ट ने कहा,
जब तक उठाई गई आशंकाएं वास्तविक नहीं पाई जातीं, हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेखित किया गया, जो भोपाल गैस त्रासदी स्थल से पीथमपुर तक 337 मीट्रिक टन "खतरनाक" रासायनिक अपशिष्ट के परिवहन और निपटान के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार कर रही है।
मामले का उल्लेख करने वाले वकील ने न्यायालय को बताया कि 17 फरवरी को नोटिस जारी करने के बाद 18 फरवरी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 27 फरवरी से 10 मीट्रिक टन का ट्रायल रन करने का आदेश दिया। इस पृष्ठभूमि में उन्होंने अनुरोध किया कि मामले को 27 फरवरी को ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया जाए और इस बीच अंतरिम आदेश पारित किया जाए।
वकील से मध्य प्रदेश के स्थायी वकील को नोटिस देने के लिए कहते हुए खंडपीठ ने कहा कि वह 27 फरवरी को मामले की पहली सुनवाई करेगी। जब राज्य की ओर से एक वकील पेश हुआ तो जस्टिस गवई ने उसे निर्देश लेने के लिए कहा।
जज ने कहा,
"वह (याचिकाकर्ता) कहता है कि इससे नागरिकों को खतरा होगा...जब तक आशंका सही नहीं पाई जाती, हम इसे रोकने नहीं जा रहे हैं। आप याचिका को देखें और पता करें कि उनके द्वारा व्यक्त की गई चिंता में कोई दम है या नहीं। अगर कोई दम है तो आप क्या कदम उठा रहे हैं।"
जब मध्य प्रदेश के वकील ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए 2 दिन का समय मांगा तो जस्टिस गवई ने कहा कि राज्य को 27 फरवरी की सुनवाई के मामले में अपने हाथ रोक लेने चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा,
"मान लीजिए कि 27 तारीख को ही कुछ हो जाता है। यह तयशुदा बात नहीं होनी चाहिए...या आप हमें 27 तारीख को ही संतुष्ट कर दें और हमें बता दें कि आपने सभी सावधानियां बरती हैं और कुछ भी होने की संभावना नहीं है...यदि आप हमें संतुष्ट कर देते हैं कि आपने पर्याप्त सावधानी बरती है और कोई खतरा नहीं है, तो [हम] बीच में नहीं आएंगे। आपको इसके समर्थन में कुछ सामग्री लेकर आना होगा।"
खंडपीठ ने मौखिक रूप से यह भी टिप्पणी की कि जब सुप्रीम कोर्ट मामले पर विचार कर रहा था तो हाईकोर्ट को अपने हाथ रोक लेने चाहिए थे (और 18 फरवरी का आदेश पारित नहीं करना चाहिए था)।
केस टाइटल: चिन्मय मिश्रा बनाम भारत संघ और अन्य, डायरी नंबर 3661-2025