शिवसेना मामला: एकनाथ शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, 'दलबदल की बुराई से अधिक महत्वपूर्ण बहुमत शासन का सिद्धांत'

Avanish Pathak

15 March 2023 10:29 AM GMT

  • शिवसेना मामला: एकनाथ शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, दलबदल की बुराई से अधिक महत्वपूर्ण बहुमत शासन का सिद्धांत

    पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को शिवसेना मामले की सुनवाई की। पीठ में चीफ ज‌‌स्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस नरसिम्हा शामिल हैं।

    एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने दलील दी कि दल-बदल की बुराई से अधिक महत्वपूर्ण बहुमत शासन का सिद्धांत है।

    जेठमलानी ने कहा,

    "मेरे विद्वान मित्रों ने आला संवैधानिक सिद्धांत की बात की है। उन्होंने दल-बदल की बुराई पर मामले को केंद्र‌ित कर दिया है। हालांकि स्पीकर के गलत काम और सत्ता के नशे चूर सरकार की बुराई उससे भी बड़ी बुराई है। अनुच्छेद 164(2) से एक संवैधानिक सिद्धांत पैदा होता है, जिसमें कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से किसी राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। व्यवहार में, इसका मतलब यह है कि जब वे सदन का बहुमत खो देते हैं तो उन्हें पद छोड़ना पड़ता है। अत: इस देश में दल-बदल की बुराई से कहीं महत्वपूर्ण बहुमत के शासन का सिद्धांत है। यह सर्वोपरि है।"

    अपनी प्रस्तुतियों की शुरुआत में जेठमलानी ने कहा, कथित अयोग्यता संबंधित दूसरे पक्ष की ओर से पेश किए गए कानून के मौलिक प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट में उन्हीं के आधार पर की गई अपील "मामले के तथ्यों के” अनुसार लागू नहीं होती।

    इसके बाद उन्होंने दो प्राथमिक विवादों पर चर्चा की कि "डीम्ड डिसक्वालिफिकेशन नाम की कोई चीज नहीं है, अन्यथा, आपराध‌ी विधान सभा सदस्य का जवाब और सुनवाई औपचारिकता मात्र रह जाएगी। साथ ही यह सुझाव दिया कि स्पीकर अनिवार्य रूप से दरअसल पूर्वनिर्धारित म‌‌स्‍तिष्क और पक्षपातपूर्ण प्रवृत्ति होता है। समान रूप से उनका तर्क कि निर्णय वापस लिया जा सकता है, बचाव योग्य नहीं है।

    नबाम राबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 'पुनर्विचार' की आवश्यकता पर जेठमलानी ने कहा कि यह आवश्यक नहीं होगा, लेकिन अगर फिर भी अदालत को फैसले पर फिर से विचार करने के लिए राजी किया गया तो यह केवल जस्टिस दीपक मिश्रा (जैसा वह तब थे) द्वारा प्रतिपादित भिन्न दृष्टिकोण की पुष्टि के लिए होना चाहिए कि एक स्पीकर या एक डिप्टी स्पीकर को उनके कार्यों के अनुसार उस समय अक्षम किया जाएगा, जब उन्हें हटाने का नोटिस भेजा गया हो, न कि बाद के चरण में जब नोटिस विचाराधीन हो।

    "निर्णय की फिर से पुष्टि की जानी चाहिए और अगर यह अदालत इस पर फिर से विचार करने का फैसला करती है तो इसे मजबूत आधार पर तय किया जाना चाहिए।"

    उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 179 और महाराष्ट्र विधान सभा नियमों के नियम 11 के तहत स्पीकर को हटाने के प्रस्ताव को पेश करने से पहले 14 दिनों की पूर्व सूचना देने की आवश्यकता का उल्लेख किया।

    उन्होंने कहा कि उक्त नोटिस स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को 14 दिनों के बाद प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की योजना को विफल करने के लिए हर अवसर प्रदान करेगा। निमो जुडेक्स काजा सुआ का नैसर्गिक न्याय सिद्धांत किसी व्यक्ति के अपने ही मामले में जज होने के खिलाफ है, जैसा कि अनुच्छेद 181 में निहित है।

    जेठमलानी ने आगे तर्क दिया कि एक बार एकनाथ शिंदे गुट ने अपने विधायी और संगठनात्मक बहुमत के आधार पर 'असली' शिवसेना होने का दावा किया, तो स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर आगे बढ़ने से बचना चाहिए, जबकि चुनाव आयोग की ओर से निर्णय लंबित है।

    उन्होंने समझाया, "ऐसा इसलिए है क्योंकि एक स्पीकर केवल विधायी मामलों को ही देख सकता है, संगठनात्मक पहलू को नहीं।"

    प्रक्रियागत अनौचित्य और दुर्भावनापूर्ण इरादों का आरोप लगाते हुए जेठमलानी ने कहा कि शुरू में अयोग्यता नोटिस 39 बागी विधायकों में से केवल 16 को दिए गए थे। जेठमलानी के अनुसार, जो उद्धव ठाकरे गुट द्वारा एकनाथ शिंदे गुट को विभाजित करने का प्रयास था, ताकि वे बहुमत सुरक्षित कर सकें।

    जेठमलानी ने तर्क दिया कि इन अयोग्यता नोटिसों को तामील करके स्पीकर ने नबाम रेबिया के आदेश को नज़रअंदाज़ कर दिया। इसके अलावा, न केवल विधायकों को जवाब देने के लिए कथित तौर पर 14 दिनों के बजाय केवल दो दिनों का समय दिया गया, बल्कि "उन्होंने सदस्यों को सुनवाई में आने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया।"

    अंत में, उन्होंने कहा, “किसी भी मामले में, केवल एक ही चीज बची है कि क्या नबाम रेबिया के फैसले को एक बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत है। और कुछ नहीं बचता, यह केवल अकादमिक है, खासकर जब मामले में शामिल सज्जन ने विश्वास मत का सामना नहीं किया।

    सुनवाई आज जारी है।

    आज की सुनवाई के लाइव-अपडेट यहां पढ़े जा सकते हैं।

    केस टाइटलः सुभाष देसाई बनाम प्रमुख सचिव, महाराष्ट्र राज्यपाल और अन्य। | WP(C) No 493/2022

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