'ऑपरेशन सिंदूर में सेवा करने से छूट नहीं मिलेगी': सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में ब्लैक कैट कमांडो से आत्मसमर्पण करने को कहा
Shahadat
24 Jun 2025 10:30 AM

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304बी (दहेज हत्या) के तहत 20 साल पहले अपनी पत्नी की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को आत्मसमर्पण से छूट देने से इनकार किया। साथ ही उसकी इस दलील को खारिज कर दिया कि उसने ऑपरेशन सिंदूर में सेवा की थी और पिछले 20 सालों से ब्लैक कैट कमांडो के रूप में काम किया था।
जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस विनोद चंद्रन की खंडपीठ पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दोषी की अपील खारिज कर दी गई और 10 साल के कठोर कारावास की सजा बरकरार रखी गई। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही लंबित रहने तक आत्मसमर्पण से छूट की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया था।
खंडपीठ ने छूट देने से इनकार किया तो याचिकाकर्ता के वकील ने कहा,
"मैं सिर्फ़ एक बात कह सकता हूं, मैं ऑपरेशन सिंदूर का भागीदार हूं। पिछले 20 सालों से मैं राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो के तौर पर तैनात हूं।"
हालांकि, खंडपीठ इस दलील से प्रभावित नहीं हुई और जस्टिस भुयान ने जवाब दिया,
"इससे आपको घर पर अत्याचार करने से छूट नहीं मिलती। इससे पता चलता है कि आप शारीरिक रूप से कितने स्वस्थ हैं और आप अकेले किस तरह से अपनी पत्नी की हत्या कर सकते हैं, अपनी पत्नी का गला घोंट सकते हैं।"
जस्टिस भुयान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि याचिकाकर्ता को गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया गया,
"यह छूट का मामला नहीं है। यह एक भयानक तरीका है, जिस तरह से आपने अपनी पत्नी का गला घोंटा। छूट तब मिलती है जब सज़ा 6 महीने, 3 महीने, 1 साल की हो।"
जस्टिस विनोद चंद्रन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील खारिज की और कहा,
"हाईकोर्ट ने आपकी अपील खारिज कर दी। आप यहां विशेष अनुमति पर हैं।"
वकील ने तर्क दिया कि एकमात्र आरोप मोटरसाइकिल की मांग का था और यह दो गवाहों के बयानों पर आधारित था, जो मृतक के करीबी रिश्तेदार हैं।
उन्होंने कहा,
"मैं साबित कर सकता हूं कि वे बहुत ही असंगत हैं।"
जस्टिस भुयान ने टिप्पणी की,
"हम एसएलपी पर नोटिस जारी कर सकते हैं, लेकिन हमसे छूट की मांग न करें।"
न्यायालय ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:
"हम आत्मसमर्पण से छूट के लिए प्रार्थना को अस्वीकार करते हैं। एसएलपी पर नोटिस जारी करें, जिसका जवाब 6 सप्ताह में दिया जाना चाहिए।"
आत्मसमर्पण के लिए समय के अनुरोध पर खंडपीठ ने दो सप्ताह का समय दिया।
Case Title – Baljinder Singh v. State of Punjab