सुप्रीम कोर्ट ने RG Kar प्रदर्शनकारियों द्वारा हिरासत में यातना के आरोपों की जांच के लिए SIT गठित की

Shahadat

25 Nov 2024 2:16 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने RG Kar प्रदर्शनकारियों द्वारा हिरासत में यातना के आरोपों की जांच के लिए SIT गठित की

    आरजी कर मेडिकल कॉलेज में बलात्कार-हत्या की घटना के बाद पश्चिम बंगाल में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार की गई 2 महिलाओं को हिरासत में यातना दिए जाने के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल (SIT) गठित किया।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को पश्चिम बंगाल राज्य की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसमें मामले की CBI जांच का निर्देश दिया गया। इससे पहले नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने हाईकोर्ट के इस निर्देश पर रोक लगा दी थी। इसने राज्य सरकार से आईपीएस अधिकारियों (महिला अधिकारियों सहित) की सूची प्रस्तुत करने को कहा, जिन्हें CBI के बजाय हिरासत में यातना मामले की जांच करने के लिए SIT में शामिल किया जा सकता है।

    राज्य द्वारा प्रस्तुत अधिकारियों की सूची को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने SIT गठित की- जिसमें पश्चिम बंगाल राज्य से संबंधित नहीं बल्कि वहां कार्यरत अधिकारी शामिल हैं।

    इसमें शामिल हैं:

    (1) आकाश मखारिया, आईपीएस, डीआईजी प्रेसिडेंसी रेंज।

    (2) स्वाति भंगालिया, पुलिस अधीक्षक, हावड़ा (ग्रामीण)।

    (3) सुजाता कुमारी वीणापानी, आईपीएस, उपायुक्त (यातायात), हावड़ा।

    निर्देशों के अनुसार, SIT तुरंत जांच अपने हाथ में लेगी और कलकत्ता हाईकोर्ट की पीठ (हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा इस उद्देश्य के लिए गठित की जाएगी) को साप्ताहिक स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। SIT जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिए उक्त पीठ से आगे के निर्देश मांग सकती है।

    यदि आवश्यक हो तो SIT सहायता के लिए कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों को भी शामिल कर सकती है। दूसरी ओर, पीड़ितों को यह सुनिश्चित करने के लिए SIT से संपर्क करने की स्वतंत्रता होगी कि उनके जीवन और स्वतंत्रता को कोई नुकसान न पहुंचे। इस संबंध में SIT "बिना किसी देरी के आवश्यक कदम उठाएगी"।

    उल्लेखनीय रूप से आदेश पारित करते समय न्यायालय ने यह भी व्यक्त किया कि नियमित रूप से जांच को CBI को सौंपने से सीनियर राज्य पुलिस अधिकारियों पर मनोबल गिर सकता है।

    "CBI को मामलों की नियमित जांच सौंपने से न केवल देश की प्रमुख जांच एजेंसी पर बोझ पड़ता है, बल्कि राज्य पुलिस के अधिकारियों पर भी इसका बहुत गंभीर मनोबल गिरता है। इस आधार पर आगे बढ़ना विवेकपूर्ण नहीं हो सकता कि पश्चिम बंगाल कैडर को आवंटित सीनियर अधिकारी निष्पक्ष, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करने और सच्चाई का पता लगाने में अक्षम हैं।"

    अंत में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियों को लगाए गए आरोपों पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं समझा जाएगा। SIT को उनसे स्वतंत्र जांच करनी चाहिए।

    केस टाइटल: पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य बनाम रेबेका खातून मोल्ला @ रेबेका मोल्ला और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 15481/2024

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