"न्यायपालिका को 'विकसित भारत की सबसे बड़ी बाधा' कहना चिंताजनक": सिनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने संजीव सन्याल की टिप्पणी पर जताई आपत्ति

Praveen Mishra

25 Sept 2025 1:33 PM IST

  • न्यायपालिका को विकसित भारत की सबसे बड़ी बाधा कहना चिंताजनक: सिनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने संजीव सन्याल की टिप्पणी पर जताई आपत्ति

    सिनियर एडवोकेट विकास पाहवा का पत्र

    सिनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सन्याल को पत्र लिखकर उनकी हाल की उस टिप्पणी पर कड़ा आपत्ति जताई है, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका को भारत के “विकसित राष्ट्र” बनने की सबसे बड़ी बाधा बताया था।

    23 सितंबर को लिखे पत्र में पाहवा ने कहा कि लोकतंत्र में संस्थाओं की रचनात्मक आलोचना स्वागत योग्य है, लेकिन सन्याल की यह टिप्पणी न्यायपालिका के प्रति “सामान्य और नकारात्मक” संदेश देती है, जबकि न्यायपालिका हमारे संवैधानिक ढांचे की रीढ़ है।

    उन्होंने लिखा कि न्यायपालिका विकास को रोकती नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि प्रगति संवैधानिक मूल्यों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निष्पक्षता के भीतर हो। देरी का कारण न्यायपालिका की उदासीनता नहीं बल्कि जजों की कमी, ढांचा (infrastructure) की कमी और खाली पद हैं।

    पाहवा ने कहा कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मुकदमे और सबसे कम जज-जनसंख्या अनुपात है, फिर भी जज लगातार दिन-रात मेहनत करते हैं।

    छुट्टियों पर आलोचना
    सन्याल द्वारा “लंबी छुट्टियों” पर की गई टिप्पणी को उन्होंने पुरानी धारणा बताया। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट (द्वितीय संशोधन) नियम, 2024 के तहत छुट्टियां 103 से घटाकर 95 कर दी गई हैं और गर्मियों में भी दो पीठें काम करती हैं।

    'My Lord' और 'Prayer' पर
    पाहवा ने कहा कि कानून में 'Prayer' धार्मिक शब्द नहीं बल्कि राहत मांगने का औपचारिक तरीका है।
    'My Lord' कोई उपनिवेशकालीन बोझ नहीं बल्कि सम्मान की परंपरा है। जजों ने साफ किया है कि 'Your Honour' या 'Sir/Madam' भी मान्य है।

    सुधार और तकनीक
    उन्होंने बताया कि न्यायपालिका पहले ही बड़े सुधार कर रही है—जैसे डिजिटाइजेशन, ई-फाइलिंग, वर्चुअल हियरिंग, एआई आधारित कॉज़-लिस्ट प्रबंधन, फास्ट-ट्रैक कोर्ट और वैकल्पिक विवाद निपटान प्रणाली।

    संवाद की जरूरत
    अंत में उन्होंने लिखा—न्यायपालिका आलोचना से परे नहीं है, लेकिन आलोचना तथ्यात्मक और संतुलित होनी चाहिए। न्यायपालिका में लोगों का भरोसा कमजोर करना लोकतंत्र को कमजोर करना होगा। सुधार संवाद और सहयोग से आने चाहिए, न कि टकराव से।


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