धारा 5, परिसीमा अधिनियम: 'पर्याप्त कारण' वह कारण है. जिसके लिए एक पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

5 Jan 2023 7:42 AM GMT

  • धारा 5, परिसीमा अधिनियम: पर्याप्त कारण वह कारण है. जिसके लिए एक पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिए एक फैसले में लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 5 में दिए गए शब्द 'पर्याप्त कारण' की सरल और संक्षिप्त परिभाषा दी। जस्टिस सी टी रविकुमार और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि 'पर्याप्त कारण' वह कारण है, जिसके लिए किसी पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    पीठ एनसीएलटी के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) शुरू करने की मांग संबंधी एक आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि वह सीमा बाधित है।

    मामले में साबरमती गैस लिमिटेड ने एनसीएलटी, अहमदाबाद के समक्ष धारा 9 आईबीसी के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें शाह अलॉयज लिमिटेड के ऑपरेशल क्रेडिटर के रूप में सीआईआरपी शुरू करने की मांग की गई थी। एनसीएलटी ने आवेदन को सीमा वर्जित होने और पक्षों के बीच 'पहले से मौजूद विवाद' के अस्तित्व के आधार पर खारिज कर दिया। जैसे ही एनसीएलएटी ने अपील खारिज की, साबरमती गैस लिमिटेड ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अपील में उठाए गए मुद्दों में से एक यह था कि धारा 9, आईबीसी के तहत दायर आवेदन के संबंध में सीमा अवधि की गणना में वह अवधि शामिल नहीं है, जिस दरमियान ऑपरेशनल क्रेडिटर का कॉर्पोरेट ऋणी के खिलाफ आगे बढ़ने या मुकदमा करने का अधिकार है, जो सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज़ (स्पेशल प्रोविज़न एक्ट, 1985) (SICA) की धारा 22 (1) के जरिए निलंबित रहता है, जैसा कि SICA की धारा 22 (5) के तहत प्रदान किया गया है?

    अदालत ने कहा कि SICA की धारा 22 (1) के आधार पर एक औद्योगिक कंपनी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने पर कानूनी रोक है।

    इस संदर्भ में, अदालत ने परिसीमा अधिनियम की धारा 5 का उल्लेख किया और कहा,

    "जैसा कि परिसीमा अधिनियम की धारा 5 से संबंधित है, 'पर्याप्त कारण' दिखाना देरी को माफ करने का एकमात्र मानदंड है। 'पर्याप्त कारण' वह कारण है जिसके लिए किसी पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"

    [नोट: पर‌िसीमा अधिनियम की धारा 3 प्रावधान करती है कि "धारा 4 से 24 (इन्‍क्लूसिव) में निहित प्रावधानों के अधीन निर्धारित अवधि के बाद किए गए दायर प्रत्येक मुकदमा, अपील और आवेदन खारिज कर दिए जाएंगे, हालांकि सीमा को रक्षा के रूप में स्थापित नहीं किया गया है।”

    धारा 5 इस प्रकार है,

    "सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXI के किसी भी प्रावधान के तहत किसी आवेदन को छोड़कर, किसी भी अपील या किसी भी आवेदन को निर्धारित अवधि के बाद स्वीकार किया जा सकता है, यदि अपीलकर्ता या आवेदक न्यायालय को इस बात से संतुष्ट करता है कि उसके पास ऐसी अवधि के भीतर अपील न करने या आवेदन न करने का पर्याप्त कारण था।]

    अदालत ने कहा कि जब एक बार संबंधित कार्यवाही समय सीमा से परे दायर की हुई पाई जाती है तो देरी की माफी के दावे पर विचार करना एडज्युडिकेटिंग अथॉरिटी का दायित्व है। गुण-दोष के आधार पर, पीठ ने पाया कि अपील खारिज करने योग्य है क्योंकि पार्टियों के बीच 'पहले से विवाद' मौजूद था।

    केस डिटेलः साबरमती गैस लिमिटेड बनाम शाह एलॉय लिमिटेड | 2023 लाइवलॉ (SC) 9 | सीए 1669/2020| 4 जनवरी 2023 | जस्टिस अजय रस्तोगी और सी टी रविकुमार

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