लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 सिविल कोर्ट में दीवानी मुकदमा शुरू करने पर लागू नहीं होती : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
22 Jan 2022 10:24 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (21 जनवरी 2022) को एक फैसले में कहा कि लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 सिविल कोर्ट में दीवानी मुकदमा शुरू करने पर लागू नहीं होती है।
कोर्ट ने एनसीडीआरसी द्वारा पारित उस फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसने कहा था कि शिकायतकर्ता सक्षम सिविल कोर्ट में उपाय तलाशने के लिए स्वतंत्र होगा। आयोग ने आगे कहा था कि यदि वह एक सिविल कोर्ट में कार्रवाई करने का विकल्प चुनता है, तो वह लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 5 के तहत एक अर्जी दायर करने के लिए स्वतंत्र है। आयोग ने एसबीआई के वकील का बयान भी दर्ज किया था कि यदि शिकायतकर्ता द्वारा सिविल कोर्ट में कार्रवाई की जाती है तो वह लिमिटेशन का मुद्दा नहीं उठायेगा।
कोर्ट ने कहा,
"राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित इस तरह का एक अवलोकन/आदेश लिमिटेशन एक्ट के प्रावधानों की पूरी तरह से अनभिज्ञता के कारण है, क्योंकि लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 सिविल कोर्ट में दीवानी मुकदमे शुरू करने पर लागू नहीं होती है।"
लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 में प्रावधान है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश XXI के किसी भी प्रावधान के तहत अर्जी के अलावा एक अपील या कोई आवेदन निर्धारित अवधि के बाद स्वीकार किया जा सकता है, यदि अपीलकर्ता या आवेदक कोर्ट को संतुष्ट करता है कि उसके पास ऐसी अवधि के भीतर अपील न करने या आवेदन न करने का पर्याप्त कारण है।
अधिनियम की धारा 2(एल) स्पष्ट करती है कि "सूट" में अपील या आवेदन शामिल नहीं है।
इस मामले में, शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, पूर्वी मेदिनीपुर के समक्ष उपभोक्ता मामला दायर किया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ आरोप लगाया गया था कि विरोधी पक्ष यानी सुनील कुमार मैती के पास जनवरी 2000 से एक बैंक में सेविंग अकाउंट नंबर था। 24.02.2010 को उक्त अकाउंट नंबर बदल दिया गया था।
15.09.2012 को, शिकायतकर्ता उक्त खाते में 500/- रुपये की राशि जमा करने गया था, तब बैंक के एक कर्मचारी ने उन्हें सूचित किया कि खाता संख्या फिर से बदल दी गई है और उस कर्मचारी ने उनकी पासबुक पर एक अलग खाता संख्या लिख दी। उक्त राशि उक्त खाता संख्या में जमा करायी गयी थी। इसके बाद 16.01.2013 को शिकायतकर्ता ने तीन लाख रुपये का चेक जमा किया।
यह चेक प्रबीर प्रधान द्वारा जारी किया गया था और उक्त शाखा पर आहरित था। जिसका एसबीआई खाता संख्या 030608507950 है। जब शिकायतकर्ता 11.12.2013 को अपनी पासबुक अपडेट करने गया, तो उसने देखा कि उसकी पासबुक में रु. 59/- मात्र थे, हालांकि उन्होंने 16.01.2013 से 11.12.2013 के बीच कोई लेनदेन नहीं किया था।
पूछताछ करने पर बैंक ने शिकायतकर्ता को सूचित किया कि सुनील मैती नाम का एक और ग्राहक है जिसका खाता नंबर शिकायतकर्ता को गलत तरीके से दिया गया था। उक्त सुनील मैती ने 1,00,000/- और 2,00,000/- रुपये क्रमशः उक्त खाता संख्या से निकाले थे। इसलिए शिकायतकर्ता ने बैंक को पत्र लिखा और उसके बाद एसबीआई और उक्त सुनील मैती के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई।
इस शिकायत को उपभोक्ता फोरम ने अनुमति दी थी जिसके खिलाफ बैंक ने राज्य आयोग (एससीडीआरसी) के समक्ष अपील की थी। एससीडीआरसी ने लगाए गए जुर्माने की सीमा को छोड़कर उपभोक्ता फोरम के आदेश को बरकरार रखा। इसलिए बैंक ने पुनरीक्षण याचिका दायर कर एनसीडीआरसी का दरवाजा खटखटाया।
याचिका स्वीकार करते हुए, एनसीडीआरसी ने शिकायतकर्ता को कानून के दायरे में सक्षम दीवानी अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ शिकायत खारिज कर दी। इस आदेश को चुनौती देते हुए शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने अपील की अनुमति दी और एनसीडीआरसी के आदेश को रद्द कर दिया।
केस का नामः सुनील कुमार मैती बनाम भारतीय स्टेट बैंक
साइटेशनः 2022 लाइवलॉ (एससी) 77
केस नं. / तारीखः सीए 432/2022 | 21 जनवरी 2022
कोरमः न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी
केसलॉः लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 सिविल कोर्ट में सिविल सूट शुरू करने पर लागू नहीं होती
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