धारा 498A आईपीसी- सामान्य और सर्वव्यापक आरोपों के आधार पर पति के रिश्तेदारों पर मुकदमा चलाना प्रक्रिया का दुरुपयोग: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
9 Feb 2022 10:30 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति के रिश्तेदारों पर लगाए गए सामान्य और सर्वव्यापी आरोपों के आधार पर मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत ने आईपीसी की धारा 498ए जैसे प्रावधानों को पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ पर्सनल स्कोर सेटल करने के औजार के रूप में इस्तेमाल करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चिंता व्यक्त की।
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि एक आपराधिक मुकदमे में अंततः बरी हो जाने के बाद भी आरोपी की गंभीर क्षति होती हैं, इसलिए इस प्रकार की कवायद को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
मौजूदा मामले में पति और उसके रिश्तेदारों ने शिकायतकर्ता पत्नी की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने के लिए पटना हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक रिट याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट में याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि विचाराधीन एफआईआर केवल उन्हें परेशान करने के लिए बदला लेने के इरादे से की गई है।
पत्नी ने तर्क दिया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और दहेज की मांग को पूरा करने के लिए उन्हें बार-बार शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया है। विचार का मुद्दा यह था कि क्या ससुराल वालों के खिलाफ लगाए गए आरोप सामान्य सर्वव्यापी आरोपों की प्रकृति के हैं और इसलिए खारिज किए जाने योग्य हैं?
शुरुआत में, पीठ ने आईपीसी की धारा 498ए के 'दुरुपयोग' पर टिप्पणी की,
"आईपीसी की धारा 498ए को शामिल करने का उद्देश्य एक महिला पर उसके पति और उसके ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता को रोकने के लिए राज्य के तेजी से हस्तक्षेप की सुविधा प्रदान करना था। हालांकि, यह भी उतना ही सच है, कि हाल के दिनों में देश में वैवाहिक मुकदमेबाजी में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है और विवाह की संस्था को लेकर अब पहले से कहीं अधिक असंतोष और संघर्ष है। इसके परिणामस्वरूप पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ पर्सनल स्कोर सेटल करने के लिए 498A IPC जैसे प्रावधानों को औजार के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है।"
राजेश शर्मा व अन्य बनाम यूपी राज्य (2018) 10 एससीसी 472, अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य (2014) 8 एससीसी 273, प्रीति गुप्ता और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य (2010) 7 एससीसी 667, गीता मेहरोत्रा और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य (2012) 10 एससीसी 741, के सुब्बा राव बनाम तेलंगाना राज्य (2018) 14 एससीसी 452 जैसे फैसलों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा,
"ये निर्णय स्पष्ट करते हैं कि इस अदालत ने कई मामलों में आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग और वैवाहिक विवादों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है..। उक्त निर्णयों से यह और भी प्रकट होता है कि वैवाहिक विवाद के दरमियान लगाए गए सामान्य सर्वव्यापी आरोपों के के जरिए झूठा फंसाने के मामलों को अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए, यह अदालत अपने फैसलों के माध्यम से अदालतों को पति के रिश्तेदारों और ससुराल वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में, जब उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, चेतवानी दी है।"
अदालत ने एफआईआर पर गौर करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि 'सभी आरोपियों ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और उसे गर्भ गिराने की धमकी दी।' हालांकि आरोपी ससुराल वालों पर कोई विशेष और स्पष्ट आरोप नहीं है। इसलिए, अदालत ने कहा, "यह केवल एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जिसमें अपराध को आगे बढ़ाने में प्रत्येक आरोपी की भूमिका का पता लगाना संभव नहीं होगा। इसलिए आरोप सामान्य और सर्वव्यापक हैं और कम से कम यह कहा जा सकता है कि ये छोटी-छोटी झड़पों के कारण लगाए गए हैं। जहां तक पति का संबंध है, चूंकि उसने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की है, इसलिए हमने उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों की सत्यता की जांच नहीं की है। हालांकि, जहां तक अपीलकर्ताओं का संबंध है, उनके खिलाफ सामान्य और सर्वव्यापक होने के कारण लगाए गए आरोपों पर मुकदमे की आवश्यकता नहीं हैं।"
अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करके अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा, "इसलिए, प्रासंगिक परिस्थितियों पर विचार करने और आरोपी-अपीलकर्ताओं की किसी विशिष्ट भूमिका के अभाव में, यदि अपीलकर्ताओं को मुकदमे के कष्टों से गुजरने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह अन्यायपूर्ण होगा।"
केस शीर्षकः कहकशां कौसर @ सोनम बनाम बिहार राज्य
सिटेशनः 2022 लाइव लॉ (एससी) 141
केस नंबर| तारीख CrA 195 OF 2022 | 8 फरवरी 2022
कोरमः जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी