धारा 47 सीपीसी | एक्सक्‍यूशन कोर्ट केवल डिक्री एक्सक्‍यूशन तक सीमित प्रश्नों पर विचार कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

31 Oct 2023 12:56 PM GMT

  • धारा 47 सीपीसी | एक्सक्‍यूशन कोर्ट केवल डिक्री एक्सक्‍यूशन तक सीमित प्रश्नों पर विचार कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में डिक्री एक्सक्यूशन में लंबी देरी पर रोष व्यक्त किया।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा, सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47 के तहत एक्सक्‍यूशन कोर्ट केवल डिक्री एक्सक्‍यूशन तक सीमित प्रश्नों पर विचार कर सकता है, वह डिक्री पर विचार नहीं कर सकता। धारा 47 के अनुसार, जिस मुकदमे में डिक्री पारित की गई हो, उसके पक्षकारों या उनके प्रतिनिधियों के बीच और डिक्री के एक्सक्‍यूशन, निर्वहन या संतुष्टि संबंधित सभी प्रश्नों का निर्धारण डिक्री एक्सक्‍यूशन कोर्ट करेगा, न कि एक अलग मुकदमे में निर्धारण होगा।

    मामला

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ एक बुजुर्ग मकान मालिक की सिविल अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने एक्सक्‍यूशन कोर्ट को बेदखली मुकदमे में एक्सक्‍यूशन पीटिशन के सुनवाई योग्य होने पर किरायेदारों (Judgement-Debtors) की ओर से दर्ज कराई गईं आपत्तियों पर नया निर्णय लेने का निर्देश दिया था।

    एक्सक्‍यूशन पीटिशन एक समझौता डिक्री के बल पर दायर की गई थी, जिसके अनुसार किरायेदार की ओर से किराए के भुगतान में चूक होने पर मकान मालिक को बेदखली की मांग करने का अधिकार था। 2013 में एक्सक्‍यूशन कोर्ट ने माना कि डिक्री एक्सक्यूट की जा सकती है, क्योंकि किराए के भुगतान में चूक हुई थी।

    हालांकि चार साल बाद किरायेदारों ने धारा 47 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें किसी भी चूक से इनकार करते हुए एक्सक्‍यूशन पीटिशन के सुनवाई योग्य होने पर आपत्ति जताई गई। एक्सक्‍यूशन कोर्ट ने आपत्तियों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसे 2013 से पहले नहीं उठाया गया था।

    हाईकोर्ट के आदेश, जिसमें एक्सक्‍यूशन कोर्ट से आपत्तियों पर नए सिरे से विचार करने को कहा गया था, से व्यथित होकर मकान मालिक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने डिक्री के एक्सक्‍यूशन में डिक्री-होल्डर की दुर्दशा पर अपनी पीड़ा व्यक्त की।

    शीष अदालत ने कहा, "धारा 47, सीपीसी के तहत एक्सक्‍यूशन कोर्ट उस अदालत के आदेश की वैधता की जांच नहीं कर सकती, जिसने 2013 में डिक्री एक्सक्‍यूशन की अनुमति दी थी, जब तक कि अदालत का आदेश खुद अधिकार क्षेत्र के बिना न हो।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि 2013 के एक्सक्‍यूशन ऑर्डर को किरायेदारों ने किसी भी मंच पर कभी चुनौती नहीं दी थी।

    कोर्ट ने डिक्री एक्सक्‍यूशन में विलंब पर चिंता व्यक्त की और कहा, “वास्तविकता यह है कि शुद्ध सिविल मामलों पर निर्णय लेने में लंबा समय लगता है, और अफसोस की बात है कि यह निर्णय के साथ समाप्त नहीं होता है, क्योंकि डिक्री एक्सक्‍यूशन एक सिविल मुकदमे के लंबे जीवन में एक बिल्कुल नया चरण होता। डिक्री एक्सक्‍यूशन में पूरे भारत में होने वाली अत्यधिक देरी, कई वर्षों से इस कोर्ट के लिए चिंता का कारण रही है।''

    कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप न करके गलती की है और इस मामले को अनावश्यक रूप से इतने लंबे समय तक, यानी लगभग दो दशकों तक खींचा गया है। इस प्रकार, इसने निष्पादन को यथासंभव शीघ्रता से आगे बढ़ाने और पूरा करने का निर्देश दिया।

    केस डिटेल: प्रदीप मेहरा बनाम हरिजीवन जे जेठवा, सिविल अपील संख्या 6375/2023

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 936

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